आज समाज में एक बहुत बडी कुरूती देखने को मिल रही है फिलहाल मर्ज पुराना है लेकिन आज कुछ ज्यादा प्रभाव नजर आ रहा है,
आज जितना बडा परिवार होगा उतने ही उसमें लडाई , अनबन नजर आ रही है जिसके अत्याचार, सुखमय जिदगी का अन्त होता प्रतीत हो रहा है आज कोर्ट, कचहरी पारिवारिक मामलों से भरी पडी है, जिसके चलते वकीलों ने भी अपना पेशे में परिवर्तन कर लिया है इनका काम था अन्याय के खिलाफ लडना आज उसका उल्टा देखने को मिल रहा जिसके पास अधिक धन है चाहे गलत हो फिर भी जीत साबित हो जाती है सच आदमी जेलों कि हवा खा रहा है और फिर नेतागिरि का बोलबाला है, लेकिन इसकी नौबत ही न आये अगर परिवार का मुखिया पूरे परिवार को जीवन भर अपना माने लालच को अपने अन्दर प्रवेश न होने दे तो हम आज कर क्या रहे हैं , हम मुखिया बनने का पद और सम्मान तो बहुत अच्छे से करवा लेते हैं। लेकिन अन्दर ही अन्दर सबसे अधिक पाने की इच्छा कि बजह से हम अपने संगठित परिवार को बिखेर देते हैं। इसका उदाहरण आज हमने समाज में देखा कि एक परिवार था उसके पांच भाई थे उसमें से बडे दो भाई तरक्की कर पैसा नाम सोहरत कमा ली, उसमें से एक ने भी अपना काम कर अच्छा कर लिया उसका भी जीवन यापन ठीक चलने लगा , अब बचे दो भाई दोनों तरक्की नहीं कर पाये सबकी शादी हुई सबके बच्चे परिवार और बडा हुआ फिर जो तरक्की कर चुके थे उन्होने अपने लिये बडे-बडे घर बनवा लिये और निकल लिये अब जो दो भाई तरक्की नहीं कर पाये वे वही जगह मजदूरी कर रोजी रोटी चला रहे, परिवार उनका भी बडा हो रहा समस्या रहने कि जगह, अच्छे खाने कि व्यवस्था सब तहस नहस आज के जमाने में कुछ हो न हो सबके पास अपना घर होना बहुत जरूरी है, आगे ऐसा हुआ कि उस घर के सबसे बडे मुखिया मतलब पांचों भाइयों के पिता जी उनके पास कुछ पुरानी थोडी जमीन थी उन्होने विश्वास कर अपने बडे बेटे को दी कहा कि तुम पांचों में जो सबसे कमजोर हो उससे ये दे देना और कुछ समय बाद उनका स्वर्ग वास हो गया सभी यही करते हैं उस समय जो जानकार समझदार होता है उसकेा दायित्व सौप दिया जाता है, सही भी है लेकिन वही से लालच शुरू हो जाता है,हम उसे अपनी स्वयं कि समझने लगते हैं जब बडे लोग जो तरक्की कर चुके और अपना घर बनवा कर निकल गये तो उन्होने अपने भाइयों के बारे में नहीं सोचा न ही अपने पिता की बातों की तरफ ध्यान दिया न ही अपना वचन याद रहा लालच के चलते हमें उस जगह से भी मोह हो गया और उसी बीच उसमें से एक भाई गृह कलेश से मर गया कहे तो गरीबी का शिकार हो गया एक उसको अपने भाइयों के उपर से विश्वास खत्म हो गया था जिनको वह भगवान मानता था, कि हम चाहे जिस परिस्थिति में पहुच जाये मेरे भाई मुझे निकाल लेगें
लेकिन भाई लालच के चलते अपने फायदे अनुसार कर रहे थे और परिवार बिखर गया अब भी उन्हे नहीं समझ आया कि हम क्या कर सकते हैं जब भगवान ने सब कुछ दिया उन्हेें हम फिर भी लालच में फसे हैं आखिर किसकी खुशियां छीन रहे अपने भाइयों कि आज समाज में सब यही कर रहे सब छीनने में लगे हैं हर घर के बडों को अपने छोटे भाइयों को अपने बेटो के समान समझना चाहिये और समय रहते उनकी भी व्यवस्था करनी चाहिये नहीं सब बर्वाद हो जाता है कहावत है का बर्षा जब कृषि सुखाने समय चूक अब क्या पछताने आज पता नहीं क्या हो गया समाज को कृपया कर बडे और छोटे दोनेा ही परिवार के लोग इस ओर ध्यान दें और अपना कर्तव्य का पालन करें।
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