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मन करता है, नंगा होकर कुछ घण्टों तक सागर -तट,कवि श्री नागार्जुन जी hindi poetry about life ,hindi poetry about nature

नंगा होकर


दोस्तो आज हम आपको भारतीय कवि श्री नागार्जुन जी कि एक कविता सुनाउगा जिसमे किस तरह से उन्होने अपने मन कि सुन्दर इच्छाओं को व्यक्त किया है। दोस्तो जब हम परेशान होते हैं, ऐसा कहे ज्यादा परेशान  होते है, और कोई रास्ता न दिखे तो हम फिर उस सर्वशक्तिमान  कि ओर देखते हैं और मन ही मन अपनी व्यथा कह डालते हैं। इस कविता में कवि ने भी यही किया है।nanga


मन करता है,  नंगा होकर कुछ घण्टों तक सागर -तट,कवि श्री नागार्जुन जी hindi poetry about life ,hindi poetry about nature


मन करता है,
नंगा होकर कुछ घण्टों तक सागर -तट पर मै खडा रहूॅ
यों भी क्या कपडा मिलता है।
धनपतियों कि ऐसी लीला

मन करता है,
न्ंागा होकर दूं आग लगा, जो पहन रखा है उसमें भी
फिर बनू दिगम्बर बमभेाला
नंगा होकर विष पान करूं सागर तट पर
ओ आलकूट तू कहां गया ?
ओ हालाहल तू कहां गया ?

अृमत कि बात नहंी पूछो
विष तक का बंूद नहीं मिलता
देवता हुए निर्जज्ज , सभी को छिपा दिया
कहते जाओ उनसे मांगो

जो क्षीर उदधि में शेषनाग की शैय्या  पर कर रहे शयन 
भण्डार हमारा खाली है।shree naagaarjun
भगवान सभी के मालिक है
लचारी है, कुछ भी हो हम तुझको कुछ दे न सके
मन करता है नंगा होकर चिल्लाउ
यदि मरा न होगा तो सुन लेगा भगवान विष्णु सागर षायी
मन करता है मैं उस अगस्त्य सा पी डालू
सारे समुद्र को अंजलि से
इस अतल-वितल में तब मुझको मुर्दा भगवान दिखाई दे।
उस महामृतक को ले जाउ फिर इस तट पर
अंतेष्टि करूं, लकडी , तो बेहद महगी है।
इस बालू मे ही ,दफना दूं ,नंगा करके
निर्लज्ज देवता ले लेना तुम उसका
वह भी पिताम्बर
छिप-छिप उसको पहने सुरेष
छिप-छिप उसको पहने कुबेर
छिप-छिप पहनो फिर तुम सब एक-एक बार
मन करता है नंगा होकर मै खडा रहूॅ सागर तट पर
कुछ घंटो तक क्या जीवन भर
यो भी क्या कपडा मिलता है।


भीड

मकान खाली है
दुकान खाली हैshree naagaarjun
स्कूल नहीं खाली-खाली नहीं काॅलेज
खाली नहीं टेबुल,खाली नहीं मेज
खाली अस्पताल नहीं,खाली है हाॅल नहीं
खाली नहीं चेयर,खाली नहीं स्ट्रीट
खाली नहीं ट्राम ,खाली नहीं ट्रेन
खाली नहीं माइण्ड, खाली नहीं ब्रेन
खाली है हाथ,खाली है पेट
खाली है थाली,खाली है पेट


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