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                 रिसर्च 

प्रिय मित्रों आज मै फिर आपके सामने एक नया टॅापिक लेकर आया हूॅ जो बहुत रोमांचक होने वाला है आज हम आपको कुछ जिदंगी की अलग-अलग पहलुओ कि कुछ झलकियों से रूबरू कराते है। आज मै बैठे-बैठे सोच रहा था कि इन्सान के कितने रंग हैं। हमारे देश भारत में तो हर दस किलोमीटर में भाषा, पहनावा,खान-पान बदल जाता है तो सोच,स्वभाव भी अलग होना कोई बडी बात नही बडी बात यह है कि कितने प्रकार कि सोच और स्वभाव के लोग है गणना कि जाये तो बडी विचित्र स्थिति देखने को मिलेगी आज हम आपसे इसी टाॅपिक मे बात करने वाला हूॅ।




हमारे देश भारत में बूढे लोगो कि बडे सम्मान के साथ सब सेवा करते है चाहे उनसे कोई रिश्ता हो या न हो हमारे देश में अस्सी प्रतिशत लोग अपने माता-पिता कि खुशियों कि लिये घर परिवार खुश रखने के लिये हर क्ष्ेात्र में अपना और अपने परिवार को गर्व महसूस कराने में अपनी जान की बाजी भी लगा देते हैं।
मै आज आपको ऐसी ही अदभुत बात बताने वाला हूॅ जिसको सुनकर आप भी अपने मन को आनन्दमय रखने में से नही रोक पायेगे आज मैं एक व्यक्ति से मिला वह केमिस्ट्री से पी एच डी फिर उसको अमेरिका रिसर्च के लिये गया रिसर्च पूरी हुयी अच्छे पैकेज के साथ वही पर उसको जाॅब भी आॅफर हुयी लेकिन वह अपने देश वापस आ गया छोड छाड के लोगो को सफलता हासिल करने में सालों लग जाते हैं वही ये महाशय छोडकर आ गये। मैने पूछा तो बताते हैं बहां खुश था मजा था लेकिन मेरे माता-पिता मेरी खुशियों में शामिल नही थ्ेा। मैं आनन्द से नये देश में घूम रहा था मै अपने माता पिता को नही घूमा पा रहा था मुझे कुछ अच्छा लगा फोटो से माता-पिता को दिखा रहा और आगे बताया ऐसा काम और पैसे का क्या करूं मारने के बाद वैसे भी फिर कभी नही मिलना है। जिसका आनन्द मेरे माता- पिता न भेग पाये और मैं बनारस में प्रोफेसर बनना ज्यादा अच्छा है और माता-पिता के साथ पूरे भारत का भ्रमण करता हॅंू , हर साल मजे के साथ एक बार जीवन है और एक ही बार ऐसे माता - पिता मिलेगे नौकरी का क्या है भारत के लोग आज जहां तरक्की पाते ही एक मौका मिल जाये तुरन्त दूसरे देश में पहुच जाते हैं माता-पिता से मतलब इतना जितना एक पडोसी से बातें सोचनीय हैं । विचार किजियेगा

सचिन सिंह

Research



Dear friends, today I have brought a new topic in front of you, which is going to be very exciting. Today, let us introduce you to some aspects of different aspects of life. Today I was sitting and thinking how many colors are there of humans. In our country India, language, clothing, food changes every ten kilometers, so thinking, temperament is also not a big thing, it is a big thing that how many people of thinking and nature are calculated, it is very strange. You will see the situation today, I am going to talk to you in this topic. 

Our country does all the service in India with great respect to old people, whether or not they have any relationship with them, eighty percent of the people in our country keep their family and their families in every field for the happiness of their parents. They also put their lives to make them feel proud. 
Today I am going to tell you such a wonderful thing, by listening to which you will not be able to stop your mind from being joyful, today I met a person, he got PhD from Chemistry, then he went to the US for research. The research was completed with a good package. He was also offered a job but he came back to his country, it takes years for the people of Chhad to achieve success, they have left it. When I asked, I was happy to say that it was fun but my parents were not involved in my happiness. I was wandering in a new country with joy, I was not able to visit my parents, I liked something, showing it to the parents by the photo and told me what to do with such work and money, never to meet again anyway is. Whose joy my parents could not take, and it is better to become a professor in Benaras and travel all over India with parents, once in a year there is life with fun and once such parents will get a job. What is it that the people of India today get an opportunity as soon as they get progress, they immediately reach another country, so much is meant by the parents as much as things are thoughtful from a neighbor. Consider it

Sachin Singh

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आज युवा प्रकृति से जुडकर चलने कि बजाय उससे हटकर अपने मन,,porn industry,sky porn culture,pornography

                     पाॅर्न कल्चर


हमारा देश युवाओ का देश है जहां युवा अधिक हो उस देश कि तरक्की को कोई रोक ही नही सकता लेकिन सत्य बात तो यह है कि आज युवा प्रकृति से जुडकर चलने कि बजाय उससे हटकर अपने मन कि फिलौस्पी में लगा है। जहां सुबह हमें शास्त्र पुराणेंा का अध्ययन करना चाहिये वही आज हम पाॅर्न कल्चर अपना रहे हैं। जहां हमे सुवह सूर्य निकलने के पहले उठना चाहिये वही हम सूर्य निकलने के पांच घण्टे बाद उठ रहे है। रात को जाग कर पढना या काम करना दिखावे के लिये फिर दोपहर तक सोना क्या जीवन है दो बजे नहाना चार बजे भेाजन हमारे भारत कि युवा पीढी ये कर रही है। परन्तु इसके लिये अपने सनातन शास्त्रों द्वारा निर्दिष्ट जीवन प्रक्रिया का अनुपालन करना बहुत जरूरी है , सनातन धर्म पूरे विश्व के धर्मो में सबसे प्राचीन है जहां अनेक धर्मो ने अपने मन , सुविधा अनुसार परिवर्तन कर नये-नये धर्मो को जन्म दिया वही आज भी सनातन धर्म बेहतरीन ,चिरंजीवी, गुणों के साथ विधमान है लाखों अक्रांता आये फिर भी उखाड नही सके हमें , हमें सनातन शास्त्रों कि ओर लौटना चाहिये। दोस्तों पुराणों ,शास्त्रों ,वेदो में ऐसी अदभ्ुात चीजें छीपी हैं जिनका स्मरण करने मात्र से आलौकिक शक्तियां आपके बश में आ जाती है।
शास्त्रों में लिखा है-

तस्याच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याेार्यव्यवास्थितौ
ज्ञात्वा शास्त्र विधानोत्कं कर्म कर्तुमिहार्हसि

श्री भगवान कहते है कि जो पुरूष शास्त्रविधि का त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है वह न तो सिद्वि प्राप्त करता है न उसे कभी सुख मिलता है।

शास्त्रों कि परम्परा में जीवन के सभी क्रिया कलापों के लिये विधि निषेध का एक प्राबधान बना हुआ है। जिसके अनुसार जीने से आयु, विधा, यशोबलम इन सबकी प्राप्ति होती है।

एक समय ऐसा है जो काफी विचित्र और लुभावना होता है वह विधार्थी जीवन इस समय हमें लोगो को कई प्रकार कि आवश्यकतायें तथा अपेक्षायें रहती है। ये स्वाभाविक नही हैं, ये सब संगत और आज कि सोशल मीडिया का प्रभाव है।l

हमने अपने दिमाग में हानिकारक सुन्दर यादों को कैद कर दिया है जहां हमें अपना लक्ष्य औा मां सरस्वती कि कृपा पाने के लिये लगना चाहिये वही आज हम पूरी रात युवा-युवती अपनी फालतू कि बातों में गुजार रहे हैं। इस तरह से इतनी भीड भरे युग में तरक्की क्या किसी के लायख नही रहेगे आज कि सच्चाई ये है कि विधार्थियों ने अपनी दिनचर्या को तोडकर रख दिया है। कृपया करके अपनी तरक्की के ओर लौटे सनातन शास्त्रों कि ओर लौटे और नयी शक्ति का संचार करें, संचालक बने।
                 
                                              सचिन सिंह
Our country is a country of youths, where there is more youth, no one can stop the progress of that country, but the truth is that today, instead of walking with nature, the youth is moving away from it to their mind. Where we should study Shastra Purana in the morning, today we are adopting past culture. Where we should wake up before the sun sets, we are getting up after five hours of sunrise. Reading or working awake at night to show up, then sleep till noon, what is life, taking a bath at two o'clock at four o'clock, this is what our young generation of India is doing. But for this, it is very important to follow the life process specified by your Sanatan scriptures, Sanatan Dharma is the oldest among religions of the whole world, where many religions changed their mind, convenience and gave birth to new religions. The best, Chiranjeevi, exists with qualities, millions of Akrantas have come, yet we cannot be uprooted, we should return to the Sanatan Shastras. Friends, such wonderful things have been published in the Puranas, Shastras, Vedos, which mere remembrance brings the supernatural powers to you. 


It is written in the scriptures-




Tasyachhaastram evidences


Gyatava Shastra Vidhanotakam Karma Kartumiharshi




Sri Bhagavan says that a man who abandons scripture and conduct arbitrarily with his will, neither attains siddi nor does he ever get pleasure.




In the tradition of the scriptures, there is a provision of prohibition of law for all activities of life. According to which one attains age, genre, Yashobalam, all by living.




There is a time which is quite bizarre and intriguing, that student life at this time, people have many needs and expectations. These are not natural, they are all relevant and the impact of today's social media. 


We have captured harmful beautiful memories in our mind where we should be engaged to achieve our goal and the blessings of Mother Saraswati, that is what we are spending all night on young people in their useless things. In such a crowded era, progress will not be spent by anyone, today the truth is that the students have broken their routine. Please return to your progress and return to the eternal scriptures and communicate new power, become a director.


                 



                                              Sachin Singh

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दो ही फल मीठे है अच्छी किताबों का अध्धयन तथा अच्छे लोगो कि संगति


बुद्विवृद्विकराण्याशु धन्यानि च हितानि च
निंत्य शास्त्राण्यवेक्षेत निगमांश्चैव वैदिकान
यधदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः
स यत्प्रमाण कुरूते लोकस्तदनुवर्तते





डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन का कहना है कि इस जहररूपी संसार वृक्ष में दो ही फल मीठे है अच्छी किताबों का अध्धयन तथा अच्छे लोगो कि संगति इयलिये हमें पढने कि आदत डालनी चाहिये।

पडना उसी को कहते है जिससे हम सोचने के लिये प्रेरित हो हमें महान पुरूष कि जीवन कथा अवश्य पढनी चाहिये। घर के बडे जो आचरण करते है अन्य सदस्य वैसे ही आचरण करते हैं वह जो कुछ प्रमाणित कर देता है। समस्त समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है। अच्छी किताबों का अध्ययन करें ।
आज इतनी भीड भाड भरी जिदगी में इन्सान को मन से सुखी होने के लिये उसमें सहनशीलता,दया, सहिष्णुता के साथ क्रोध, ईर्षा ,नफरत,बदले कि भावना इत्यादि पर काबू पाना जरूरी है। नही तो हमारा दिमाग कुण्ठित अवस्था में चला जायेगा और हम इस जीवन में क्या किसी भी जन्म में सुख तरक्की का अनुभव नही कर सकतें। 
वीर इन्सान बनो आज के दौर में इंसान और पशु दोनो ही एक सा कार्य कर रहे है कुछ ही चीजे है जो हमें पशु से अलग महान बनाती है
जीवन जीना समय को ढोना नही है बल्कि एक कला है वर्षो कि गणना भी जीवन नही है । बर्षो में करना क्या है। सह जीवन कि पहचान है । कछुआ 400 वर्ष जीवित रहता है। यह शारीरिक जीवन है। जीते तो सभी है पर हमें यहां जीतने के लिये पैदा हुए है।

नियत कुरू कर्म त्वं कर्म ज्यायोहाकर्मणः
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्व येदकर्मणः

तू शास्त्रविहित कर्तव्य कर क्योकि कर्म न करने कि अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी सिद्व नही होगा।


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

मा कर्मफलहेतुभूर्मा ते सडोडस्तवकर्माणि

Buddha

Nitya shastraranyavekshet nigamantasheva vaidikan
Best of all
Satyapraman kurute lokastadanuvartate


Dr. Sarvepalli Radhakrishnan says that in this poison-like world tree, only two fruits are sweet. We should make a habit of reading good books and studying the association of good people.



It is said that we should be inspired to think that we should read the life story of a great man. Other members of the house who conduct themselves behave in the same way as they do. The entire community starts to behave accordingly. Study good books.

Today, in order to be happy with the heart, it is necessary to overcome anger, jealousy, hatred, feelings of revenge, etc. in order to make the person happy in such a fierce life. Otherwise, our mind will go into a depressed state and we cannot experience happiness in any birth in this life.
Be a brave man. In today's era, both humans and animals are doing the same thing, there are few things that make us great apart from animals.

Living life is not carrying time but is an art. Counting years is also not life. What to do in the years Identification is the life. The tortoise lives 400 years. This is physical life. Everyone wins but we are born to win here.


Fixed kuru karma twam karma jiohakaramana

The famous Yedakarman


You should do scriptural duty because it is better to do work than not to act, and your body will not be able to sustain even if you do not.





Ma Karmaphalhetubhurma te Sadodastavakarmani



अपना- अपना भाग्य भारतीय मानसिकता के अनेक रूपों का मनोवैज्ञाानिक प्रस्तुतिकरण है,motivational story

अपना - अपना भाग्य



प्रिय मित्रों आज हम आपको एक भारतीय लेखक द्वारा लिखी गयी कहानी से परिचित कराउगा जिसको पडने के बाद आपको बहुत सी चीजे जिसको आपको याद रखना है और अपने जीवन पथ पर ऐसा द्वारा नहीं होने देना है।
आज हम बात करेगे लेखक जैनेन्द्र कुमार जी कि बचपन में हीं पिता का साया उठ जाने के कारण माता द्वारा पालन पोषण मूल नाम आन्नदीलाल

विचार लो कि मत्र्य हो, न मुत्यु से डरो कभी
मरो, परन्तु यों मरों कि याद जो करें सभी
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे वृथा जिये
मरा नहीं वही कि जो ,जिया न आपके लिये
यही पषु पृव्रत्ति है कि ,आप आप ही चरे
वही मनुष्य है कि ,जो मनुष्य के लिये मरे।


अपना- अपना भाग्य भारतीय मानसिकता के अनेक रूपों का मनोवैज्ञाानिक प्रस्तुतिकरण है। आत्महीनता,सास्कृतिक अपराध बोध और भाग्य की आड लेकर समाज के दुर्दषाग्रस्त वर्ग को उसके भाग्य पर छोड देने कि विडम्बनाओं पर लेखक ने मार्मिकता से उजागर किया है।
लेखक अपने मित्र के साथ नैनीताल घूमने गया। अंग्रजी षासन के दिन थे अतः रमणीक पर्वतीय स्थलों पर अंग्रेजो कि उपस्थिति स्वाभिक थी लेखक ने वहां आने वाले देषी तथा विदेषी पर्यटकों का बारीकी से निरीक्षड किया एक ओर झाील में अंग्रेज स्त्री औार पुरूष नौकाचालन का आन्नद ले रहे थे। तो दूसरी ओर भ्रमणार्थ पर निकले भारतीय और अंग्रेज लोगो के व्यवहार और स्वभाव का अन्तर स्पष्ट दिखाई दे रहा था। अंग्रेज वालक उत्फुल्ल, चंचल,और तरोताजा दिखाई पडते थे जबकि भारतीय बच्चे सहमे व सत्वहीन से दिखाई पडते थे। कुछ भारतीय अपने काले रंग को छिपाकर अंग्रेज दिखने कि हास्यपद चेष्टा में लीन थे।
लौटते समय मित्र कि आग्रह पर लेखक भी ताल के किनारे बैंच पर बैठ गया । घना कुहरा छा रहा था। रात्रि के ग्यारह बजे थे। लेखक षीघ्र होटल पहुचना चाहता था किन्तु मित्र कि सनक के सामने उसकी एक ना चली थेाडे समय बााद कुहरे के बीच में एक धुधली काली छाया उनको आती दिखाई दी निकट आने पर पता चला कि वह लगभग 10 बर्ष का  पहाडी बालक था। भयंकर ठंड में भी उसके षरीर पर एक फटी कमीज के अतिरिक्त कुछ न था। मित्र ने उससे उसका पूरा परिचय पूछा तो बह गरीवी के अभिषाप से ग्रस्त घर से भागा हुआ था और वह पहाडी बालक काम से हटा दिया गया था और भूखा था। लेखक का मित्र उसे एक परिचित के होटल पर ले गये और उसे नौकर रख लेने का आग्रह किया किन्तु उन्होने इन्कार कर दिया स्वयं उसकी मदद सहायता करना चााहता है किन्तु जेब में दस-दस के ही नोट होने के कारण बजट बिगड जाने कि आषंका से उसे कुछ नहीं दे पाता । अगले दिन आने को कहकर दोनो मित्र उसे उसके भाग्य पर छोडकर अपने होटल में चले जाते हैं अगले दिन नैनीताल से विदा होते समय उनको ज्ञात होता है किव ह बालक रात में ठंड से मर गया। लेखक अपना- अपना भाग्य कहकर संतोष कर लेता है।
मित्रो आज भी हम अकसर यही करते है, दोस्तो सर्दी का मौसम है आपके पास क्या, हर किसी न किसी के पास पुराने कपडे,खाना पीना जो बचे उसे बचा कर रखे और आप जहां भी है उस षहर में देखिये एक दिन घूमकर जहां इस तरीके के लोग जिनकेा पता नहीं भगवान ने क्यों बनाया इनकी मदद करें। कपडे और भूख कि बजह से कोई न मरे ये हर मनुष्य का कर्तव्य है। लेखक ने भी ये र्वतांत इस लिये बताया क्योकि दोवारा ये गलती न हो। आपका थेाडा सहयोग किसी की जान बचा सकती है।

नमस्कार इसी तरह प्यार बनाये रखें।

 


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कैलाश खेर (जन्म ७ जुलाई १९७३) को उत्तर प्रदेश में हुआ वे एक भारतीय पॉप-रॉक गायक है जिनकी शैली भारतीय लोक संगीत से प्रभावित है। कैलाश खेर ने अबतक १८ भाषाओं में गाने गाया है और ३०० से अधिक गीत बॉलीवुड में गाये है।




कैलाश खेर को संगीत मानों विरासत में मिली हो। उनके पिता पंडित मेहर सिंह खेर पुजारी थे और अक्सर घरों में होने वाले इवेंट में ट्रेडिशनल फोक सॉन्ग गाया करते थे। कैलाश ने बचपन में पिता से ही संगीत की शिक्षा ले ली थी। लेकिन वह कभी भी बॉलीवुड गाने सुनना पसंद नहीं करते थे और ना ही सुना करते थे पर उनको संगीत से लगाव तो काफी था।

संगीत सीखने के लिए घर से की बगावत

कैलाश जब 13 साल के थे तभी वो संगीत की बेहतर शिक्षा लेने के लिए घरवालों से लड़कर दिल्ली आ गए थे। यहां आकर उन्होंने संगीत की शिक्षा तो लेनी शुरू कर दी लेकिन साथ में पैसे कमाने के लिए छोटा सा काम शुरू कर दिया। साथ में विदेशी लोगों को संगीत भी सिखाकर पैसे कमाते थे।

बिजनेस में घाटे के करना चाहते थे सुसाइड

दिल्ली में रहते हुए 1999 तक कैलाश खेर ने अपने एक फैमिली फ्रेंड के साथ एक्सपोर्ट का बिजनेस करने लगे थे। इसी साल उन्हें इस कारोबार में इतना बड़ा घाटा हुआ जिसमें वह अपनी सारी जमा पूंजी गंवा चुके थे। इसी वक्त कैलाश इतने डिप्रेशन में चले गए थे कि वो जिंदगी से तंग आकर सुसाइड करना चाहते थे। इन सब से किसी तरह से निकलने के बाद कैलाश पैसे कमाने के लिए सिंगापुर और थाइलैंड चले गए। जहां 6 महीने रहने के बाद वो वापस भारत आकर ऋषिकेश चले गए और कुछ दिनों तक वहीं रहे। वहां वे साधू-संतो के लिए गाना गाया करते थे। कैलाश के गाने को सुनकर बड़ा से बड़ा संत झूम उठता था, इससे कैलाश का खोया विश्वास वापस आया और वह मुंबई चले गए।


मुंबई आने के बाद कैलाश ने काफी गरीबी में दिन गुजारें। घर में नहीं बल्कि कैलाश वहां चॉल में रहते थे। उनके हालत कैसे थे वो इसी बात से पता चलता है कि उनके पास पहनने के लिए एक सही चप्पल भी नहीं थी। वह एक टूटी चप्पल ले 24 घंटे स्टूडियो के चक्कर लगाते रहते ताकि कोई तो उनकी आवाज को सुन उनको गाने का मौका दे दे।

एक दिन उन्हें राम संपत ने एक ऐड का जिंगल गाने के लिए बुलाया, जिसके लिए उन्हें 5000 रुपए मिले। तब पांच हजार रुपए भी कैलाश को बहुत ज्यादा लगे और इनसे उनका कुछ दिन का काम चल गया। 'अल्ला के बंदे हम' ने दिलाई एक अलग पहचान दिलाई।


कैलाश ने मुंबई में कई सालों तक स्ट्रगल करने के बाद फिल्म अंदाज से उन्हें ब्रेक मिला। इस फिल्म में कैलाश ने 'रब्बा इश्क ना होवे' में अपनी आवाज दी। लेकिन कैलाश के किस्मत का तारा तब चमका जब उन्होंने फिल्म वैसा भी होता है में 'अल्ला के बंदे हम' गाने में अपनी आवाज दी। ये गाना आजतक कैलाश के हिट गानों में से एक है।

18 भाषाओं में गाया  गाना

कैलाश खेर ने अबतक 18 भाषाओं में गाने गा चुके हैं। 300 से अधिक गाने कैलाश ने सिर्फ बॉलीवुड में गाए हैं। कैलाश को अपने गानों के लिए दर्जनों अवार्ड मिल चुके हैं। कैलाश खेर 2009 में मुंबई बेस्ड शीतल से शादी की। उनका एक चार साल का बेटा है, जिसका नाम कबीर है।

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