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अपना- अपना भाग्य भारतीय मानसिकता के अनेक रूपों का मनोवैज्ञाानिक प्रस्तुतिकरण है,motivational story

अपना - अपना भाग्य



प्रिय मित्रों आज हम आपको एक भारतीय लेखक द्वारा लिखी गयी कहानी से परिचित कराउगा जिसको पडने के बाद आपको बहुत सी चीजे जिसको आपको याद रखना है और अपने जीवन पथ पर ऐसा द्वारा नहीं होने देना है।
आज हम बात करेगे लेखक जैनेन्द्र कुमार जी कि बचपन में हीं पिता का साया उठ जाने के कारण माता द्वारा पालन पोषण मूल नाम आन्नदीलाल

विचार लो कि मत्र्य हो, न मुत्यु से डरो कभी
मरो, परन्तु यों मरों कि याद जो करें सभी
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे वृथा जिये
मरा नहीं वही कि जो ,जिया न आपके लिये
यही पषु पृव्रत्ति है कि ,आप आप ही चरे
वही मनुष्य है कि ,जो मनुष्य के लिये मरे।


अपना- अपना भाग्य भारतीय मानसिकता के अनेक रूपों का मनोवैज्ञाानिक प्रस्तुतिकरण है। आत्महीनता,सास्कृतिक अपराध बोध और भाग्य की आड लेकर समाज के दुर्दषाग्रस्त वर्ग को उसके भाग्य पर छोड देने कि विडम्बनाओं पर लेखक ने मार्मिकता से उजागर किया है।
लेखक अपने मित्र के साथ नैनीताल घूमने गया। अंग्रजी षासन के दिन थे अतः रमणीक पर्वतीय स्थलों पर अंग्रेजो कि उपस्थिति स्वाभिक थी लेखक ने वहां आने वाले देषी तथा विदेषी पर्यटकों का बारीकी से निरीक्षड किया एक ओर झाील में अंग्रेज स्त्री औार पुरूष नौकाचालन का आन्नद ले रहे थे। तो दूसरी ओर भ्रमणार्थ पर निकले भारतीय और अंग्रेज लोगो के व्यवहार और स्वभाव का अन्तर स्पष्ट दिखाई दे रहा था। अंग्रेज वालक उत्फुल्ल, चंचल,और तरोताजा दिखाई पडते थे जबकि भारतीय बच्चे सहमे व सत्वहीन से दिखाई पडते थे। कुछ भारतीय अपने काले रंग को छिपाकर अंग्रेज दिखने कि हास्यपद चेष्टा में लीन थे।
लौटते समय मित्र कि आग्रह पर लेखक भी ताल के किनारे बैंच पर बैठ गया । घना कुहरा छा रहा था। रात्रि के ग्यारह बजे थे। लेखक षीघ्र होटल पहुचना चाहता था किन्तु मित्र कि सनक के सामने उसकी एक ना चली थेाडे समय बााद कुहरे के बीच में एक धुधली काली छाया उनको आती दिखाई दी निकट आने पर पता चला कि वह लगभग 10 बर्ष का  पहाडी बालक था। भयंकर ठंड में भी उसके षरीर पर एक फटी कमीज के अतिरिक्त कुछ न था। मित्र ने उससे उसका पूरा परिचय पूछा तो बह गरीवी के अभिषाप से ग्रस्त घर से भागा हुआ था और वह पहाडी बालक काम से हटा दिया गया था और भूखा था। लेखक का मित्र उसे एक परिचित के होटल पर ले गये और उसे नौकर रख लेने का आग्रह किया किन्तु उन्होने इन्कार कर दिया स्वयं उसकी मदद सहायता करना चााहता है किन्तु जेब में दस-दस के ही नोट होने के कारण बजट बिगड जाने कि आषंका से उसे कुछ नहीं दे पाता । अगले दिन आने को कहकर दोनो मित्र उसे उसके भाग्य पर छोडकर अपने होटल में चले जाते हैं अगले दिन नैनीताल से विदा होते समय उनको ज्ञात होता है किव ह बालक रात में ठंड से मर गया। लेखक अपना- अपना भाग्य कहकर संतोष कर लेता है।
मित्रो आज भी हम अकसर यही करते है, दोस्तो सर्दी का मौसम है आपके पास क्या, हर किसी न किसी के पास पुराने कपडे,खाना पीना जो बचे उसे बचा कर रखे और आप जहां भी है उस षहर में देखिये एक दिन घूमकर जहां इस तरीके के लोग जिनकेा पता नहीं भगवान ने क्यों बनाया इनकी मदद करें। कपडे और भूख कि बजह से कोई न मरे ये हर मनुष्य का कर्तव्य है। लेखक ने भी ये र्वतांत इस लिये बताया क्योकि दोवारा ये गलती न हो। आपका थेाडा सहयोग किसी की जान बचा सकती है।

नमस्कार इसी तरह प्यार बनाये रखें।

 


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