निर्देशन: विवेक अग्निहोत्री
कलाकार: दर्शन कुमार, मिथुन चक्रवर्ती, अनुपम खेर और पल्लवी जोशी, भाषा सुंबली,
जहां शिव, कश्यप, सरस्वती हुए वो कश्मीर हमारा था, जहां पंचतंत्र लिखा गया वो कश्मीर हमारा था.....तू जानता ही क्या है? दादाजी पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) नम आंखों और रुंधे गले से ये कहते हैं, तो ये सच ही लगता है कि ... हां हम कश्मीर की सच्चाई के बारे में अभी तक जानते ही क्या थे। धरती की जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर में जो 1990 में कश्मीरी पंडितों के साथ जो नरसंहार हुआ और उन्हें कैसे पलायन के लिए मजबूर किया गया, ये सच फिल्म में दिखाया गया है।
जन्नत कैसे कश्मीरी हिंदुओं के लिए जहन्नुम बन गई
जब इस्लामिक आतंकियों ने कश्मीर में रह रहे कश्मीरी पंडितों के कभी घर में घुसकर तो कभी चौरहों पर कत्लेआम कर उनके अपनों को कश्मीर छोड़ने को मजबूर किया। अपने ही देश में अचानक कैसे इन कश्मीरी पंडितों से उनका सबकुछ छीनकर उन्हें जान बचाकर पलायन करने को मजबूर किया गया। ये सच्चाई देखकर ये ही आप कहेंगे जन्नत कैसे कश्मीरी हिंदुओं के लिए जहन्नुम बन गई।
इस फिल्म के बाद लोगों के जेहन में उठ रहे ये सवाल
...दमदार सच्ची, बोल्ड और मास्टर पीस सच्ची कहानी कहें द कश्मीर फाइल्स के लिए कहना इस फिल्म के साथ इंसाफ होगा। फिल्म 1990 में कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा को दिखाती है। विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में बनीं सच्ची कहानी पर आधारित 2 घंटे 40 मिनट की ये कश्मीर फाइल्स फिल्म ने दर्शकों के दिलों को जहां झकझोर कर रख दिया वहीं इस फिल्म को देखकर दर्शकों के दिमाग में ये प्रश्न उठने लगा है कि उस समय की सरकार, राजनीतिक दलों और आजाद भारत का हिस्सा होते हुए कश्मीर में हो रहे नरसंहार को क्यों नहीं रोका
द कश्मीर फाइल्स की कहानी
1990 में जब कश्मीर की वादियों में हर कोने में 'रालिव, चालिव या गालिव' के नारे गूंज रहे हैं जिसका मतलब है ' या तो धर्म बदलो, या भागो या मर जाओ. । फिल्म 1990 की घटना की शुरूआत कश्मीर के इसी खौफनाक मंजर से होती हैं। वो कश्मीरी पंडित पुष्कर नाथ पंडित (अनुपुम खेर) जिसने इस 1990 में कश्मीर में हुए नरसंहार में अपने बेटे बहू और बड़े पोते का अपनी आंखों के सामने आतंकियों द्वारा कल्त होते देखा था उसने मरते दम तक कश्मीर से 370 हटाए जाने की मांग को लेकर दिल्ली में धरना देता रहा और इसी आस में आखिरी सांस ली। उनका छोटा पोता कृष्णा( दर्शन कुमार) अपने दादा की अंतिम इच्छा कि उनकी अस्तियां कश्मीर में उनके घर में बिखराई जाए, पूरा करने कश्मीर आता है। जहां वो अपने दादा के पुराने तीन दोस्तों के पास आता है और अपने परिवार के साथ हुए एक्सीडेंट के बारे में पूछता है और दादा के वो तीन पूराने दोस्त जिसमें रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी का रोल निभाने वाले मिथुर चक्रवती समेत दो और मित्र कृष्णा को कश्मरी पंडितों के पलायन और नरसंहार की सच्चाई बयां करते हैं। तब जाकर कृष्णा के 1990 की सच्चाई सामने आती है।
फिल्म के कलाकार
विवेक अग्निहोत्री द्वारा डॉयरेक्शन में बनी इस फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, अनुपम खेर, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी जैसे मजे हुए दिग्गज कलाकारों ने अपने शानदार अभिनय से फिल्म को और लाजवाब बना दिया है। वहीं फिल्म में अनुपम खेर का परिवार उन्हीं कश्मीरी पंडितों में शामिल है जिन्होंने वास्तविक जीवन में ये दर्द को सहा है। अनुपम खेर ने अपनी शानदार एक्टिंग और कश्मीरी भाषा में डॉयलाग बोलकर अपने किरदार के दिल के दर्द को दर्शकों को महसूस करवाने मे सक्सेज हुए हैं । वहीं दर्शन कुमार जिन्होंने पोते कृष्णा का रोल निभाया है, फिल्म के अंत में उनकी एक्टिंग और डॉयलॉग ने हर दर्शक को झकझोर कर दिया है।
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