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वीर योद्धा गौतमी पुत्र शातकर्णी ,Gautami son Shatkarni

                                      वीर योद्धा      गौतमी पुत्र शातकर्णी                                            

                                                       गौतमी पुत्र शातकर्णी




लगभग आधी शताब्दी की उठापटक तथा शक शासकों के हाथों मानमर्दन के बाद गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी के नेतृत्व में अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित कर लिया। गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी सातवाहन वंश का सबसे महान शासक था जिसने लगभग 25 वर्षों तक शासन करते हुए न केवल अपने साम्राज्य की खोई प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित किया अपितु एक विशाल साम्राज्य की भी स्थापना की।

गौतमी पुत्र के समय तथा उसकी विजयों के बारें में हमें उसकी माता गौतमी बालश्री के नासिक शिलालेखों से सम्पूर्ण जानकारी मिलती है। उसके सन्दर्भ में हमें इस लेख से यह जानकारी मिलती है कि उसने क्षत्रियों के अहंकार का मान-मर्दन किया था।
भारत भूमि पर ईपु 230 से लेकर 450 वर्षों की सर्वाधिक लंबी अवधि तक शासन करने वाले इस कुल में अन्य कई महान सम्राट हुये किंतु सातवाहनो में
प्रथम शदी के उत्तरार्ध मे लगभग आधी शताब्दी की उठापटक तथा शक शासकों के हाथों मानमर्दन के बाद भी महान विदुषि ब्राह्मणी माता गौतमी श्री के महा पराक्रमी पुत्र शातकर्णी के नेतृत्व में प्रथम सदी ईस्वी के आरंभ में सातवाहनों की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित कर लिया जोकि इतिहास की बहुत ही आश्चर्यजनक घटना रही। जिसने अपने बाहुबल से समस्त योरप को आतंकित कर वैष्णव अनुयायी बना लिया।
गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी सातवाहन वंश का सबसे महान शासक थे जिसने लगभग 25 वर्षों तक शासन करते हुए न केवल अपने साम्राज्य को विशाल बनाया बल्कि उसको अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाया।
वैसे तो पुराणों के अनुसार ये वंश विश्वामित्र वंशीय उल्लेख है जोकि छठी शदी मे लिखा गया किंतु सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद सातवाहन महाराज सिमूक मगध संधि को अमान्य करते हुए ईपु 230 में सातवाहन ब्राह्मण वंश की नींव डाला साथ ही मातृसत्तात्मक राजवंश की प्रथा भी। तत्पश्चात वंश के समस्त प्रतापी सातवहनो ने भगवान परशुराम को कुलदेवता मान पूजन करते रहे।

सातवाहनों सुंगों व् कण्व के बाद तीसरे ब्राह्मण शासक थे सातवाहनों में प्रथम प्रतापी सम्राट हाल रहे 
सातवाहनों ने मगध तक को कुछ समय तक आपने अधिकार में रखा था 

सातवाहनों में गौतमी पुत्र का उल्लेख बहुत ही आवश्यक है शातकर्णी की विजयों के बारें में हमें माता गौतमी बालश्री के नासिक शिलालेखों से सम्पूर्ण जानकारी मिलती है।
सम्राट शातकर्णी का साम्राज्य गंगा तराइ के निचले हिस्से को छोड़कर समस्त भारतीय भूभाग श्रीलंका समेत अन्य द्वीपों तक फैला हुआ था
माता गौतमी के लेख से यह भी जानकारी मिलती है शक आक्रांता छहरात राजा नाहपान के अहंकार का मान-मर्दन किया।
शातकर्णी का वर्णन शक, यवन तथा पहलाव शससकों के विनाश कर्ता के रूप में हुआ है।
शातकर्णी की प्रथम सबसे बड़ी उपलब्धि क्षहरात वंश के शक शासक नहपान तथा उसके वंशजों की उसके हाथों हुई पराजय थी। जोगलथम्बी (नासिक) समुह से प्राप्त नहपान के चान्दी के सिक्कें जिन्हे कि गौतमी पुत्र शातकर्णी ने दुबारा ढ़लवाया तथा अपने शासन काल के अठारहवें वर्ष में गौतमी पुत्र द्वारा नासिक के निकट पांडु-लेण में गुहादान करना- ये कुछ ऐसे तथ्य है जों यह प्रमाणित करतें है नहपान के साथ उनका युद्ध उसके शासन काल के 17वें और 18वें वर्ष में हुआ तथा इस युद्ध में जीत कर र्गातमी पुत्र ने अपरान्त, अनूप, सौराष्ट्र, कुकर, अकर तथा अवन्ति को नहपान से छीन लिया। इन क्षेत्रों के अतिरिक्त गौतमी पुत्र का ऋशिक (कृष्णा नदी के तट पर स्थित ऋशिक नगर), अयमक (प्राचीन हैदराबाद राज्य का हिस्सा), मूलक (गोदावरी के निकट एक प्रदेश जिसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी) तथा विदर्भ (आधुनिक बरार क्षेत्र) आदि प्रदेशों पर भी अधिपत्य था। उसके प्रत्यक्ष प्रभाव में रहने वाला क्षेत्र उत्तर में मालवा तथाकाठियावाड़ से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक तथा पूवै में बरार से लेकर पश्चिम में कोंकण तक फैला हुआ था।
सम्राट शातकर्णी ने 'त्रि-समुंद्र-तोय-पीत-वाहन' उपाधि धारण की अर्थात एका ब्राह्मण के रथ में जुते हुए अश्वों ने तीनों दिशाओं के समुद्र के जल का पान कर लिया था
जिससे यह पता चलता है कि उसका प्रभाव पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी सागर अर्थात बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं हिन्द महासागर तक था।
दुशरे शातकर्णी का अंतरराष्ट्रीय स्तर का व्याख्यान इस कारण है कि योरपीय सम्राट आक्रांता इंद्रग्निदत्त(योरपीय इतिहास मे अलेक्जेंडर) को बुरी तरह परास्त कर बंदी बना लिया तथा उसके समस्त राज्य समेत उसे वैष्णव धर्म उपासक बना लिया। रोमन अभिलेखों मे टॉलमी द्वारा लिखित भूगोल में वर्णन है तथा मेगस्थनीज की पुस्तक में भी साथ ही राजतरंगिणी में में भी सातकर्णी के साम्राज्य की जानकारिया उल्लेखित है
शातकर्णी के लोकप्रिय शासक होने का प्रामाण यह है कि बौद्ध जैन सनातन सबको समान सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था बहुत से मंदिरों के साथ बौद्ध जैन विहार बनवाये कार्ले चैत्य गुफाएं आदि महानतम निर्माण इसी काल का है जो की एक ब्राह्मण सम्राट द्वारा निर्मित हो इतिहासकारो के लिए आश्चर्यजनक है  
शातकर्णी के प्रिय मित्र कलिंग नरेश जैन मतावलंबी खारवेल भी रहे।
आज यहाँ इस लेख का उद्देश्य यह रहा कि पहली बार किसी फिल्मकार ने किसी महान भारतीय शासक जिसके प्रताप से योरप तक कांपता था और फिर योरप से भारत पर आक्रमण होना ही बंद हो गया के जीवन चरित्र को फिल्मी पर्दे पर उतारने का साहस किया है यह फिल्म फिलहाल तमिल में बनी है जिसमें बालाकृष्ण, हेमामालीनी मुख्य भूमिका में है।

उसका वर्णन शक, यवन तथा पहलाव शासको के विनाश कर्ता के रूप में हुआ है। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्षहरात वंश के शक शासक नहपान तथा उसके वंशजों की उसके हाथों हुई पराजय थी।

जोगलथम्बी (नासिक) समुह से प्राप्त नहपान के चान्दी के सिक्कें जिन्हे कि गौतमी पुत्र शातकर्णी ने दुबारा ढ़लवाया तथा अपने शासन काल के अठारहवें वर्ष में गौतमी पुत्र द्वारा नासिक के निकट पांडु-लेण में गुहादान करना- ये कुछ ऐसे तथ्य है जों यह प्रमाणित करतें है कि उसने शक शासकों द्वारा छीने गए प्रदेशों को पुर्नविजित कर लिया। नहपान के साथ उनका युद्ध उसके शासन काल के 17वें और 18वें वर्ष में हुआ तथा इस युद्ध में जीत कर र्गातमी पुत्र ने अपरान्त, अनूप, सौराष्ट्र, कुकर, अकर तथा अवन्ति को नहपान से छीन लिया। इन क्षेत्रों के अतिरिक्त गौतमी पुत्र का ऋशिक (कृष्णा नदी के तट पर स्थित ऋशिक नगर), अयमक (प्राचीन हैदराबाद राज्य का हिस्सा), मूलक (गोदावरी के निकट एक प्रदेश जिसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी) तथा विदर्भ (आधुनिक बरार क्षेत्र) आदि प्रदेशों पर भी अधिपत्य था। उसके प्रत्यक्ष प्रभाव में रहने वाला क्षेत्र उत्तर में मालवा तथा काठियावाड़ से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक तथा पूर्व में बरार से लेकर पश्चिम में कोंकण तक फैला हुआ था।



उसने 'त्रि-समुंद्र-तोय-पीत-वाहन' उपाधि धारण की जिससे यह पता चलता है कि उसका प्रभाव पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी सागर अर्थात बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं हिन्द महासागर तक था। ऐसा प्रतीत होता है कि अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले गौतमी पुत्र शातकर्णी द्वारा नहपान को हराकर जीते गए क्षेत्र उसके हाथ से निकल गए। गौतमी पुत्र से इन प्रदेशों को छीनने वाले संभवतः सीथियन जाति के ही करदामक वंश के शक शासक थे। इसका प्रमाण हमें टलमी द्वारा भूगोल का वर्णन करती उसकी पुस्तक से मिलता है। ऐसा ही निष्कर्ष 150 ई0 के प्रसिद्ध रूद्रदमन के जूनागढ़ के शिलालेख से भी निकाला जा सकता है। यह शिलालेख दर्शाता है कि नहपान से विजित गौतमीपुत्र शातकर्णी के सभी प्रदेशों को उससे रूद्रदमन ने हथिया लिया।

ऐसा प्रतीत होता है कि गौतमीपुत्र शातकर्णी ने करदामक शकों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर रूद्रदमन द्वारा हथियाए गए अपने क्षेत्रों को सुरक्षित करने का प्रयास किया।

आज यहाँ इस लेख का उद्देश्य यह रहा कि पहली बार किसी फिल्मकार ने किसी महान भारतीय शासक जिसके प्रताप से योरप तक कांपता था और फिर योरप से भारत पर आक्रमण होना ही बंद हो गया के जीवन चरित्र को फिल्मी पर्दे पर उतारने का साहस किया है यह फिल्म फिलहाल तमिल में बनी है जिसमें बालाकृष्ण, हेमामालीनी मुख्य भूमिका में है।
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