हम सब लोगो ने ये शब्द जरूर सुना होगा इसमे कुछ नया नही है। आप यही सोच रहे होगे लेकिन अगर आप ध्यान से देखे तो आपके जीवन का सबसे बडा सच इस शब्दो में छिपा है। हमारी सनातन संस्कृति में पहले गुरूकुल रीति थी आज भी है लेकिन कम है कुछ समय के अनुसार लोग अपने आप से छोड नयी रीति अपना रहे हैं।
आज विधार्थी बचपन से बडे तक पन्द्रह से सोलह साल तक पढाई में लगाता है फिर भी पढाई पूरी होने के बाद न कैरियर बना न सुखी रही आप सोच रहे होगे क्या बकबास है लेकिन धैर्य रखखे हम आपके समझाने कि पूरी कोशिश करेगें। ग्रेजुएशन के बाद या तो आप सरकारी नौकरी के चक्कर में भागेगे या फिर कोई टेक्निकल कोर्स कि तरफ भागेगे कुुछ को पता ही नही क्या करना है आगे क्या नही फिर हम फस जाते है भवर जाल में और आने वाला समय हमारे लिये दुखद बन जाता है। लेकिन यह भी नही कहा जा सकता कि आर्पौचनीटि कम बहुत आर्पौचनीटि बहुत हैं लेकिन पहले गुरूकुल सभ्यता में जो गुरू होते थे। वह अपना तन- मन एकाग्रता के साथ अपने शिष्य पर लगाते थे और हर विधार्थी कि क्षमता के आकलन कर लेते थे फिर उसको दिशा देते थे विधार्थी आनन्द के साथ लगन के साथ आगे बढता था। आज उसके विपरीत दृष्य देखने को मिलता है गुरू रूपये के भूखे हद से ज्यादा लालची हो गये है जिन्होने आज विधार्थी के जीवन को सुधारने का ठेका ले रखा है, इसका बहुत बडा अलग से मार्केट भी बना दिया है। लाखों ,करोडो का व्यापार बन गया है सबसे दुखद बात यह है कि इनको असलियत में विधार्थी से कोई मतलब नही हर साल कबाड कि तरह विधार्थी भर लेते हैं अगली साल फिर नये विधार्थी इसी तरह हर साल यही चलता रहता है। अगर आप पूछे आप के यहा से हजारो लाखेां विधार्थी आते हैं कैरियर कितने का बना इनको कुछ पता नही होता इनको सिर्फ अपना अकांउट फुल करने में तारगेट रहता है। जो विधार्थी ग्रेजुएशन करके आया और सरकारी नौकरी पाने के लिये कोचिंग में एडमिशन लिया उससे क्या पता और कोचिंग इन्सटियूट मंे एक बैंच में हजारो बच्च्ेा होते हैं और टीचर भी अपना पडाया निकल लिये क्या समझ आया कि नही कुछ मतलब नही आज कि ये स्थिति है फिर विधार्थी रगडते-रगडते कुत्ते कि जिदंगी जीते-जीते चार-पांच साल गवा देता है। उसके भूख, प्यास, मूल भूत इच्छाये मरने लगती हैं। कोचिंग इन्स्टयूट के पांच साल में करोेडो का व्यापार हो गया फिर पांच साल बाद विधार्थी जिस पढाई से दुनिया बदलने कि सोचता था आज खुद कि दुनिया गुमनाम नजर आने लगती है इसकी जिम्मेदारी हमारे गुरू कि थी जिस लिये विधार्थी आया था वो दिया नही गुमनाम भीड में खडा हुआ महसूस कर रहा है। आज का छात्र उसमेे कुछ सोचते है कुछ और देखा जाये लेकिन चार पांच साल में खर्च इतना हो जाता है कि अब पहले कही से कमाये फिर कुछ और करे कुछ अपनी जिंदगी विधाता के नाम करके आंख में आंसू या अपने इन्सटिटयूट या समय को कोसता रहता है। कुछ अपनी जिदंगी से हारकर पालग या गुमनाम हो जाते हैं। कुछ लोग सोचते हैं सायद मोबाइल कि तरह कोई लाइफ को भी रिसेट बटन होता दवाते ही सब फिर से नया हो जाता।
We all must have heard this word, there is nothing new in it. You must be thinking the same, but if you look carefully, the biggest truth of your life is hidden in these words. Earlier in our Sanatan culture, there was a Gurukul practice even today, but it is rare that at some time people are adopting new ways.
Today, the student is engaged in studies from childhood till the age of fifteen to sixteen years, yet after completion of the study, neither career was made happy, you must be wondering what is the matter but keep patience and we will try our best to convince you. After graduation, either you will run in the circle of government job or you will run towards a technical course, some do not know what to do or not, then we get caught in the Bhawar trap and the time ahead becomes sad for us. But it also cannot be said that there is much less politics, but earlier there were gurus in Gurukul civilization. He used his body and mind to focus on his disciple and assessed the ability of every student, and then gave direction to him. The student used to move forward with joy. Today, the opposite view is seen, the Guru has become more and more greedy than the starved rupee who has taken the contract to improve the life of the student, has made a very different market for it. Millions, crores have become a business. The saddest thing is that they do not really mean anything to the student every year, like the Kadad they fill the students every year, the next year then the new students continue to do the same every year. If you ask, thousands of students come from here, how many careers they have made, they do not know anything, they just have a target to fill their account. The student who came to graduation and took admission in coaching to get a government job, what do you know and there are thousands of children in a bench in the coaching institute and the teacher also understood that he did not understand that this is the situation today. The student loses four to five years of his life by rubbing and rubbing dogs. His hunger, thirst, original ghost desires start dying. In five years of the coaching institute, crores were traded, and after five years, the student who used to think about changing the world, today the world itself seems to be anonymous, the responsibility of our Guru was that for which the student came, he was not given in the anonymous crowd Feeling standing up Today's students think something in it, something else is to be seen, but in four to five years, the expenditure is so much that now they earn more than anywhere else, after doing something in the name of their life-maker, there is a tear in the eye or cursing their institute or time. . Some lose their lives and become ignorant or anonymous. Some people think that, like Sayed Mobile, any life would have been reset button, all would be new again.