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एक शिष्य ने बुद्व से पूछा कि ,उचित कार्य क्या है ? buddhism in india





सहानुभूति दिखाइये, करूणा नहीं

दोेस्तों आज किसी से मदद मांगो उसके बाद वह व्यक्ति उससे ज्यादा उस व्यक्ति से पाने कि अपेक्षा रखता है चाहे वो स्वयं अपने हो या फिर कोई पडोसी किसी में भी सहानुभूति नहीं आज उसी पर ये विचार है। धिक्कार है ऐसे लोगो के जीवन पर

एक शिष्य ने बुद्व से पूछा कि ,उचित कार्य क्या है ? आपकी सहानुभूति या करूणा संवेदनापूर्ण मन में जब कोई भी नया विचार पैदा होता है वही उचित कार्य है।    .................................................................धम्मपद



यह हमारे सामने कि बाते है कि हिटलर ने 60 लाख यहूदियों कि नृपंश हत्या कर दी कम्प्यूचिया के पाल पाट शासन ने हत्याओं द्वारा कम्प्यूचिया कि जनसंख्या 60 लाख से घटा कर 40 लाख कर दी युद्वों पर हुए व्यय स्टालिन द्वारा विरोधियों को हटाने तथा चीनी और ईरानी क्रांतिओ के बाद हुई हत्याओं को देखते हुए हम अपने से पूछ सकते है कि क्या राष्ट्रों के शासन चलाने के लिये संवेदना- सहानुभूति नामक किसी चीज का स्थान नहीं है।
राजनीति सत्ता स्वार्थ कि बजाय जन- सामान्य के कल्याण के कल्याण कि भावना से होती है। राजनीतिज्ञ लोगो कि दिलचस्पी केवल आगामी चुनाब में होती है। जबकि राजनीति युक्त नेता कि रूचि आगामी पीढी के कल्याण में होती हैं

राजनीति के साथ-साथ यदि सहानुभूति भी हो तो यह सोने में सुगंध कि बात होती है किसी के कष्ट को समझने और दूर करने की भावना संवदेना है। संवेदना और रहम दोनों पृथक चीजे ंहै। रहम से भद्रता पैदा होती है इसका मैं स्वयं उदाहरण हूॅ हमारे ताउ के लडके जो कहने को बडे है लेकिन काम दो कौडी का नाम मात्र कि सफलता में चकना चूर प्रोन्निति कि है लेकिन कभी बडे होने का फर्ज नहीं निभाया मदद तो कि लेकिन रहम वाली जैसा कि उपर वर्णन किया है। हमारे अन्दर कोई मोटीवेशन नहीं उनका क्योकि आज हम कोई भी किताब उठाये उसमें हमेशा लिखा होता हैं दूसरों कि मदद करें। इन्होने फालतू का जीवन जिया अभी तक मुझे ग्रन्थ और महापुरूषों कि किताबे पढकर लगता है लेकिन ये तो भाई का रिश्ता था एक बार मदद कि बाद दोबारा हाल-चाल तक नही पूछना क्यों पूछे भाई कहीं मदद न मांगने लगे ये है सत्यता आज के मानव इससे आप मदद तो करेगे परन्तु उसके दिल में हीन भावना का बीज जरूर बो देगें। सहानुभूति से ध्येय के प्रति आत्म गौरव और किसी के कष्ट दूर करने में सहायता कि प्रबल आकांक्षा होती है।

संवेदना दिल और सहानुभूति का गुण है। यह राजनेताओं को डर असुरक्षा प्रतिक्रिया और बदले कि भावना से उपर उठाती है। इससे उनमे निर्णय लेने कि शक्ति आती है। प्राचीन शासको ंमें शाइरस महान,सम्राट अशेाक जब 587 ई0पू0 मे राजा नेबुकंदंजर ने येरूशलम पर कब्जा कर लिया बेबीलोन वासियों ने राजमहल को आग लगा दी तथा नेबुकदंजर ने जूहा के राजा कि आंखे फुडवा दी। आक्रमणकारी ने शहर कि दीवारे तोड डाली तथा गरीब यहूदियों को गुलाम बना लिया वे मंदिर के कोषागार से सोने और चांदी के बर्तन उठा ले गये।
करीब पचास साल बाद फारस राज्य के संस्थापक साडरस को इजराइल के शासक से एक संदेश मिला कि मेरे शहर येरूशलम कोदोवारा बनवाओ तथा मेरे व्यक्तियों को रिहा करो।
जब साइरस ने बेबीलोन पर चढाई कि तो उसने सभी यहूदियों को मुक्त कर दिया और कहा कि वे जाकर येरूशलम का पुननिर्माण करे। जिन लोगो के साथ यहूदी रहते थे उनसे उसने यहूदियों को रास्ते के लिये खर्च के पैसे देने की भी आज्ञा दी उसने नेबुकदंजर द्वारा लूटे गए सोने -चांदी के बर्तन बेबीलोन के राजकोष से निकाल उन्हे दे दिये।

दि ओल्ड टेस्टामेंट, बुक आफ एजरा के अनुसार 5400 बर्तन वापस किए गए जिसमें से 30 सोने के कुछ चांदी के तथा अन्य विभिन्न धातुओं के थे। कु्ररता के स्थान पर उसने महानता का परिचय दिया । यहूदियों ने उसे ईश्वर के दूत कि उपाधि दी।

आज समाज में लोग थोडी सी भी तरक्की हासिल करने पर हर आदमी को तुच्छ समझने लगता है ये अन्धकार का पर्दा है, हिन्दू धर्म में हमारा मानना है कि हम मरने के बाद स्वर्ग- नरक कि कल्पना है दोस्तो तो लोग ये क्यों भूल जोते है कि वहां हिसाब पूछा जायेगा तब क्या दोगे कि छोटो का छीना,बडे थे क्या न्याय किया अगर ये सत्य हुआ तो कल्पना किजिये कैसे तडपेगी आत्मा कि एक मौका और मिल जाये ऐसा कर दूं जब सब ठीक हो जाये। ये नरक है।

जिस तरह साइरस जयथं्रुष्ट से प्रभावित था उसी तरह अशेाक बुद्व से प्रभावित था उन्होनें साराकिन और लुंडन द्वारा पावर एण्ड मारलिटि में इस कथन को सत्य कर दिया कि मानव जाति के पैगम्बरों और महान शिक्षकों का नेतृत्व आक्रमणकारियों और सम्राटों से अधिक प्रभावी होता है।

प्राचीन ईरान के लिये साइरस का जो महत्व है भारत के लिये वही अशेाक का । अशेाक का मौर्य साम्राज्य मध्य एशिया से सुदूर दक्षिण ओर पूर्व तक फैला था। राज्य विस्तार महत्वकाक्षां से उसने 260 ईवी0 में आज के उडीसा के तट पर स्थित कलिंग पर चढाई कि अनेक व्यक्ति और घोडे मौत के घाट उतार दिये गए इससे अशेाक का दिल पश्चाताप से भर उठा इस नरसंहार के पछतावे का वर्णन उसने अपने 13वें शिलालेख में किया है। अशेाक पर अपनी पुस्तक पर रोमिला थापर लिखती है कि उसने जो मारकाट कि और लोगो को वेधर किया इससे उसे भारी पछतावा हुआ उसी वर्ष उसने बौद्व धर्म अपना लिया और कुछ वर्षो बााद बौद्व धर्म का प्रबल प्रचारक बन गया। 

आज बौद्व धर्म को भारत कि अेार से इन देशो  को दिया गया महान उपहार माना जाता है। हिस्ट्री आॅफ द वल्र्ड में एच0जी0वेल्स अषोक के संबंध में लिखता है कि इतिहास के हजारों राजाओ ंकि षान ओ षौकत ,महानता ,शांति  आदि के क्षेत्रों में अषेाक का नाम सबसे उपर है,वह चमकते सितारे के समान है वोल्गा से जापान तक आज भी उसका आदर है। आज लोग उसे कोन्स्टन्टाइन या शार्लमन  से अधिक स्मरण करते है।



   





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