> Nomad sachin blogs: किसानों का आंदोलन (मोदीजी) आखिर तेरी समस्या क्या है?

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किसानों का आंदोलन (मोदीजी) आखिर तेरी समस्या क्या है?

एक महत्वपूर्ण सवाल :--


जब आंदोलन शुरू हुआ था...
आलू 60/-...
प्याज़ 100/-...
टमाटर 60/-...
मटर 100/-...
गोभी 80/- किलो थी...

आंदोलन के बाद आज आलू 10/-...
प्याज़ 30/-...
मटर 20/-...
गोभी 10/-...
टमाटर 20/- किलो मिल रहा है...

अगर ये किसानों
 का आंदोलन होता तो क्या ये सम्भv tha



इस देश के जो भी किसान केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के पक्ष में नहीं हैं, वे अपने स्तर पर भी इन्हें रद्द कर सकते हैं। देखिए कैसे -

1. पहला कानून है कि किसान केवल एपीएमसी मंडियों में बेचने के लिए मजबूर नहीं होगा, जहाँ चाहे और जिसे चाहे बेच सकेगा। जिन किसानों को यह स्वतंत्रता अच्छी न लगे, वे तय कर सकते हैं कि हम तो एपीएमसी मंडी में जा कर उसी आढ़ती को अपनी फसल बेचेंगे, जिसे पहले बेचते रहे हैं। हो गया पहला कानून रद्द!

2. दूसरा कानून है कि किसान फसल रोपते समय ही पहले से किसी खरीदार से समझौता कर सकेंगे कि उनकी फसल वह खरीदार किस भाव पर खरीदेगा। खरीदार, कथित अम्बानी और अडानी से न करें समझौता! हो गया दूसरा कानून रद्द!

3. तीसरा कानून है कि कोई जितनी चाहे उतनी कृषि उपज इकट्ठा रख सकता है, कोई सीमा नहीं रहेगी। वैसे तो किसी किसान के लिए यह बात लागू ही नहीं है, व्यापारियों के लिए है। पर जो किसान इस कानून को गलत पा रहा हो, वह अपने खलिहान में फसल रखने की सीमा खुद तय कर ले! हो गया तीसरा कानून रद्द!



*ईमानदार होने की सजा भुगत रहे हैं मोदी जी* 

अपने जमाने की सुपरहिट फिल्म "जॉनी मेरा नाम" में अभिनेता सज्जन अपने भाई प्रेमनाथ से पूछता है कि..
 
*"आखिर तेरी समस्या क्या है? आखिर मेरा दोष क्या है जो मुझे तू इतनी बड़ी सज़ा दे रहा है?"*

प्रेमनाथ जवाब देता है
 
*"तुम्हारा दोष ये है कि तुम बेहद शरीफ आदमी हो, बेहद ईमानदार हो और तुम्हारी इस शराफत इस ईमानदारी ने बचपन से ही मेरा जीना हराम कर रखा है।*

*शराब तुम नहीं पीते। जुआ तुम नहीं खेलते। अय्याशी भी तुम नहीं करते। तुम्हारी ये शराफत मुझे परेशान करती है। तुम्हारी ये अच्छाई मुझे बुरा बनाती है। अगर तुम भी बुरे होते तो मुझे कोई परेशानी न होती।* 

*आज विपक्ष की भी यही समस्या 
 साल में 365 दिन, प्रतिदिन 18 घंटे काम करते हैं। शराब नहीं पीते। भ्रष्ट नहीं है। अय्याशी नहीं करते। 5-10 दिन तो क्या, 5 घंटे के लिए भी विदेश में आंखों से ओझल नहीं होते। आगे पीछे कोई बेटा-बेटी, बहू-दामाद नहीं है उनका, जिसके लिए वो धन संग्रह करें। उनका ऐसा कोई रिश्तेदार नहीं है, जो दिल्ली की सत्ता के गलियारों में घूम-घूम के रोब झाड़े, दलाली करे ।*

*मोदीजी की समस्या ये है कि किसी स्विस बैंक में उनका कोई खाता नहीं है। मोदीजी की समस्या ये है कि उनके तहखानों में 2000 और 500 की गड्डियाँ नहीं सड़ रहीं हैं। मोदीजी की ईमानदारी, देशभक्ति, वफादारी ही उनकी सबसे बड़ी समस्या और कमजोरी है।*


ज़ाहिर सी बात है..
 *आज की राजनीति में मोदी जी भ्रष्ट नेताओं के लिए एक समस्या बन गए हैं।*

यही है मोदीजी का धेर्य और किसान प्रेम कि इतनी उदंडता होने के बाद भी गोली नहीं चली जबकि 83 पुलिसकर्मी भाई घायल हैं! एक बार पुराने समय की याद दिलाता हूँ करीब 32 साल पहले 25 अक्टूबर 1988 को किसान नेता महेंद्र सिंह जी टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन के लोग अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में बोट क्लब पर रैली करने वाली थे! किसान बिजली, सिंचाई की दरें घटाने और फसल के उचित मूल्य सहित 35 सूत्री मांगों को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में दिल्ली आ रहे थे, उनको दिल्ली के लोनी

बॉर्डर पर पुलिस प्रशासन के द्वारा बल पूर्वक रोकने की कोशिश की गई! किसान नहीं रुके पुलिस ने लोनी बॉर्डर पर फायरिंग की और दो किसानों की जान चली गई! पुलिस की गोली लगने से कुटबी के राजेंद्र सिंह और टिटौली के भूप सिंह की मौत हो गई थी! इसके विपरीत वर्तमान में सरकार ने किसान भाइयों को आंदोलन के लिए स्थान ही नहीं दिया अपितु हर समय वार्ता के लिए आगे आए! आपने देखा ही होगा कि कितने चरण की वार्ता हो चुकी हैं अब तक लेकिन किसान भाई कोई बीच का रास्ता मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं! ट्रेक्टर रैली की अनुमति भी सरकार द्वारा देदी गयी ताकि किसानो को भड़काने वाले यें ना कह सके कि आपको अनुमति क्यों नहीं मिली! सरकार अपनी ओर से पूर्ण धेर्य धारण करकें बैठी हैं उसके बाद इस प्रकार की अराजकता निंदनीय ही हैं! मेरे हिसाब से गणतंत्र दिवस पर जो हुआ वह बहुत ही गलत था और किसी भी समझदार व्यक्ति को इसका पक्ष नहीं लेना चाहिए! किसान संगठनों को अब समझदारी दिखाते हुए शान्ति स्थापित करके कोई बीच का रास्ता अपनाते हुए आंदोलन को समाप्त कर देना चाहिए! खाली आँख बंद करके विरोध करने की जगह एक बार देखना चाहिए कि क्या सही में किसानो को इन क़ानून में हुए बदलाव से नुक़सान होता हैं या फ़ायदा! चाहे कोई माने या ना माने किन्तु ये आंदोलन अब केवल किसान आंदोलन नहीं रहा हैं!!

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