विवेक क्या है
विचार लो कि मत्र्य हो, न मुत्यु से डरो कभी
मरो, परन्तु यों मरों कि याद जो करें सभी
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे वृथा जिये
मरा नहीं वही कि जो ,जिया न आपके लिये
यही पषु पृव्रत्ति है कि ,आप आप ही चरे
वही मनुष्य है कि ,जो मनुष्य के लिये मरे।
प्रिय मित्रों क्या आप बता सकते है कि विवेक क्या है,विवेक का अर्थ है सत्य क्या है,शाष्वत क्या है,नश्वर क्या है,यह बात ठीक से समझा कर अपने जीवन में ढाल लें। एकमात्र परमात्मा सत्य है। शेष सब जो भी है सो पुत्र,परिवार,भवन,दुकान,मित्र,सम्बन्धी अपने पराये आदि सब अनित्य है।एक दिन इन सबको छोडकर जाना पड़ेगा । इस शरीर के साथ ही समस्त सम्बन्ध निन्दा ,प्रतिष्ठा ,अमीरी गरीबी ,तन्दुरूष्ती यह सब जलकर राख हो जायेगी। तब मित्र,पति-पत्नी,बालक,व्यापार-धन्धे , लोगों कि खुशामद आादि कोई भी मृत्यु से नहीं बचा पायेगी।
आपको एक प्रसंग कि याद दिलाना चाहॅूगा कि भगवान राम के गुरू महर्षि वशिष्ठ कहते है हेे रामजी चांडाल के घर कि भिक्षा खाकर भी यदि सत्संग मिलता हो और उसमे शाष्वत -नशवर का विवेक जागता हो तो यह सत्संग नहीं छोडना चाहिये।
वशिष्ठ जी का कथन कितना मार्मिक है क्योकि ऐसा सत्संग हमें अपने शाष्वत स्वरूप कि ओर ले जायेगा जबकि संसार के अन्य व्यवहार चाहे जैसी भी उपलब्धि कराये अंत में मृत्यु के मुख में ले जायेगे।
दोस्तों मैं ये नहीं कहता कि उपलब्धि हासिल करना बुरी बात है किन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि हम इंसान,,अमर नहीं हैं हमंे हमेशा यह पता होना चाहिये कि हमें एक दिन मरना भी है और उस परमेश्वर को हिसाब भी देना है अपने द्वारा किये गये कामों का अगर ये वात याद रखखी जाये तो बहुत सारी समस्या ऐसे ही सुलझ जायेगी।
आज हर आदमी दुखी है। आप दुखी क्यो है ?
तनिक जागरूकता से विचारिये कि आप दुखी क्यो हैं आपके पास धन नहीं हैं। आपकी बुद्वि तीक्ष्ण नहीं है। आपक पास व्यवहारकुशलता नहीं है।आप रोगी है।आपमें बल नहीं है।या सांसारिक ज्ञान नहीं है।
बहुतो के पास यह सब है, धनवाान है,बलवान है, व्यवहारकुशल है,बुद्विमान हैं,जगत का ज्ञान भी जीभ के सिरे पर है। तथापि वे दुखी है। दुखी इसलिये नहीं है कि उनके पास इस सब वस्तुओ अथवा वस्तुओ के ज्ञान का अभाव है। परन्तु दुखी इसलिये है कि संसार का सब कुछ जानते हुए भी अपने आप को नहीं जानतें।
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