हरियाली अमावस पर उदयपुर में लगता है एक ऐसा महिलाओं का मेला जहां पुरुषों की है नो एंट्री
राजस्थान के उदयपुर में हरियाली अमावस्या के अगले दिन एक ऐसा अनूठा मेला लगता है, जिसमें केवल महिलाओं को ही प्रवेश मिलता है। महिलाओं के हक और सम्मान के लिए अनूठी पहल करते हुए मेवाड़ के महाराणा फतहसिंह ने वर्ष 1898 में इस मेले की शुरुआत की थी। मेले के पहले दिन किसी के प्रवेश पर रोक नहीं होती।
इस साल एक अगस्त को इस मेले में सभी आ सकेंगे, लेकिन दो अगस्त को केवल महिलाओं को ही प्रवेश मिलेगा। हालांकि, मेले की व्यवस्था में लगे नगर निगम के पुरुष कर्मचारियों, पुलिसकर्मियों और दुकानदारों को विशेष अनुमति के जरिये प्रवेश मिलता है।
स्थानीय नगर निगम ने मेले को लेकर तैयारी पूरी कर ली है। इसमें लगने वाली दुकानों के आवंटन का काम भी लगभग पूरा हो चुका है। मेला यहां की प्रसिद्ध फतहसागर झील और सहेली मार्ग पर लगता है। इसमें हर साल करीब 50 हजार लोग आते हैं।
चावड़ी रानी के सवाल पर महाराणा ने दिया था हक
हरियाली अमावस्या मेला मेवाड़ ही नहीं, संभवत: देशभर का एकमात्र ऐसा मेला है, जिसमें एक दिन सिर्फ महिलाओं को ही प्रवेश मिलता है। इतिहासकारों के मुताबिक 1898 में हरियाली अमावस्या के दिन महाराणा फतहसिंह महारानी चावड़ी के साथ फतहसागर झील (इसे तब देवाली तालाब कहा जाता था) पहुंचे तथा छलकते फतहसागर को देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए।
उन्होंने पूरे नगर में मुनादी कराते हुए मेले के रूप में यहां पहली बार जश्न मनाया। इसी दौरान चावड़ी रानी ने महाराणा से सिर्फ महिलाओं के मेले को लेकर सवाल किया।
इसके बाद महाराणा ने मेले का दूसरा दिन केवल महिलाओं के लिए आरक्षित करवाने की घोषणा करवा दी। तब से यह परंपरा चली आ रही है। देश की आजादी के बाद से इसका आयोजन स्थानीय प्रशासन करवाता रहा है। इस बार मेले का आयोजन उदयपुर नगर निगम करवा रहा है।
शिव पूजा के उल्लास का प्रतीक है हरियाली अमावस्या
श्रावण मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहा जाता है। श्रावण में शिव आराधना के 15 दिन हो जाने पर मेले के रूप में उल्लास मनाया जाता है।
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