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स्व0 श्री सुभाषचन्द्र बोस जी का पत्र| 6 years imprisonment

                              स्व0 श्री सुभाषचन्द्र बोस जी 
                                         का पत्र
Letter | from Late Shri Subhash Chandra | Bose Ji | स्व0 श्री सुभाषचन्द्र बोस जी  का पत्र| 6 years imprisonment


दोस्तो जब मैने ये पत्र पढा तो दंग रह गया आप लोगो के साथ शेयर करना जरूरी हो गया किस तरह भयानक कठिनाइयों का सामना किया महापुरूषेंा ने और आज हम उन्हे भूलते चले जा रहें है प्रिय मित्रो ये बात उस समय कि जब श्री लोकमान्य बालगंगाधर तिलक को 6 बर्ष का कारावास हुआ था। 
श्री सुभाषचन्द्रज जी ने केलकर को अपने पत्र मे लिखा है कि श्री तिलक के पास तक जेल में कोई भी अखबार नहीं पहंुचता है। उन जैसे महान प्रतिष्ठित और देश के महान नेता के पास समाचार पत्र न पहुॅचने देना उनको एक प्रकार से मानसिक दुख पहुचाना है और इस मानसिक सजा को जो भ्ुागतता है वही उसकी महतता को जानता है। 
और यह भी स्पष्ट मालूम पडता है कि उनके कारावास में रहने के समय मे देश में रानीतिक जीवन का कार्य - कलाप बहुत धीमी रफतार से चल रहा था। इस विचार से उनको कोई सांत्वना नहीं मिली होगी कि जिस प्रयोजन हेतु उन्होने इस कार्य को अपनाया वह उनकी गैर मौजूदगी में आगे इतनी मंद गति से चल रहा था।

श्री सुभाष ने आगे श्री तिलक के बारे में लिखा है कि वह महान नेता जो मधुमेह जैसे गम्भीर रोग से पीढित होने पर भी इतने लम्बे समय तक (6 वर्ष ) के कारावास को बरदाश्त करता रहा है और उस काल में भी उसने अपनी बौद्विक क्षमता को सुदृढ बनाये रखा और अपनी संघर्ष शक्ति को सुस्त नहीं होने दिया और उस जेलखाने में रहने वाले दिनों में भी अपने देश भारत भूमि के लिये एक ऐसी अमूल्य भेट तैयार कि जिसके परिणमरूवरूप उनको विश्व के महान व्यक्तियों में प्रथम स्थान मिलना चाहिये। जो अमूल्य निधि कारावास में लिखी गयी वह गीता-भाष्य नामक ग्रन्थ था।
महापुरूष लोकमान्यबालगंगाधर तिलक ने अपने कारावास जीवन में प्रकृति के नियमों से भी मोर्चा लिया और उन्हें उन नियमों से बदला लेना जरूरी था सो लिया। जिस प्रकार अलीपुर जेल में देशबन्धु को उनके मृत्यु के निकट पहुचानें का क्रम पूरा हो चुका था उसी प्रकार लोकमान्य जब माण्डले जेल से छूटकर आये थ्ेा तब उनके जीवन के अंतिम क्षण रह गये थे। वे जर्जर शरीर थ्ेा। यह दुख का विषय था कि हम इसी प्रकार अपने महान पुरूषों को खोते रहे,परन्तु मैं साथ ही यह भी विचार करता हूॅ कि यह दुखदायी दुर्भाग्य किसी प्रकार से टाला नहीं जा सकता था,यह तो होना ही था।

Late Shri Subhash Chandra Bose

                                         Letter of


Friends, when I read this letter, you were stunned, it became necessary to share with people how the great difficulties faced by the great people and today we are going to forget them dear friends, at that time when Mr. Lokmanya Balagangadhar Tilak 6 years of imprisonment.

Mr. Subhash Chandra ji has written in his letter to Kelkar that no newspaper reaches the prison till Mr. Tilak. Not allowing newspapers like him to reach the great reputed and great leaders of the country is to give him some kind of mental grief and he who knows the importance of this mental punishment knows its importance.

And it is also clear that at the time of his imprisonment, the work of royal life in the country was going on very slowly. He would not have been comforted by the idea that the purpose for which he adopted this work was going so slow in his absence.

Mr. Subhash has further written about Mr. Tilak that the great leader who despite suffering from a serious disease like diabetes has endured imprisonment for so long (6 years) and even during that period he has shown his intellectual capacity Stayed strong and did not let his fighting power slow down and even during the days of that jail, he prepared such an invaluable gift for his country India land, which resulted in Neco should have first place in the great men of the world. The priceless fund which was written in imprisonment was a book called Geeta-Bhasya.

The great man Lokmanyabalgangadhar Tilak, in his imprisonment life, also took a break from the laws of nature and he needed to take revenge from those rules. Just as Deshbandhu in Alipur Jail was nearing his death, the order of completion was likewise when Lokmanya came out of the jail, he was left in the last moments of his life. They had a shabby body. It was a matter of sorrow that we kept losing our great men in this way, but I also think that this sad misfortune could not be avoided in any way, it was bound to happen.

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मृत्यु क्यों होती है और मृत्यु के पश्चात क्या होता है। Why death

                                              नचिकेता


नचिकेता के पिता का नाम वाजश्रवा था। एक बार वाजश्रवा ने एक बहुत बडा यज्ञ किया। यज्ञ के समाप्त होने पर उन्होने अपनी सब बृद्व गायें दान में दे दी। आश्रम के लोगो व नचिकेता को ये बात अच्छी नहीं लगी। उसने कहा - आप मुझे किसे देगे ??? 

जब नचिकेता की बात महर्षि कि समझ मे आयी तो उन्होने अप्रसन्न होकर कहा कि मैं तुम्हे यमराज को दूगाॅ । नचिकेता आज्ञाकारी पुत्र था। अतः पिता कि आज्ञा का पालन करने के लिये वह यमराज कि खेाज मे चल दिया। तीन दिन तक वन में भटकने के बाद जब नचिकेता कि आंखे खुली तो उसने देखा कि यमराज सामने खडे हैं। यमराज ने कहा कि ऐसी तुम पर कौन से विपत्ति आ पडी है जिसके कारण तुम मेरे पास आना चाहते हो ?????

नचिकेता ने कहा कि मैं तो पिता कि आज्ञा से आपकी सेवा मे आया हूॅ। अब मुझे आपकी आज्ञा का पालन करना है। यमराज ने प्रसन्न होकर उसे तीन वरदान मांगने के लिये कहा। नचिकेता ने तीन वरदान मांगे-1.. मेरे पिता जी मुझसे प्रसन्न हो जायें। 2...मुझे स्वर्ग लोक में पहुचने कि विद्या बतलाइये। 3.....मृत्यु क्यों होती है और मृत्यु के पश्चात क्या होता है।

यमराज ने नचिकेता कि तीनों बातों को पूरा किया। नचिकेता के जीवन से हमको यह शिक्षा मिलती है कि पिता कि आज्ञा का पालन करना पुत्र का परम धर्म है। 

                       व्यासजी

व्यास जी के पिता का नाम पाराशर ऋषि था और उनकी माता एक मछुवे कि कन्या थी। इनका रंग काला था, इसलिये इनका नाम कृष्ण रखा गया। इनका जन्म एक द्वीप में हुआ था। अतः इनको द्वैपायन भी कहा गया। इन दोनेां को मिलाकर इन्हें द्वैपायन व्यास कहा जाता है । पाण्डु और धृतराष्ट्र इन्हीं के पुत्र थे। व्यास ने महायुद्व को रोकने के लिये भरसक प्रयास किया पर उनकी बात किसी ने न मानी इन्हीं व्यास ने एक महान ग्रन्थ लिखा जिसका नाम उन्होने जय रखा जो बाद में महाभारत कहलाया। इसमें उस समय चैवीस हजार श्लोक थे। बाद में इनके शिष्योें ने यह संख्या एक लाख कर दी। 

महाभारत के समान संसार में दूसरा कोई विशाल ग्रन्थ नहीं है। इनमें मावन-जीवन से सम्बन्धित प्रत्येक विषय के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक लिखा गया है। वही कारण है कि इसको पांचवा वेद भी कहते हैं। गीता इसी का साराशं है।

Nachiketa

Nachiketa's father's name was Vajashrava. Once, Vajashrava performed a huge sacrifice. At the end of the yajna, he donated all his old cows. Ashram's people and Nachiketa did not like this. He said - Whom will you give me ???

When Maharishi came to understand about Nachiketa, he was unhappy and said that I will give you to YamrajNachiketa was an obedient son. Therefore, to obey the father's orders, he went to the camp of Yamraj. After wandering in the forest for three days, when Nachiketa's eyes opened, he saw that Yamraj was standing in front. Yamraj said that what kind of misfortune has come on you because of which you want to come to me ?????

Nachiketa said that I have come to your service with the permission of the father. Now I have to follow your orders. Yamraj was pleased and asked him to ask for three boons. Nachiketa asked for three boons - 1 .. My father should be happy with me. 2 ... Tell me the knowledge of reaching heaven. 3 ..... Why does death happen and what happens after death.

Yamraj fulfilled all the three things that Nachiketa did. From the life of Nachiketa, we get the lesson that obeying the father's command is the supreme religion of the son.

                       Vyasji

Vyas ji's father's name was Parashar Rishi and his mother was a fisherman's daughter. His color was black, so he was named Krishna. He was born on an island. Hence, they were also called Dwaipayan. Together these two are called Dwaipayan Vyas. Pandu and Dhritarashtra were the sons of these. Vyas tried his best to stop the Mahayudv, but he did not listen to them. These Vyas wrote a great book, which he named Jai, which was later called Mahabharata. There were 24 thousand verses at that time. Later his disciples increased this number to one lakh.

Like Mahabharata, there is no other huge book in the world. It has been written in detail in relation to every topic related to life. That is the reason why it is also called the fifth Veda. The Gita is the essence of it.

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जिदगीं में आप कितने खुश हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं हैं। real hero


                                         रियल हीरो

जिदगीं में आप कितने खुश हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं हैं।
बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि आपके कारण कितने लोग खुश हैं।

 real hero | life of real hero | रियल हीरो


कभी -कभी उच्च पदों वाले नेताओं या (बडो से) सैकडों हजारों कि बजाय लाखों लोंगों कि व्यवस्था कि अपेक्षा कि जाती है । इस सम्बन्ध में उनकी क्षमता या अक्षमता पर राष्ट्र (घर) का भाग्य निर्भर करता है।
भारत में मुगल साम्राज्य कि स्थापना बाबर के दृढ और सोच समझ कर उठाये गये जोखिम पूर्ण कार्य के साथ हुई थी। बाबर और  उनके साथी विदेशियों के रूप में एशिया से भारत आये थे। वे अल्पसंखयक जाति के थे और इस्लाम के मानने वाले थे। बाबर ने जिस देश पर शासन कि इच्छा कि उसकी अधिकांश आबादी हिन्दुओं कि थी और उसके उत्तराधिकारियों का सबसे अधिक प्रतिरोध दिल्ली के साथ लगे क्षेत्रो में राज्य करने वाले वीर राजपूतो ने किया

बाबर के पोते अकबर ने 16 साल कि आयु में गददी संभली उसने आरम्भ में तलवार के जोर वर काम किया । वह राजपूतो कि वीरता का सम्मान करता था और शीघ्र ही उसने अनुभव किया कि वह एक विदेशी देश में है और उसे युद्व या समझौते मे से एक को राज्य का शासन के लिये चुनना होगा।

अकबर ने राजपूतों कि ओर दोस्ती का हाथ बढाया और राजपूत राजकुमारी से शादी करने कि इच्छा व्यक्त कि । उससे उत्पन्न जहांगीर राज्य का उत्तराधिकारी बना। जहांगीर ने अपने पिता का अनुशरण किया। भारत कि जातियों और धर्मो को अपने अनुकूल बना लेना सभी शासको के लिये एक चुनौती भरा काम था। बाद में 

प्रधानमंत्री जहरलाल नेहरू ने अकबर के बारे में लिखा.........

एक योद्वा के रूप में अकबर ने भारत के एक बहुत बडे भाग को जीत लिया लेकिन उसकी दृष्टि एक बहुत बडी स्थायी विजय पर थी। लोगो के दिल और दिमाग पर विजय पाने कि इच्छा उसमे संयुक्त भारत का पुराना सपना पनपा । वह सपना केवल राजनीतिक रूप में भारत को एक करने का नहीं वरन वह देशवासियों को एक व्यक्ति के रूप में संगठित करना चाहता था।



How happy you are in life is not important.
Rather important is how many people are happy because of you.

Sometimes a system of millions of people is expected instead of hundreds of thousands of high-ranking leaders or (from the elders) hundreds. In this regard, the fate of the nation (home) depends on their ability or inability.

The Mughal Empire in India was established with the risky and deliberate work done by Babur. Babur and his fellow foreigners came to India from Asia. He belonged to a minority caste and believed in Islam. Babur ruled the country that most of its population belonged to Hindus and the most resistance of his successors was done by Veer Rajputs who ruled in the areas adjoining Delhi.

Babar's grandson, Akbar, at the age of 16, he did Gaddi Sambhali at the beginning and worked heavily with the sword. He respected the valor of the Rajputs and soon realized that he was in a foreign country and had to choose one of the wars or compromises to rule the state.

Akbar extended a hand of friendship to the Rajputs and expressed his desire to marry the Rajput princess. Jehangir, jehangir ghandy
jehangir a raja
dr jehangir a kohiyar
jehangir building fortborn from it, succeeded the kingdom. Jahangir followed his father. It was a challenging task for all the rulers to make India's castes and religions favorable. Later

Prime Minister Zaharlal Nehru wrote about Akbar ………

As a warrior, Akbar conquered a large part of India, but his vision was on a very permanent victory. The desire to conquer the hearts and minds of the people, the old dream of united India flourished in it. That dream was not only to unite India politically, but he wanted to organize the countrymen as one people.

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लोग ये भूल जाते है कि एक दिन वह मर जायेगें। Battles and hatred

                                    लडाईयां और बैर भाव

लडाईयां बैर भाव (अन-मन) क्यो बढ रही है क्योकि लोग ये भूल जाते है कि एक दिन वह मर जायेगें।


दोस्तों हर दिन रात में जितने लोग सोते हैं अगले दिन उनमें से 1 लाख लेाग नहीे जागते।

अगर हम जाग जाते हैं तो यह बहुत बडी बात नहीं हैं आप जाग गये एक लाख लोग नहीं जागे वाह- वाह बस छत केा देखिये मुस्कुराइये।
कई लाख लोगो के लिये जो उनका प्रिय था जागा ही नहीं तो अपने आस-पास के 6-7 लोगो को चेक करो सभी जाग गये। आप जाग गये और जो लोग आपके लिये खाश हैं वो जाग गये वाह क्या ये शानदार दिन नहीं हुआ।

आपको ऐसा नहीं लगता दिक्कत ये है कि आप भ्रम में जी रहे हैं कि आप अमर है। कहीं - कहीं आपको लगता है आप अमर हैं । अगर आप जागरूक है तो आपके पास शिकायतें ,लडने,झगडने का समय होता।

खुद को याद दिलाइये-मेरी भी मौत होगी एक चीज के प्रति जागरूक रहिये आप अपने आप आध्यात्मिक बन जायेगें।
यह छोटा सा जीवन है मैं नश्वर हूॅ।

दो दिन बाद आप बहुत शानदार बन जायेगे। देखना 

Battles and hatred

Why is the fighting hate (un-mind) increasing because people forget that one day they will die.
Friends, every day the people sleep at night, the next day 1 lakh people will not wake up
If we wake up then it is not a big deal. You have woken up a lakh people. Wow, wow, just look at the ceiling and smile.

For many lakh people who were dear to him, he did not wake up, so check 6-7 people around him and everyone woke up. You woke up and the people who are happy for you woke up. Wow it was not a great day.

The problem you don't feel is that you are living in the illusion that you are immortal. Somewhere you feel you are immortal. If you are aware then you would have had time to complain, fight, quarrel.

Remind yourself - I too will die. Be aware of one thing, you will automatically become spiritual.
This is a small life, I am mortal.

After two days you will become very brilliant. To see

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they will die of hunger, they will die soon, they will all die, they will both die, at the end do bees know, they will die, they both die.at the end, they both die at the end, how they will die ,how we will die living know, they will die, we will live ,they will die ,they will live until ,they die ,they will never die, they will not die, they will not die, old or they will die, they will not die, young will they die you

हम सभी को मदद करनी होगी तभी वो ऐसा कर पायेगे, safe water

                                                 पानी


दोस्तो पानी हमारे जीवन को चलाने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। एक अमूल्य रत्न है।

दोस्तों 2035 तक भारत में जिस किसी के गुजारे के लिये जितना पानी चाहिये उसका सिर्फ 50/ ही रह जायेगा। 

क्या आप बिना पानी के रह सकते हैं असम्भव ???

मगर इसकी शुरूआत हो चुकी है नदियांें का 40/ पानी सूख चुका है और 2035 तक 60/ पानी सूख जायेगा कई नदियां जो हजारों सालों से बहती आ रही है अब सिर्फ बारिश में बहती है। बारिश अब वो भी धीरे - धीरे कम होती चली जा रही है।
लोग सोचते है कि पानी के कारण पेड हैं नही पेडो के कारण पानी है ये बात आपको समझनी होगी ।

जब सबाल है तो इसका उपाय क्या है तो इसका उपाय ये है कि 

1- हमें ये पक्का करना हांेगा कि नदियों के दोनो तरफ एक कि0मीटर कि चैडाई में पेड ही पेड हो।

2- अगर सरकारी जमीन है तो वहीं जंगल लगारे जाये

3- अगर किसी किसान कि जमीन है तो वहां फलेंा के पेड लगायें जाये और औशधियों के पेड

4- पर हमें यह पक्का करना होगा कि हम भोजन में कम से कम 30/ फल खायें 

अगर हमारे भेजन में 30/ हिस्सा पेडो से होगे तभी किसान फलों कि खेती कर पायेगें वे हमें बेच सकते हैं। अगर पानी 60/ सूख गया तो समस्या भयानक होगी इस लिये हमें इसके लिये एक मजबूत सरकारी नीती कि जरूरत होगी सरकार नीति बनाने के लिये तैयार है मगर हम सभी को मदद करनी होगी। 

दोस्तो लोकतंत्र का क्सा मतलब है। हम सभी को मदद करनी होगी तभी वो ऐसा कर पायेगे।

Water

Friends, water is very important for running our life. Is an invaluable gem.

Friends, by 2035, the amount of water that one needs in India will be only 50 / -.
Can you live without water, impossible ???

But it has started 40 rivers of water has dried up and by 2035, 60 / water will dry up. Many rivers which have been flowing for thousands of years now only flow in rain. The rain is now gradually decreasing.

People think that there are trees because of water, there is water because of the pedo, you have to understand this.
When it is strong then what is the solution? Its solution is that

1- We would like to make sure that there is only a tree of 0 meters on both sides of the rivers.

2- If there is government land, then forest should be planted there
3- If a farmer has land, then plant trees of fruit and plant trees
4- But we have to make sure that we eat at least 30 / fruits in food

If the payment is 30 / part from our pedo, then only the farmers will be able to cultivate fruits, they can sell us. If the water dries 60 /, then the problem will be terrible, so we will need a strong government policy for this, the government is ready to make policy but we all have to help.

Friends is just what democracy means. We all have to help only then they will be able to do so.

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वैराग्य और आत्मत्याग,वैराग्य का यह अर्थ नहीं कि संसार को छोडकर जंगल में रहने लग गये




वैराग्य का यह अर्थ नहीं कि संसार को छोडकर जंगल में रहने लग गये जाकर। वैराग्य कि भावना जीवन कि समस्त प्रवृत्तियों में व्याप्त होनी चाहिये। कोई गृहस्थ यदि जीवन को भेाग न समझकर कर्तव्य समझता है वह गृहस्थ मिट नहीं जाता जो व्यापारी अपना काम त्याग कि भावना ये करता है उसके हाथों भले ही करोडो रूपये का लेन-देन होता हो फिर भी वह यदि अपने धर्म का पालन करता हो तो अपनी योग्यता का उपयोग सेवा के लिये करेगा। इसलिये वह किसी को धेाखा नहीं देगा। सटटा नहीं करेगा। सादा जीवन व्यतीत करेगा किसी प्राणी को दुख नही पहुचायेगा ।

त्यागमय जीवन कला का उत्तम प्रतीक और सच्चे आन्नद से परिपूर्ण होता है। जो सेवा करना चाहता है वह अपने आराम करने मेे एक क्षण भी व्यर्थ नहीं करेगा। क्योकि उसे वह प्रभु कि इच्छा पर छोड देता है। इसलिये वह जो कुछ हाथ लग जाए उसी को बटोर कर बोझ नहीं बडायेगा सिर्फ उतना ही लेगा जितने कि उसे सख्त जरूरत है और बाकी छोड देगा। असुविधा होने पर भी वह मन में शान्त क्रोधरहित और अविचलित होगा। सदगुण कि भाति उसकी सेवा ही उसका पुरस्कार होगा और वह उसी से संतुष्ट रहेगा दूसरों कि स्वेच्छापूर्वक सेवा में हमारी शक्तियां लगनी चाहिये। और उसे अपनी सेवा से तरजीह मिलनी चाहिये असल में शुद्व भक्त अपने लिये कुछ भी न रखकर अपने को मानव सेवा में समर्पित कर देता है।

अपने त्याग पर हमें देखी नहीं होना चाहिये जिस त्याग से पीडा होती है। उसकी पवित्रता नष्ट हो जाती है और अधिक जोर पडने पर नष्ट हो जाती है मनुष्य उस वस्तुओ को त्याग करता जिन्हे वह हानिकारक मानता है। इसलिये त्याग करने से उसे सुख हेाना चाहिये।

                                    यंग इण्डिया 

Disappointment does not mean leaving the world and starting living in the forest. The feeling of detachment should permeate all the tendencies of life. If a householder does not consider life as a duty, that householder does not disappear, the businessman who feels the sacrifice of his work, even if there is a transaction of crores of rupees in his hands, if he follows his religion, then his Will use the qualification for the service. Therefore, he will not beat anyone. Will not stick. Will lead a simple life, will not hurt any animal.

Solitaire life is a perfect symbol of art and full of true joy. The one who wants to serve will not waste even a single moment in resting. Because he leaves it at the will of God. Therefore, whatever he gets on hand, he will not take the burden by collecting only what he desperately needs and will leave the rest. Even in the face of discomfort, he will be silent, angry and unsteady. By virtue of his service, his service will be his reward and he will be satisfied with the same, our powers should be engaged in voluntary service of others. And he should get priority from his service, in fact, a pure devotee does not keep anything for himself and dedicates himself to human service.

We should not have seen at our sacrifice, the sacrifice that comes with it. His purity is destroyed and upon exerting too much, a man renounces the things which he considers harmful. That is why he should be happy by sacrificing

                                    Young india

भारत कि भावी संस्कृति,Future culture of india,गांधी जी

                          भारत कि भावी संस्कृति

दोस्तो ये लेख गांधी जी द्वारा विभिन्न-विभिन्न लेखेंा पत्रिकाओं द्वारा प्राप्त किया गया है। इसमे गांधी जी के ताकतवर ठोस मूल मंत्र है। जिसको आज के युग में इसकी बहुत जरूरत है।

काई संस्कृति जिंदा नहीं रह सकती ,अगर वह दूसरो का बहिष्कार करने कि कोशिश करती है। इस प्रकार भारत में शुद्व आर्य संस्कृति जैसी कोई चीज मौजूद नही है। आर्य लोग भारत के ही रहने वाले थ्ेा या जबरन यहां आ घुसे थ्ेा। इससे मुझे बहुत दिल चस्पी नहीं है। मुझे जिस बात में दिलचस्पी है वह यह है कि मेरे पूर्वज एक दूसरे के साथ बडी आजादी के साथ मिल गये और मौजूदा पीढी वाले हम लोग उस मिलावट की ही उपज है।
      हरिजन 


मैं नही चाहता कि मेरे घर के चारों ओर दीवारे खडी कर दी जायें और मेरी खिडकियां बन्द कर दी जाये। मै चाहता हूॅ कि सब देश कि संस्कृतियों कि हवा मेरे घर के चारो ओर अधिक से अधिक स्वतंत्रता के साथ बहती रहे। मगर मै उनमें से किसी के झोके में उड नहीं जाउगां।मै चाहूगां की साहित्य मे रूचि रखने वाले हमारे युवा स्त्री-पुरूष जितना चाहें अंग्रजी और संसार कि दूसरी भाषाएं सीखें फिर उनमें यह आशा रखूगां कि वे अपनी विद्वता का लाभ भारत और संसार को उसी तरह दे। 

जैसे बोस,राय या स्वयं कविवर दे रहे हैं। लेकिन मै यह नहीं चाहूंगा कि एक भी भारतवासी अपनी मातृभाषा को भूल जाए। उसकी उपेक्षा करें उस पर शर्मिन्दा हो या यह अनुभव करे कि वह अपनी खुदकी देशी भाषा में विचार नहीं कर सकता या अपने उत्तम विचार प्रकट नहीं कर सकता मेरा धर्म कैदखाने का धर्म नहीं है।
          यंग इंण्डिया

Future culture of india

Friends, this article has been received by Gandhi ji from various articles magazines. It has the strong concrete mantra of Gandhi ji One who needs it very much in today's era.
Kai culture cannot survive if it tries to boycott others. Thus there is no such thing as pure Aryan culture in India. The Aryans either lived in India or forcibly came here. It doesn't make me very heartbroken. What I am interested in is that my forefathers got along with each other with great freedom and we of the present generation are the product of that adulteration.

               Harijan

I do not want the walls around my house to be erected and my windows should be closed. I want that the air of all the country's cultures should flow with maximum freedom around my house. But I will not be able to fly in any of them. I want as much as our young men and women who are interested in literature to learn English and other languages ​​of the world, then hope that they will benefit from their scholarship to India and the world. Give it like

Like Bose, Rai or Kavir himself. But I would not like a single Indian to forget their mother tongue. Ignore him, be ashamed of him or feel that he cannot think in his own native language or express his best thoughts. My religion is not the religion of prison.
                  Young india

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विचारणीय प्रश्न केवल यह है कि गोरक्षा करना ठीक है ,गो रक्षा क्यों Gandhi ji




गांधी जी गो रक्षा मेरे लिये मनुष्य जाति के विकास में एक सबसे अदभुत चमत्कारपूर्ण घटना है। यह मानव को अपनी स्वाभाविक मर्यादा से बाहर ले जाती है। मेरे लिये गाय का अर्थ है समस्त मनुष्येतर सृष्टि गाय के द्वारा मनुष्य  को तमाम प्राणियों के साथ तदात्मय अनुभव का आदेश दिया गया है। गाय को देवता क्यों माना गया यह मेरे लिये स्पष्ट है । भारत में गाय मनुष्य का उत्तम साथी है । वह कामधेनु है । गाय मूर्तिमन्त करूणामयी कविता है। इस नम्र और निरीह पशु कि आखेंा से करूणा टपकती है। भारत के करोडो लोगो कि माता है। 
गोरक्षा का अर्थ है 

भगवान कि समस्त मूक सृष्टि कि रक्षा प्राचीन ऋषियों ने भले वे कोई भी हों गाय से इसका आरम्भ किया जो हिन्दू गाय कि रक्षा करता है उसे हर एक पशु कि रक्षा करनी चाहिये परन्तु सब वातों का विचार करते हुए हम सिर्फ इसलिये उसकी गो रक्षा में दोष न निकालें कि वह दूसरे जानवरों को नहीं बचा पाता। 
इसलिये विचारणीय प्रश्न केवल यह है कि गोरक्षा करना ठीक है या नहीं उसका ऐसा करना गलत नहीं है यदि अहिसां मे विश्वास रखने वालों का आम तौर पर जानवरों को न मारना कर्तव्य समझा जा सकता है। और प्रत्येक हिन्दू बल्कि प्रत्येक धार्मिक पुरूष ऐसा ही करता है। आम तौर पर जानवरों को न मारने का और इसलिये उन्हे ं बचाने का कर्तव्य निर्विवाद सत्य माना जाना चाहिये। 

तब तो हिन्दू धर्म के लिये तारीफ कि बात है कि उसने गोरक्षा को कर्तव्य समझकार अपनाया है। गोरक्षा सूक्ष्म अथवा आध्यात्मिक अर्थ है सभी जीवों कि रक्षा करना हमारे ऋषियों ने आश्चर्य जनक अविष्कार किया है। मै प्रतिदिन इसकी सच्चाई का कायल होता जा रहा हूॅ।

Why cow protect

 Young india

Gandhiji's protection is for me one of the most amazing miracles in the development of mankind. It takes the human out of his natural dignity. For me, cow means that all non-human creation has been ordered by the cow to experience human beings with all beings. Why the cow was considered a deity is clear to me. In India, cow is the best companion of man. He is Kamadhenu. Cow idolatry is a compassionate poem. Compassion drips from the eyes of this meek and innocent animal. Is the mother of millions of people in India.

Cow protection means

The ancient rishis who protected all the silent creation of God started it from the cow no matter whoever protects the Hindu cow, it should protect every animal, but considering all the vatas, we are only guilty of protecting its cow. Do not remove that he cannot save other animals.

Therefore, the question to be considered is whether it is right to protect cow or not if it is wrong to do so if those who believe in non-violence can generally be considered not duty to kill animals. And every Hindu but every religious man does the same. Generally, the duty of not killing animals and therefore protecting them should be considered as undisputed truth.


Then it is a matter of praise for Hindu religion that it has adopted cow protection as a duty. Cow protection is a subtle or spiritual meaning to protect all living beings. Our sages have invented wonders. I am getting convinced of its truth every day.

(आजादी के दिवाने) स्व0 श्री दादाभाई नरौजी,(Freedom lovers) ,Late Shri Dadabhai Narouji

                                               (आजादी के दिवाने) 
                              स्व0 श्री दादाभाई नरौजी


1866 में लंदन मेें ईस्ट इण्डिया एसोशिऐशन कि स्थापना करके ब्रिटिश शासन का सर्वप्रथम आर्थिक विश्लेशण प्रस्तुत करने वाले दादाभाई नरौजी का नाम भारतीय राष्ट्रीय क्राग्रेस के संस्थापक सदस्यों में अग्रण्य हैं। 1885 से 1907 के बीच क्रांगेस में नरमपंथी या उदारवादी नेताओं का बोलबाला था। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ,दादाभाई नरौजी ,मदनमोहन मालवीय ,गोपालकृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता आादि शान्तिपूर्ण ढंग से मांगे मनवाने के लिये प्रयासरत थे। अंग्रेजो कि दासता से मुक्ति दिलाना इन सभी नेताओं का एकमात्र लक्ष्य था। दादाभाई नरौजी ने यह मंाग उठाई कि इग्लैण्ड कि पार्लियामेन्ट में कम से कम एक भारतीय के लिये भी सीट सुनिश्चित होनी चाहिये। उनकी प्रखर प्रतिभा से प्रभावित और अकाटय तर्को से पराजित होकर अंग्रेजों ने उनकी यह मांग मान ली। उन्हें ही इग्लैण्ड में भारतीयो का प्रतिनिधित्व करने के लिये चुना गया। अंग्रजों कि पार्लियामेण्ट में खडे होकर उनके विराध में बोलना दादा भाई जैसे व्यक्ति के लिये ही सम्भव था उन्होने बडी सूझा- बूझा से अपने इस दायित्व का निर्वहन किया देश कि स्वतंत्रता कि लिये दादाभाई नौरोजी के मार्गदर्शन और उनके सक्रिय योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
देश और समाज कि सेवा कि लिये समर्पित नौरोजी नरमपंथी नेताओं के तो आदर्श थे ही लोकमान्य बालगंगाधर तिलक जैसे गरमपंथी नेता भी उन्हें प्ररेणास्त्रोत मानते थे। तिलक ने दादाभाई के साथ रहकर बकालत का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त किया एक बार दादाभाई को किसी मुकदमे के लिये इग्लैण्ड जाना पडा उनके साथ सहायक के रूप में तिलक जी भी गए दादाभाई मितव्ययिता की दृष्टि से लंदन में न रूककर वहां से दूर एक उपनगर में ठहरे सवेरे जल्दी उठने कि उनकी आदत भी थी। उनकी घर का सारा काम वे स्वयं करते थे एक दिन जब वे घर का काम कर रहे थे तभी तिलक जी की आंख खुल गयी उन्होने कहा क्या आज नौकर नहीं आये जो सब काम आप को करना पडता है इस पर दादाभाई ने तिलक को समझाते हुए कहा अपना काम मैं स्वये करता हू अपने किसी कार्य कि लिये दूसरो पर निर्भर नहीं रहता ।यह सुनकर तिलक जी अभिभूत हो गये।      

                                      (Freedom lovers)
                              Late Shri Dadabhai Narouji

Dadabhai Narouji, who founded the East India Association in London in 1866 and presented the first economic analysis of British rule, is a pioneer among the founding members of the Indian National Congress. Between 1885 and 1907, the moderate or moderate leaders dominated the Kranges. Surendranath Banerjee, Dadabhai Narauji, Madan Mohan Malaviya, Gopalkrishna Gokhale, Ferozeshah Mehta etc. were trying to get peaceful demands. Freedom from slavery was the sole goal of all these leaders. Dadabhai Narauji raised the demand that there should be a seat for at least one Indian in the Parliament of England. Impressed by his sharp talent and defeated by the irrational arguments, the British accepted this demand. He was chosen to represent the Indians in England. Standing in the Parliament of the British, it was possible for a person like Dada Bhai to speak in his opposition, he discharged his responsibility with great thought and guidance of Dadabhai Narauji for the freedom of the country and his active contribution will never be forgotten. .

Not only were the ideals of Naoroji moderate leaders dedicated to the service of the country and society, even the extremist leaders like Lokmanya Balgangadhar Tilak considered them as the inspiration. Tilak lived with Dadabhai and got practical knowledge of Bakalat. Once Dadabhai had to go to England for a trial, Tilak ji went with him as an assistant. Dadabhai did not stop in London in view of austerity and stayed in a suburb far away from London. He had a habit of getting up early. He used to do all his household work himself. One day when he was doing household work, Tilak ji's eyes were opened, he said, "Did not the servants come today, you have to do all the work, on which Dadabhai explained to Tilak." I do my own work and do not depend on others for any work. Tilak ji was overwhelmed on hearing this.







(आजादी के दिवाने) स्व0 श्री सुरेन्द्र नाथ बनर्जी (Freedom lovers) | Late Shri Surendra Nath Banerjee

                                                          (आजादी के दिवाने) 
                                   स्व0 श्री सुरेन्द्र नाथ बनर्जी


सुरेन्द्र नाथ बनर्जी 10 नबम्वर 1848 से 6 अगस्त 1925 भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रमुख उदारवादी नेता थे। उन्होने बडी लगन और परिश्रम से आईसीएस कि परीक्षा उत्तीर्ण कि थी। उन दिनो आईसीएस कि परीक्षा उत्तीर्ण करना बहुत कठिन था परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी सुरेन्द्र नाथ बनर्जी को किसी प्रावधान के आधार पर रोक दिया गया इसी बीच 1877 में आइसीएस में प्रवेश कि आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गयी जिसके फलस्वरूप भारतीयों के लिये बैठना असंभव ही हो गया समस्त भारतीयों के शिक्षित वर्ग के स्वर में स्वर मिलाते हुए सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने सरकार कि इस भेदभाव पूर्ण नीति का विरोध किया इस कारण उन्हें उनके पद से हटा दिया गया वे ऐसा चाहते भी थे। उनकी हार्दिक इच्छा भी थी कि भारतीयों के राजनीतिक हितों और उददेश्यों की पूर्ति के लिये प्रबल जनमत तैयार किया जाये। इसके लिये उन्होने आंन्नदबोस के साथ मिलकर इंडियन एसोशिऐशन कि स्थापना कि।

भारत के वैधानिक शासन कि स्थापना के पक्षधर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी भारतीय सभ्यता और संस्कृति के उत्थान के लिये अनेक कार्य किए 1890 में कांग्रेस द्वारा सर्वप्रथम सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार के विरूद्व भारतीयो के अधिकारेां के लिये आवाज उठाई उन्होने 1879 में बंगाली नामक साप्ताहिक से दैनिक बनाया और पत्र के संस्पादक के रूप में अंग्रजों के अत्याचारों कि बखिया उधेडने लगे 1880 में बंगाली पत्र पर मुकदमा चलाया गया जिसमें बनर्जी को दो महीने के लिये जेल हो गयी जेल से छूटने के बाद वे पुनः बंगाली का पूर्वत संपादन करने लगे उन्होने एलबर्ट बिल, लार्डकर्जन के यूनिवर्सिटी विल, कालकाता कारर्पाेरेशन बिल आदि जिस अनोखे अंदाज में प्रभावशाली विरोध किया उससे उनकी लोकप्रियता बहुत बढ गयी। 1883 में वह बंगाल नरमदल वालो के अधिवेशन कांउसिल के सदस्य निर्वाचित हुए 1918 में नरम दल वालों के अधिवेेशन में उन्हे ंसभापति मनोनीत किया गया उनकी उनकी विद्वता को प्रणाम करते हुए 1921 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हे ,सर, की उपाधि प्रदान कि थी। 

(Freedom lovers)
Late Shri Surendra Nath Banerjee

Surendra Nath Banerjee 10 Nabamwar 1848 to 6 August 1925 was the prominent liberal leader of the Indian National Movement. He passed the ICS examination with great diligence and diligence. In those days it was very difficult to pass the ICS exam, even after passing the examination, Surendranath Banerjee was stopped on the basis of any provision, meanwhile, in 1877, the age of admission in the ICS was reduced from 21 to 18 years which resulted in seating for Indians. It was impossible that Surendra Nath Banerjee shook the voice of the educated class of all Indians, this government's discriminatory policy and Locking this was due to be removed from his post, he was so inclined. He also had a strong desire that a strong public opinion be prepared for the fulfillment of the political interests and objectives of Indians. For this, he along with Anandbos established the Indian Association.


Surendranath Banerjee, who was in favor of the establishment of the legal rule of India, did many things for the upliftment of Indian civilization and culture. In 1890, the Congress, under the leadership of Surendranath Banerjee, first raised the voice for the rights of Indians against the British government. In 1879, he called the daily from Bengali weekly Made and began to expose the atrocities of the British as the editor of the letter In 1880, a Bengali letter was prosecuted in which Banerjee was jailed for two months and after he was released from prison, he began to re-edit the Bengali. He introduced the Albert Bill, the University Will of Larkarken, the Calcutta Corporation Bill, etc. in such a unique way as to impress effectively His popularity increased greatly due to this. In 1883, he was elected a member of the Bengal Council of Sessions Council, in 1918, he was nominated as the Chairman at the Session of the soft party, in 1921, the British Government awarded him the title of Sir, in recognition of his scholarship.

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जफर के दिल में हर बक्त अपने वतन कि माटी के लिये तड़प बनी रहती थी Urdu, Zafar Dargah, Bahadur Shah Zafar, Mughal emperor

                                                          (आजादी के दिवाने) 
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अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के दिल में हर बक्त अपने वतन कि माटी के लिये तड़प बनी रहती थी। अंग्रेजों ने उन्हे देश निकाला दे दिया लेकिन उन्होने अपनी जान बख्श देने के लिये समझौता नहीं किया। अंग्रेजों को चेतावनी देते हुए उन्होने कहा था हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की तख्त ए लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान कि उनकी चेतावनी सही साबित हुई और आाजादी के मतवाले स्वतंत्रता मिलने तक लगातार अपने प्राणेंा कि आहुति देते रहें बर्मा कि राजधानी रंगून मे जब वह अपने जीवन के अंतिम दौर मे थे तब वतन कि याद में तडपते हुए उनके लफजों से निकल पडा कितना है बनसीब जफर दफन के लिये दो गज जमीन भी न मिली कुए यार में उनका जन्म 24 अक्टूवर 1775 को दिल्ली में हुआ था वह  अपने पिता अकबर द्वितीय के मौत के बाद 28 सितम्बर 1838 को बादशाह बने । उनकी मां ललबाई हिन्दू परिवार से थी। 1857 में जब आजादी कि चिंगारी भडकि भी विद्रोही सैनिको और राजाओं ने उन्हे सम्राट माना और उनके नेतृत्व में अंग्रेजों कि ईट से ईट बजा डाली ।
भारतीयों ने देश के अनेक हिस्ससों में अजादी कि पहली लडाई में अंग्रेजो को मात दी अंग्रेज छल-कपट से इस कृान्ति को दवाने मे कामयाब रहे। जफर ने हुंमायू के मकबरे में शरण ली लेकिन मेजर हडसन ने उन्हे उनके बेटे मिर्जा मुगल ,खिजर सुल्तान और पोते अबू बकर के साथ पकड लिया ।अंग्रेजो ने जुल्म कि हदें पार कर दी। जफर को जब भूख लगी तो वे थाली में उनके बेटो के सिर ले आये वह सिर्फ देशभक्त बादशाह ही नहीं बल्कि उर्दू के मसहूर कवि भी थे। उन्होने बहुत सी कवितायें लिखी जिसमें अधिकतर 1857 के दौरान मची उथला पुथली में या तो खो गयी या फिर नष्ट हो गयी मुल्क से अंगे्रजों को भगाने का ख्वाव लिये 7 नबम्बर 1862 को 87 साल कि उम्र में उनका निधन हो गया लेकिन वक्त ने उन्हे दूसरे मुल्क मे मरने को मजबूर किया। उन्हे रंगून में श्वेडागौन पैगोडा के नजदीक दफनाया गया । जिसे अब जफर दरगााह के नाम से जानते है। भारत में कई सडके उनके नाम पर है। लाहौर में भी उनके नाम से सडक है। बाग्लादेश में भी एक पार्क बहादुरशाह जफर के नाम से जाना जाता है।

(Freedom lovers)
 Last Mughal Emperor Bahadur Shah Zafar

In the heart of the last Mughal emperor Bahadur Shah Zafar, every person lived longingly for the land of his homeland. The British expelled him but he did not compromise to spare his life. Warning the British, he said that there would be a boon in the Hindus when Talaq Iman's Takht-e-london would run till his warning of Hindustan proved to be true and till the independence of independence the tribals continued to sacrifice their lives in Burma's capital Rangoon when he When he was in the last phase of his life, how much did he have to come out of his feelings while suffering in memory of the countryman, not even two yards of land for burial. Ili que man born 24 Aktuvr 1775 had happened in Delhi after the death of his father Akbar II became king on 28 September 1838. His mother was from the Lalbai Hindu family. In 1857, when the spark of independence broke out, even the rebel soldiers and kings considered him emperor and led the British to the bricks under his leadership.


The Indians defeated the British in the first battle of Ajadi in many parts of the country, the British managed to get this revolution done by deceit. Zafar took refuge in Humayun's tomb but Major Hudson caught him along with his son Mirza Mughal, Khizar Sultan and grandson Abu Bakar. The English crossed the limits of oppression. When Zafar got hungry, he brought his son's head in the plate, he was not only a patriot king but also a poet of Urdu. He wrote a number of poems in which most of them were either lost or destroyed in shallow potholes during 1857. He died on 7 November 1862 at the age of 87, but the time left him in the second country. I was forced to die. He was buried near the Shvedagon Pagoda in Rangoon. Which is now known as Zafar Dargah. Many roads in India are named after him. There is a road to his name in Lahore too. There is also a park in Bangladesh known as Bahadur Shah Zafar.

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प्रथम राष्ट्रपति डा0 राजेन्द्र प्रसाद को फूल मालाओं से लाद दिया Freedom lovers | First president of india

                                    (आजादी के दिवाने) 
                                प्रथम राष्ट्रपति भारत
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भारतीय गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति डा0 राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 सितम्बर 1884 को हुआ था। जब वह कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन के सभापति चुने गये तो जनता उन्हे देखने को बेचैन थी पर वह कहीं न दिखे । लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि जिस व्यक्ति को मंच कि ओर बडता देख लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि जिस व्यक्ति को मंच कि ओर बढता देख लोग भीड में धक्के दे रहे थे। वही जब किसी तरह मंच तक पहुचा तो लोगो ने उन्हे फूल मालाओं से लाद दिया एक बार उन्हे बिहार के एक छोटे राज्स जाना था।डनहे देर हो गयी आयोजक निराश होकर अपने काम में लग गए उनकी मोटर फेल हो गयी थी । वह आठ बजे वाली ट्रेन से आए चूकि किसी को कोई सूचना न थी। इसलिये कोई स्टेशन भी नही आया वह गााडी से उतरे और स्टेशन मास्टर के दफतर पंहुचकर बोले जरा फोन करना है अपने रौब में स्टेशन मास्टर ने कहा कौन हो तुम बह इतना भर बोले कि राजेन्द्र प्रसाद......कि स्टेशन मास्टर पुनः उबल पडा अरे राजेन्द्र प्रसाद नहीं आये आज। 

जब उसे सच्चाई पता चली तो दंग रह गया।जब राजेन्द्र बाबू कांग्रेस के सभापति थ्ेा तो उन्ही दिनो किसी मौके पर इलाहाबाद आए। तब लीडर के संपादक थ्ेा । सीबाई चिंतामणि राजेन्द्र बाबू उनसे मिलने गए शाम हो रही थी। राजेन्द्र बाबू ने चपरासी को अपना कार्ड दिया चपरासी ने जाकर देखा कि चिंतामणि कुछ लिख रहे थे। चपरासी को टोकने की हिम्मत न हुयी और कार्ड मेज पर रखकर चुपचाप रखकर बाहर आ गया और अलाब के पास बैठ गया। कुछ देर तक तो राजेन्द्र बाबू असरा देखते रहे फिर जब कपकपी लगी तो खुद ही आग तापने लगे। लगभग एक घंटे बाद चिंतामणि कि दृष्टि कार्ड पर गयी तो देखा कि वह तो कांग्रेस के सभापति का कार्ड पडा है। चपरासी ने बताया कि एक घंटे से चिंतामणि जी को बडा दुख हुआ सोचा कि राजेन्द्र बाबू अवश्य ही लौट गये होगे फिर भी पूछा कि कौन आया था। एक आदमी लाया था वहां आग ताप रहा है वह बोले अच्छा उसे बुलाओ जब उस जगह स्वयं राजेन्द्र बाबू उठकर आये तो चिंतामणि स्तब्ध रह गये। कांग्रेस का सभापति इतनी सादगी गांधी जी के सच्चे अनुयायी राजेन्द्र बाबू 28 फरवरी 1963 को इस संसार से सदा के लिये बिदा हो गये।

(Freedom lovers)
 First president india
 Late Shri Dr. Rajendra Prasad

Dr. Rajendra Prasad, the first President of the Republic of India, was born on 3 September 1884. When he was elected the chairman of the Mumbai session of the Congress, the public was restless to see him but he could not be seen anywhere. There was no place for the surprise of the people that the person who was moving towards the stage could not be surprised to see that the person who was moving towards the stage was pushing people into the crowd. When he somehow reached the stage, people loaded him with flower garlands, once he had to go to a small Raj in Bihar. Late, the organizer got frustrated and his motor work failed. He came by the eight o'clock train as no one had any information. That is why no station even came, he got down from the train and reached the station master's office and said that in his awe, the station master said, "Who are you, you are so full that Rajendra Prasad ... ... that the station master was boiled again." Hey Rajendra Prasad did not come today.


When he came to know the truth, he was stunned. When Rajendra Babu was the President of the Congress, he came to Allahabad on those same days. The editor of the leader was then. Sibai Chintamani Rajendra Babu was going to meet him in the evening. Rajendra Babu gave his card to the peon. The peon went and saw that Chintamani was writing something. The peon did not dare to interrupt and came out quietly keeping the card on the table and sat near the alab. Rajendra Babu kept watching Asra for a while, then when the cupcake started, the fire itself started heating up. After about an hour, Chintamani's eyesight went to the card and saw that she had the card of the Congress President. The peon told that for an hour, Chintamani  ji felt very sad that Rajendra Babu must have returned but still asked who had come. A man had brought fire there, he said, "Call him well. When Rajendra Babu himself came to that place, Chintamani  was stunned." Congress President Rajendra Babu, a simple follower of such simplicity Gandhiji, departed from this world forever on 28 February 1963.


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