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आज मैं अपने दिल कि बात आप सबको बताना चाहता हूूॅ दोस्तो मैने ये ब्लाॅग सिर्फ पैसे कमाने के लिये बनाया था।


दो शब्द  प्रिय मित्रों के नाम



मेरे प्रिय दोस्तों आज मैं अपने दिल कि बात आप सबको बताना चाहता हूूॅ दोस्तो मैने ये ब्लाॅग सिर्फ पैसे कमाने के लिये बनाया था। लेकिन जब मैने चालीस ब्लाॅग लिख दिये और गूगल से एड नही मिले तो मैं थोडा हथास हो गया और पेज बन्द कर के बैठ गया परन्तु मित्रों मैने कुछ दिनो बाद मेरी नजर पेज पर पडी मैने देखा कि लोग मेरे ब्लाॅग पढ रहे है। तो मुझे बहुत अच्छा लगा कि हमारी बजह से षायद किसी की लाइफ में कोई बदलाब आ जाये मित्रो मैं आपको वह ब्लाॅग उपलब्ध कराउगां जो बडी- बडी किताबों में सिर्फ लिखा रखा है किन्तु वह लोगो तक पहुंच ही नहीं पा रहीं जिससे लोगो को सही दिषा मिल सके तब मैने यह निर्णय लिया कि अब कुछ भी हो पैसे कमांउ या न कमांउ मै हर दिन कुछ नया लिखता रहॅूगा और आप लोगो का सदा अभारी रहूगां कि आप लोगो के सर्पोट से ही मैं पुनः लिखने के लिये तैयार हो पाया हॅू और आप लोग इसी तरह अपना प्यार बनाये रखें।



हिन्द देष के निवासी सभी जन एक है।
रंग रूप - वेष भूषा चाहे अनेक है।
बेला गुलाब जूही चम्पा चमेली।
प्यारे-प्यारे फूल गुंथे माला तो एक है।
कोयल की कूंक न्यारी, पपीहे कि टेर प्यारी
गा रही तराना बुलबुल ,राग मगर एक हैं।
जाके मिल गई सागर में हुई सब एक है।

    जय हिन्द भारत माता कि जय

धन्यवाद



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जलिया वाला बाग नरसंहार 13 अप्रैल 1919 ,जलियावाला बाग हत्याकांण्ड कि सच्ची घटना






जलिया वाला बाग नरसंहार
13 अप्रैल 1919


दोस्तो आज हम आपको ले चलेगें भारतीय इतिहास कि एक ऐसी घटना कि तरफ जिसने कई बेगुनाहों को काल के गाल में भेज दिया ये घटना हैं

1919 कि भारतीय शहर अमृतसर इस हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित हुआ। शुरू में प्रदर्शनकारियों ने किसी प्रकार कि हिंसा नहीं कि भारतीयों ने अपनी दुकानें बंद कर दीं और खाली सडकों ने ब्रिटिश  सरकार द्वारा दिये गये धोके को लेकर भारतीयो कि नाराजगी जाहिर कि 9 अप्रैल को राष्टवादी नेताओं सैफुददीन किचलु और डा0 सत्यपाल को ब्रिटिश अधिकारियों ने गिरफतार कर लिया इस घटना से हजारों भारतीयों में रोष व्याप्त हो गया और वे 10 अप्रैल 1919 को सत्याग्रहियों पर गोली चलाने तथा अपने नेताओं डा0 किचलु और डा0 सत्यपाल को पंजाब से बलात बाहर भेजे जाने का विरोध कर रहे थे। जल्द ही विरोध प्रदर्शन  ने हिंसक का रूप ले लिया चूॅकि पुलिस ने गोली चलाना शुरू  कर  दिया जिसमें कुछ प्रदर्शन  कारी मारे गये जिससे काफी तनाव फैल गैया। दंगे में पांच अंग्रेज भी मारे गये और मार्सेला शेरवुड  एक अंग्रेज मिशनरी  महिला जो साइकिल पर जा रही थी को पीटा गया।

उपद्रव को शांत  करने के लिये तुरंत सैनिक टुकडी को भेजा गया। क्षेत्र में मार्शल  कानून लागू करने और स्थिति शांति  पूर्ण बनाये रखने की जिम्मेदारी वरिष्ठ ब्रिटिश  अधिकारी जनरल रेजीनाल्ड डायर को सौपी गयी। डायर ने 13 अप्रैल 1919 को घोषणा जारी कि लोग पास के बिना शहर  से बाहर न जाये और एक समूह में तीन लोंगो से अधिक लोग जूलूस प्रदर्शन या सभायें न करें।

13 अप्रैल वैषाखी के दिन आस-पास के गांव के लोग वैषाखी मनाने के लिये शहर  के लोक प्रिय स्थान जलियावाला बाग में इक्ठठे हुए जो डायर कि घोषणा से अंजान थे। स्थानिय नेताओं ने भी इसी स्थान पर विरोध सभा का आयोजन किया त्योहार के आयोजन के बीच विरोध प्रदर्षन भी शांति  पूर्ण तरीके से चल रही थी जिसमें दो प्रस्ताव रौलेट एक्ट कि समाप्ति और 10 अप्रैल कि गोलीवारी कि निदां पारित किये गये। जनरल डायर ने इस सभा के आयोजन को सरकारी आदेष कि अवहेलना समझा तथा स्थल को सषस्त्र सैनिको के साथ घेर लिया डायर ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के सभा पर गोलियां चलाने का आदेष दे दिया। लोगो पर तब तक गोलियां बरसायी गयी जब तक सैनिको कि गोलिया समाप्त नहीं हो गयी। सभा स्थल के सभी निकास मार्गो के सैनिको द्वारा घिरे होने के कारण सभा में सम्मिलित लोग चारो ओर से छलनी होते रहे । इस घटना में लगभग 1000 लोग मारे गये जिसमेें युवा, महिलाये, बूढे, बच्चे सभी शामिल  थे। जलियावाला बाग हत्याकांण्ड से पूरा देष स्तब्ध हो गया वहसी कु्ररता ने देष को मौन कर दिया। पूरे देष मे बर्बर हत्याकांण्ड कि भत्र्सना कि गयी। श्री रविन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी नाइटहुड कि उपाधि त्याग दी तथा शंकरराम नागर ने वायसराय कि कार्यकारिणी से त्यागपत्र दे दिया। अनेक स्थानों पर सत्याग्राहियों ने अहिंसा का मार्ग छोडकर हिंसा का मार्ग अपनाया जिससे 18 अप्रैल 1919 को गांधी जी ने अपना सत्याग्रह को समाप्त घोषित कर दिया क्योकि उनके सत्याग्रह में हिंसा का कोई स्थान नहीं था।
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ए0पी0जे0 टेलर इतिहासकार के अनुसार जलियावाला बाग हत्याकांण्ड एक ऐसा निर्णायक मोड था जब भारतीय ब्रिटिष षासन से अलग हुए।

1919 की घटना ने पंजाब की प्रतिरोध या विरोध प्रदर्षन कि राजनीती को आकार प्रदान किया। भगत सिंह कि नौजवान सभा ने इस जनसंहार को ऐसे कृत्य के रूप में देखा जो असहयोग आंदोलन कि समाप्ति के पष्चात उत्पन्न संताप से उबरने में मदद करेगा।

उधम सिंह ने अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद रखा ,ने लेफिटिनेन्ट गर्वनर माइकल ओ डायर जिसने पंजाब में 1919 के विरोध प्रदर्षन के वीभत्स रूप से कुचलने का संचालन किया, कि हत्या कर दी जिसके लिये उन्हें वर्ष 1940 में फांसी की सजा दी गयी।

तेा ये थी जलियावाला बाग हत्याकांण्ड कि सच्ची घटना दोस्तो कल्पना किजीये किस तरह बडे- बडे त्योहारो में भीड, मेलेा से सजा हुआ दृष्य होता है और अचानक गोलिया चलने लगे वो भी 500-500 गोलियां एक साथ कैसा दृष्य रहा क्या बीती होगी उन लोगो पर आज के लिये दोस्तो इतना ही


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मैं बदलाब ला पाया न, उस एक के जीवन में,| मछली कि कहानी | inspiratinal story

मछली कि कहानी



दोस्तो आज हम आपको ऐसी कहानी से रूवरू करायेगे जिसको पडकर आप आंनन्द का अनुभव करेगे और आपका दृष्टिकोण सकारात्मक हो जायेगा।


हम इस बात को निष्चित तौर पर नहीं कह सकते कि हमारी सकारात्मक क्रिया शीलता  किसी दूसरे के जीवन में कोई अंतर ला पायेगी। इस बात कि केवल आशा  ही की जा सकती है। शिक्षक  होने के नाते मै यह निष्चित कह सकता हूॅ कि छात्र कक्षा में सीखने से ज्यादा हाजिरी अैार उस कक्षा में उत्तीर्ण होने के उद्देश्य से आते है। किंतु ऐसे भी छात्र थे जिन्होने उस विषय के पाठ को समझा और अपने जीवन में जो चाहा वह किया और अत्यन्त सफल भी हुए। यह कहना मुष्किल है कि ऐसी किस बात ने उनके जीवन को इतना प्रभावित किया होगा।
मुझे उस मछली कि कहानी याद आती है जो याद दिलाती है कि हम किसी के जीवन में कैसे परिवर्तन ला सकते है यदि हम किसी के जीवन में सुखद परिवर्तन ला सकते हैं तो इससे अच्छा कोई उपहार नही। हम हर एक के जीवन में परिवर्तन नहीं ला सकते, किन्तु एक के भी जीवन में लाना भी बडी बात है जैसे कि उस मछली कि कहानी में बताया गया है। स्वयं से प्रष्न पूछिये कि आपके जीवन की मछलियां कहा है। घर पर,कार्यालय में,या समुद्र किनारे ? हममे से हर एक के लिये अलग- अलग मछली होगी।

समानता केवल इतनी है कि यदि हम प्रयास करें तो किसी के भी जीवन को छू सकते हैं। उसे खुष कर सकते है।चाहे वी मुस्कान से ,प्यार से,हैलो कहकर या किसी के जीवन में दखलदांजी न करके और जब हमारी मछली को अपना समुद्र मिल जायेगा तो हम स्वयं पर गर्व महसूस करेगे कि हमने किसी को छोटा सा ही सही गिफट तो दिया।

मछली की कहानी

एक दिन एक आदमी समुद्र किनारे घूम रहा था। जब उसने देखा कि एक लडका बार-बार कुछ उठा रहा है और हौले से समुद्र में फेंक रहा है। लडके के पास जाकर उस आदमी ने पूछा तुम क्या कर रहें हो लडके ने जबाब दिया मैं मछली को पानी में वापिस डाल रहा हॅू नही ंतो मर जायेगी।

आदमी ने कहा, बेटा क्या तुम नहीं जानते कि समुद्र किनारे तो हजारों कि संख्या में मछली हैं। तुम क्या बदलाब ला पाओगे कितनो को बचाआंेगे।

यह सुनने के बाद लडके ने झुककर दूसरी मछली उठाई और समुद्र के पानी में डाल दी फिर आदमी की तरफ देख मुस्कुराते हुए बोला मैं बदलाब ला पाया न, उस एक के जीवन में,

दोस्तो ये जीवन दुखों से भरा पडा है इसमें हर किसी को किसी न किसी कि जरूरत है तो अपना कुछ समय उन लोगो को भी दे जो छोटे - छोटे सुखों से भी बंचित हैं। करके देखना दोस्तों बाकई में आपको दिव्य अनुभूति (चरम सुख) कि प्रप्ति होगी ।

Fish story

Friends, today we will introduce you to such a story, after which you will experience joy and your outlook will become positive.

We cannot say with certainty that our positive action will make any difference in the life of another. That can only be hoped. Being a teacher, I can say with certainty that students come to the class for the purpose of appearing in the classroom more than they learn. But there were also students who understood the text of that subject and did what they wished in their life and were also very successful. It is difficult to say what could have influenced his life so much.

I remember the story of the fish that reminds us how we can change someone's life, if we can bring a pleasant change in someone's life then there is no better gift than this. We cannot change every one's life, but it is also a matter of bringing one into one's life as told in the story of that fish. Ask yourself the question, where are the fishes in your life. At home, at the office, or at the beach? There will be different fish for each of us.

The only equality is that if we try, we can touch the life of anyone. We can make him happy. Whether we smile, love, say hello or don't interfere in someone's life, and when our fish finds its own sea, we will feel proud that we have given someone a small gift gave.

Fish story

One day a man was walking on the beach. When he saw a boy repeatedly picking up something and hurling it into the sea. Going to the boy, the man asked, "What are you doing? The boy replied," I am putting the fish back in the water, but you will not die.

The man said, son, don't you know that there are thousands of fish on the sea shore. What you will be able to change, how many people will be saved.
After hearing this, the boy bowed down and picked up another fish and put it in the sea water, then looking at the man smilingly said, I could not get revenge, in that one's life,

Friends, this life is full of sorrows, in which everyone needs someone or other, then give some time to those who are also suffering from small pleasures. You will see the divine feeling (extreme pleasure) in friends' rest.

                                            

स्व0 श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के अल्पसंख्यक समुदाय पर विचार,Shri Atal Bihari Bajpayee

 पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री          
 स्व0 श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी
 के अल्पसंख्यक समुदाय पर विचार


आपसे निवेदन है कि पूरा पडे जिससे किसी प्रकार का गलत संदेष न जाये




अल्पसंख्यकों को सुरक्षा का पूरा आश्वासन  है। इसके साथ ही उनमें अपील भी हैं कि वे अल्पसंख्यक कि भाषा में सोचना बन्द कर दें। अगर व अल्पसंख्यक कि भाषा में सोचेगे तो फिर बहुसंख्यक बहुसंख्यक कि भाषा में सोचेगे फिर दुराभाव पैदा होगा इसलिये हम सब भारतीय के रूप में सोचे भारत के नागरिक के रूप में अधिकार मांगे संविधान जो कत्र्तव्य निर्दिष्ट करता है। उसका पालन करें।

अगर केन्द्र में हमें कुछ करने का मौका मिला तो हम सबकी मानसिकता बदलने का पूरा प्रयास करेगे और सफल होगे ऐसा हमारा विष्वास है।

जब स्व0 श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी प्रधानमंत्री बने उस समय मिडिया ने उनसे बात कि और पूछा आज आपके प्रधानमंत्री बनने कि ख़ुशी में पूरे देश में जो स्वतः स्र्फूत उल्लास और उत्सव का रंग छा गया उसे देखकर कैसा लगा।


प्रधानमंत्री जी बोले यह सब देखकर मुझे स्व0 भाउराव देवरस और पंडित दीनदयाल उपाघ्याय जी का बार बार स्मरण आता है। इतना कहने पर उनके आखों से आंसू आ गये। उनकी आखेां में पुरानी यादों का मानों महासागर उमड आया वे फवक-फवक कर रो पडे काष आज भाउराव देवरस और दीनदयाल जी होते इन क्षणों के हिमालय के शब्दों  में उतारपाना असम्भव है असंभव । यह एक प्रधानमंत्री नही एक स्वंयसेवक के आसूं थे। बडी कठनाई से स्वयं को सम्भाल कर आगे बोले उनके सत्संग में गुजरे क्षण याद आते है। किस तरह उन्होनेे अंगुली पकडकर पत्रकारिता कि डगर पर चलना सिखाया। किस तरह व्यक्ति के विकास के लिये प्रयास करना लेकिन जिसका विकास होना है पता तक न लगने देना कि सारा प्रयास तेरे विकास के लिये है। यह संघ कि बहुत बडी विशेषता  है।

जब मुझे उदार विचार वाला कहा जाता है। तो लोग यह भूल जाते हैं कि ये देन पं0 दीनदयाल उपाध्याय जी कि देन है। परमपूज्य गुरूजी का भी स्मरण आता है। वयं पंचारधिक शतम - महाभारत का यह उदाहरण देते हुए उन्होने बार-बार इस बात पर बल दिया कि घर में विवाद एक सीमा तक ही होना चाहिये। बाहर वालो के लिये हम सब एक है । यह भावना मन से कभी समाप्त नहीं होनी चाहिये।

लाखों स्वयं सेवकों के परिश्रम,सर्मपण से,कष्ट सहन से,त्याग से,आज का दिन देखने को मिला है। जो आज हमारे साथ नहीें है। उन सबको विनम्र श्रद्वाजंलि अर्पित करता हंॅू कि मेरे हाथ से ऐसा कोई काम नहीं होगा जिससे संघ की धवल कीर्ति पर कोई धब्बा लगें।

प्रिय मित्रो ये है संघ जिसने भारत को बडे से बडे वीर सपूत दिये जिनकी कल्पना करना असम्भव हैं। मैं संघ परिवार को धन्यवाद देते हॅंू कि भारत कि आन,वान,शान के लिये ऐसे वीर योद्वा तैयार करने के लिये आज हर व्यक्ति को संघ से जुडना चाहिये ।

नमस्कार दोस्तों तो ये थी स्व0 श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के अनमोल शब्द जो उन्होने राजनीति कि रपटीली राहें किताब में वर्णन किया हैं।

आप एक बार किताब जरूर पडे अगर आपको बुक न मिले तो आप अपना पता लिखकर भेज सकते हैं।

धन्यवाद

Former indian prime minister
 Late Shri Atal Bihari Bajpayee
 Consider the minority community

You are requested to read the entire message so that no wrong message is left.

Minorities have complete assurance of security. In addition, there is an appeal among them to stop thinking in the language of the minority. If we think in the language of the minorities, then the majority will think in the language of the majority, then the misfortune will arise, that is why we all should think as Indian citizens as citizens of India, the constitution which specifies duty. Follow it.

If we get a chance to do something at the center, we will make every effort to change the mindset of everyone and it is our belief that we will succeed.

When late Shri Atal Bihari Bajpai ji became the Prime Minister, at that time, the media talked to him and asked how it felt to see the self-effulgent gaiety and celebration of the whole country in happiness of becoming your Prime Minister today.

Seeing all this, the Prime Minister said, I am reminded repeatedly of late Bhaurao Deoras and Pandit Deendayal Upaghyay. On saying this, tears came from his eyes. In their eyes, as the memories of old memories came in the ocean, they woke up crying, today, it is impossible to capture these moments in the words of Himalayas being Bhaurao Deoras and Deendayalji. This was the dream of a volunteer, not a prime minister. After remembering himself with great difficulty, he spoke further and remembers the moments passed in his satsang. How he grabbed his finger and taught him to walk on the path of journalism. How to make efforts for the development of a person, but whose development has to be done, do not even let it be known that the whole effort is for your development. This is a very special feature of the association.

When I am called a liberal. So people forget that this gift is the gift of Pandit Deendayal Upadhyay. His Holiness Guruji is also remembered. Giving this example of Panchadhik Shatam - Mahabharata himself, he repeatedly stressed that there should be a dispute in the house to a limit. We are all one for those outside. This feeling should never end with the mind.

Today has been seen by the hard work, dedication, suffering, sacrifice and sacrifice of millions of volunteers. Which is not with us today. I offer a humble tribute to all of them that there will be no work from my hand to put any stain on the Sangh's fame.

Dear friends, this is the Sangh, which gave India the biggest heroic sons, which is impossible to imagine. I thank the Sangh Parivar that today every person should join the Sangh for preparing such a brave warrior for the glory of India.

Hello friends, these were the precious words of late Shri Atal Bihari Bajpai ji, which he described in the book Raptili Rahein of politics.
Once you get the book, if you do not get the book, then you can send it by writing your address.

Thank you




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मनुस्मृति का महत्व,Manusmriti,code of manu


मनुस्मृति का महत्व


स्मृतिग्रंथियो  में सर्वाधिक प्रामाणिक तथा तथा मानव धर्म के अनुरूप मनुस्मृतियों सर्वथा महत्वपूर्ण है। भारतीय समाज में सर्वदा लोकप्रिय यह स्मृतिरत्न व्यापक प्रचार-प्रसार से अपनी उपजीव्यता तथा उपादेयता का घेतित करता है। ज्ञान गम्भीर महर्षियों के चिरकालिक चिंतन से गहनतम विचारोें के आलोडन से उद्भूत उस नवनीत के समान है जो वर्ण;स्वाद और उपयोगिता में समता नहीं रखता है।सार सार को गहि रहे थोथा देय उडाय के नियम को सार्थक करने वाले स्मृति ग्रन्ाि समाज के लिये नितान्त अनिवार्य तो है ही वण्र्य विषय षैली तथा भाषा प्रत्येक दृष्टि से अन्यतम है। कल्पना किजिये उस सामाजिक स्थिति कि जो मनुस्मृति के परिपक्व आदेषों से नियंत्रित नहीं है। क्या वह अव्यवस्थित समाज जिसमें किसी के लिये किसी प्रकार की सीमा नही है। किसी प्रकार कि इयंत्ता नहीं है। दिषा-र्निदेष के अभाव में मनुष्य कसे निष्चिन्तता दे सकता है। कदापि नहीं

अन्ततः हम मानसिक सुख शांति  के लिये समाज की व्यवस्था की स्थापना दायित्वों की बोधक मनुस्मृति से ही दृष्टि पाते हैं। जिसके माध्यम से एक ओर नियामक सिद्वान्त वाक्यों के द्वारा पारस्परिक हस्तक्षेप तथा वैमनस्य की प्रव्रत्ति को अवरूद्व किया गया है। दूसरी ओर सामान्य परम्पराओं और मान्यताओं के प्रचार-प्रसार से सामूहिक सौहार्द तथा प्रीति की भावना को विस्तृत किया गया हे। मनुस्मृति एक प्रकार से संगठन तथा विधटन दोनो धातक प्रवृत्तियों के अति रक्षित स्वरूप कि समाज के प्रति चेतावनी है। रीतियों कि प्राचीनतम शैली  कर्तव्यों के प्रेरक विघान आात्मिक शुद्धि  के प्रेरक वचन शाशीरिक  स्वच्छता राजतन्त्र कि लोकानुरक्षक शाशन  व्यवस्था न्याय व्यवस्था सभी दृष्य मनुस्मृति के विस्तृत चित्रपट पर एक साथ किन्तु समुचित मात्रा में उभरते है। 
मनुस्मृति कि प्रशंसा  में शास्त्र  के रचयिताओं ने कहा की शिक्षा  देने वाली स्मृति प्रशंशनीय है।

मनुस्मृति भारतीय प्राच्यविद्या के पष्चात पाठकों तथा विदेशी  प्रषंसको ने मनु एवं 
मनुस्मृति के समाज पर गहन्तम प्रभाव से आकृष्ट होकर इस दिषा में विषेष गवेषणायें कि

सर्वप्रथम ब्यूहलर ने अपने ग्रन्थ द लाॅज आॅफ मनु में विद्वतापूर्ण भूमिका एवं पाद टिप्पणी सहित 
मनुस्मृति के ष्लोको का अंग्रजी में अनुवाद किया।

इसी श्रखृला में मैक्समूलर,मैक्डानल,ष्लेगल,मैडम ब्लैवेत्स्की,ऐनी बेसेन्ट आदि विद्वानों ने मानवीय मूल्यों के स्थापक ग्रन्थ मनुस्मृति को अपनी षेाधो में सम्मान पूर्वक स्थान दिया और संस्कृत एवं संस्कृति प्रेमी दाराषिकोह ने मनु को आदम के समकक्ष माना है। महान दार्षनिक नीत्षे ने श्रेष्ठ गुणो के प्रतिनिधित्व ग्रन्थ मनुस्मृति को बाइबिल की अपेक्षा कही अधिक उत्कृष्ठ मानकर कहा था।


         

Importance of manusmriti

Manusmriti is the most important of the memorabilia and according to human religion is very important. Always popular in Indian society, this Smritiratna encapsulates its generosity and utility with wide publicity. Knowledge arises from the long-term contemplation of serious maharshis arising from the deepening of thoughts, which is not equal in color and taste and utility. Essentially, the subject matter is language and language is the second most from every point of view. Imagine a social situation that is not controlled by the mature orders of Manusmriti. Is a chaotic society in which there is no limit for anyone. There is no intention. In the absence of direction, a human being can give a certainty. not at all

Finally, we can see the mind-blowing memory of the establishment of the system of society for mental peace and peace. Through which on the one hand the tendency of mutual interference and disharmony has been blocked by regulatory principles. On the other hand, the spirit of collective harmony and love has been broadened by the propagation of common traditions and beliefs. In a way, Manusmriti is a warning to the society that both organization and law are the most protected forms of metallic tendencies. Motivational devolution of the earliest classical duties of customs, inspirational words of the spiritual world, civil sanitation, the system of public security, the judicial system, all the scenes emerge together on the detailed screen of Manusmriti, but in sufficient quantity. In the praise of Manusmriti, the creators of the weapon said that the memory giving education is praiseworthy.

Manusmriti, after Indian Orientalism, readers and foreigners, attracted by the profound impact of Manu and Manusmriti on the society, made special discoveries in this direction

First, Buehler in his book The Laws of Manu, translated Schlokko of Manusmriti into English with a scholarly role and commentary.

In this series, scholars like Max Müller, Macdanal, Schlegel, Madame Blavatsky, Anne Besant, etc., gave respect to the founder of human values, Granth Manusmriti, in his teachings, and Sanskrit and culture lover Darashikoh has considered Manu as equivalent to Adam. The great philosopher Nietzsche said that the book Manusmriti, representing the best qualities, was more excellent than the Bible.

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भारतीय दर्शन  विशेषता 


भारतीय दर्शन  कि सबसे बडी विशेषता  उनका व्यवहारिक पक्ष है। उनका उद्धेष्य है। नाना प्रकार के दुखों से पीडित मनुष्यों को राग-द्वेष और अविद्या से छुडाकर मोक्ष कि प्राप्ति करा देना ।

भारतीय दर्शन कि दूसरी विशेषता - आशावाद 

दुखमय वर्तमान से असन्तोेष हुए बिना सुखमय भविष्य कि कल्पना दुराषामात्र ही है। इस जगत पर दृष्टि पात करने पर विवेकिजन इस निष्कर्ष  पर पहुचतें है कि यह संसार नितांत दुखमय है। इस दुख का कारण दृष्टा और दृष्य का संयोग है। इस दुख को दूर करना है व इसका मार्ग खोजना है इस प्रकार भारतीय दर्शन  वर्तमान दशा  से असन्तोेष प्रकट कर उसके सुधारने का प्रयत्न करता हैं।



भारतीय दर्शन  कि तीसरी विशेषता - नैतिक व्यवस्था में विष्वास

मनुष्य  जो कर्म करता है। उनका लोप नहीं होता अपितु उन कर्मो से एक अपूर्व कि सृष्टि होती है सही अपूर्व फलोत्पत्ति का प्रधान कारण है। न्याय- वैवेषिक में इसी अपूर्व कों अदृष्ट की संज्ञा दी गयी है।

भारतीय दर्शन  कि चौथी विशेषता  - कर्म सिद्वान्त

मनुष्य जो भी कर्म करता है उनका नाष नहीं होता तथा जिस फल को हम भोग रहे है वह पूर्वजन्म में किये हुए कर्म का ही फल है। कर्म सिद्वान्त को स्वीकार कर मनुष्य  जहां एक ओर पाप करने से बच जाता है। वहा दूसरी ओर शुभ कर्मो के अनष्ठान से अपने आगामी जीवन को उच्च ; दिव्य; एवं महान बना सकता है।

भारतीय दर्षन कि पांचवी विशेषता - मोक्षमार्ग का निर्देष

स्ंासार में बंधन का कारण है अविद्या अविद्या से बंधन होता है और ज्ञान से मुक्ति जीवन यापन के दो मार्ग है। प्रेय और श्रेय मनूुष्य प्रायः आपातातः रमणीय विषयों कि ओर आकृष्ट होकर संसार में प्रवृन्त होता है। इस प्रवृत्ति का मूल कारण है। राग-द्वेष यह प्रेय मार्ग मनुष्य कि अधोगति का कारण है। श्रेय मार्ग मनुष्य के मंडल का मूल है।

 इस मंडल मार्ग पर आरूड होने के लिये यम-नियम आदि अष्टाग योग का विधान करते है। मनुष्य को ब्राहम की प्राप्ति के लिये महान प्रयत्न व पुरूषार्थ करना चाहिये ।

दोस्तो  कब लिखे गये इस  का उत्तर देना कठिन हैं। दर्षनकारों ने इस विषय में कोई लिखित प्रमाण महीं छोडा है। परन्तु एक बात सुनिष्चित है कि सभी दर्षन ऋषियों द्वारा प्रणीत है और ऋषियो का युग महाभारत तक अविच्छिन्न रहा है। अतः दर्शन  महाभारत काल के आस- पास लिखे गये। इस प्रकार दर्शनों  का समय आज से कम से कम पांच सहस्त्रवर्ष पूर्व है।

Indian Philosophy Feature

The greatest feature of Indian philosophy is their practical aspect. Their purpose is To liberate people suffering from various kinds of miseries by liberating them from raga-malice and avidya.

The second feature of Indian philosophy - optimism

Without being dissatisfied with the miserable present, the imagery of a happy future is a misfortune. After reaching this world, the prudent reaches this conclusion that this world is extremely sad. The reason for this sorrow is the combination of sight and sight. This sorrow has to be overcome and its path has to be found, thus Indian philosophy tries to rectify it by showing a dissatisfaction with the present condition.

Third feature of Indian philosophy - belief in moral system

The man who acts. They are not erased, but by those deeds there is a unique creation, which is the main reason for right and wrong. Justice-Vaivasik has given the name of this incomparable.


Fourth characteristic of Indian philosophy - Karma Principle

The actions of human beings are not destroyed and the fruit which we are suffering is the result of the work done in the previous birth. By accepting the principle of karma, a person is saved from sin on the other side. There, on the other hand, high up his upcoming life with the blessings of good deeds; Divine; And can make great.
Fifth feature of Indian philosophy - the direction of Moksamarg

The reason for bondage in the breath is avidya is bondage with ignorance and freedom from knowledge is two ways of living. Prey and Shrey Manusya are often drawn into the world by being attracted to delightful subjects. The root cause of this trend is. Raga - Malice This love path is the cause of human downgrade. The credit path is the root of the human circle.

To be mounted on this Mandal road, Yama-Niyam, etc., perform Ashtag Yoga. A man should make great efforts and effort to attain Brahm.


When is written friends, it is difficult to answer this question. The philosophers have left no written evidence in this subject. But one thing is sure that all the darshans are bred by sages and the era of sages has remained uninterrupted till Mahabharata. Hence Darshan was written around the Mahabharata period. Thus, the time of the show is at least five millennia ago.



सफलता का मूल मंत्र अनुशासन | The key to success is discipline

अनुशासन 


सफलता का मूल मंत्र है ‘अनुशासन ‘ अनुशासन  हमसे वह कार्य करवाता है जिन्हें हम दिल से करना चाहते हैं पर हमारा मन उन्हें करने नहीं देता अनुषासन के बिना लक्ष्य स्पष्ट हो पायेगे नहीं न ही हम उन्हे कर पायेगे और न ही आप समय का सही उपयोग कर पायेगंे न लोगो के साथ अच्छा व्यवहार कर पायेगे न ही मुसीबतो के पलो का सामना कर पायेगे न ही सकारात्मक सोच पायेगे





अगर आप अपने द्वारा बनाये गये अनुशासन  (नियम) व षर्तो पर जियेगे और उस पत्ते कि तरह प्रतिक्रिया नही करेगे जो बहते पानी और हवा कि दिशा  का रूख ले लेता है। आप अपनी जिदगी जितनी सख्ती के साथ जियेगे उतना हि ये जीवन आपको सरल लगेगा आपके जीवन कि उत्तमता आपके चुनावो और निर्णयो पर निर्भर करती है। इस श्रेणी में यह भी शामिल  है कि आप किस नौकरी में जाना चाहते हैं आप कौन सी कितावे पडते है। आप कितने बजे उठते है।

जब हम अपनी समस्त मानसिक शक्ति  को अपने सही चुनावो कि ओर जुटा देते हैं और आसान चुनाव कि उपेक्षा करते हैं और तो यही हमारे जीवन कि बागडोर का नियंत्रण हमारे हाथ मे दे देता है। सक्षम और सम्पूर्ण लोग आसान और आरामदायक काम करने में अपना समय बबार्द नहीं करते है। यह आदत उन्हे महान का दर्जा देती है।

एक सफल इन्सान की मंशा  वह सब करने कि होती है जिसे असफल इन्सान नहीं करना चाहता हैं।शायद  षिक्षा का सबसे अधिक मूल्यवान परिणाम उस योग्यता में है जो हमसे वह करवाती है। जो हमे करना चाहिये

चाहे हम उसे पसन्द करंे या न करें।

दोस्तो हम जो सीखते है खुद के अनुभव से सीखते है। अगर आप स्कूल में टाॅप आना चाहतें है तो आपको औरो सेे ज्यादा अच्छी तैयारी करनी पडेगी; बीडा बजाने के अभ्यास से बीडा बादक वनते है।

















बहीखाता प्यार का , love

बहीखाता प्यार का



दोस्तो भाग दौड भरी जिदगी में किसी के पास समय नही रूककर सोचने के लिये दोस्तो आज में आपको कुछ बेहतरीन नुस्खे बताउगा जिससे आप इतनी शांति  आपका मन इतना प्रसन्न रहेगा जिसकी आपने कल्पना भी नही के होगी


एक बार मदर टेरेसा ने कहा था कोई कार्य महान नहीं हेाता सिर्फ छोटे कार्य होते है जो महान प्रेम के साथ किये जाते है। ऐसे कौन से छोटे कार्य हैं जो आप खुद अपने लिये आाज कर सकते है ऐसे कौन से निरूद्धेष्य दयालुता और विना स्वार्थ के सुन्दर कार्य है जो आप किसी के दिन को अच्छा बनाने के लिये कर सकते है। संवेदनषील होने कि सबसे बढी समस्या हैकि देने कि प्रक्रिया अपने बारे मे अच्छा महसूस करने पर मजबूर करती है। दूसरो के लिये प्रेम कि भावना से परिपूर्ण होने का अभ्याास करने के लिये एक प्यार का बहीखाता बनाइये हर दिन उसमें कुछ नया जमा किजिये जैसे अपने आस पास बाले किसी व्यक्ति के लिये कोई छोटा सा कार्य करना जो उसके जीवन में ख़ुशी भर सके अपने सहकर्मी के लिये बिना कारण फूल ले जाना अपने प्रियो को बताइये के आप उनके बारे में क्या अच्छा महसूस करते है। ये अच्छे तरीके है शुरुआत  करने के




दोस्तो हमेशा  छोटी बातो से ही जीवन की बडी बाते होती है। प्रतिदिन आपके प्यार के खाते में यह छोटी धरोहर आपको आपके बैक में जमा धन से ज्यादा प्रसन्नता देगी दोस्तो बिना धनवान हदय के धन एक बदसूरत भिकारी के समान है। ख़ुशी   बटोरने के लिये हमें अपने आपको एक मकडी कि तरह अपने प्रेम का जाल हर दिशा  में बुनना होगा

जिससे जो भी उसमें आए फसकर वापस न जा पाये                                 

| श्रीमद्‍भगवद्‍गीता | सातवाँ अध्याय | Srimad Bhagavad Gita


श्रीभगवानुवाच

मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः ।
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥

भावार्थ : श्री भगवान बोले- हे पार्थ! अनन्य प्रेम से मुझमें आसक्त चित तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर योग में लगा हुआ तू जिस प्रकार से सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त, सबके आत्मरूप मुझको संशयरहित जानेगा, उसको सुन॥1॥

ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः ।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ॥

भावार्थ : मैं तेरे लिए इस विज्ञान सहित तत्व ज्ञान को सम्पूर्णतया कहूँगा, जिसको जानकर संसार में फिर और कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रह जाता॥2॥

मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्वतः ॥

भावार्थ : हजारों मनुष्यों में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है और उन यत्न करने वाले योगियों में भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको तत्व से अर्थात यथार्थ रूप से जानता है॥3॥

भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहङ्‍कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्‌ ।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्‌ ॥

भावार्थ : पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार भी- इस प्रकार ये आठ प्रकार से विभाजित मेरी प्रकृति है। यह आठ प्रकार के भेदों वाली तो अपरा अर्थात मेरी जड़ प्रकृति है और हे महाबाहो! इससे दूसरी
को, जिससे यह सम्पूर्ण जगत धारण किया जाता है, मेरी जीवरूपा परा अर्थात चेतन प्रकृति जान॥4-5॥

एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय ।
अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा ॥

भावार्थ : हे अर्जुन! तू ऐसा समझ कि सम्पूर्ण भूत इन दोनों प्रकृतियों से ही उत्पन्न होने वाले हैं और मैं सम्पूर्ण जगत का प्रभव तथा प्रलय हूँ अर्थात्‌ सम्पूर्ण जगत का मूल कारण हूँ॥6॥

मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥

भावार्थ : हे धनंजय! मुझसे भिन्न दूसरा कोई भी परम कारण नहीं है। यह सम्पूर्ण जगत सूत्र में सूत्र के मणियों के सदृश मुझमें गुँथा हुआ है॥7॥

( संपूर्ण पदार्थों में कारण रूप से भगवान की व्यापकता का कथन )

श्रीभगवानुवाच

रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः ।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥

भावार्थ : हे अर्जुन! मैं जल में रस हूँ, चन्द्रमा और सूर्य में प्रकाश हूँ, सम्पूर्ण वेदों में ओंकार हूँ, आकाश में शब्द और पुरुषों में पुरुषत्व हूँ॥8॥

पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥

भावार्थ : मैं पृथ्वी में पवित्र (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध से इस प्रसंग में इनके कारण रूप तन्मात्राओं का ग्रहण है, इस बात को स्पष्ट करने के लिए उनके साथ पवित्र शब्द जोड़ा गया है।) गंध और अग्नि में तेज हूँ तथा सम्पूर्ण भूतों में उनका जीवन हूँ और तपस्वियों में तप हूँ॥9॥

बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्‌ ।
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्‌ ॥

भावार्थ : हे अर्जुन! तू सम्पूर्ण भूतों का सनातन बीज मुझको ही जान। मैं बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वियों का तेज हूँ॥10॥

बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्‌ ।
धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ॥

भावार्थ : हे भरतश्रेष्ठ! मैं बलवानों का आसक्ति और कामनाओं से रहित बल अर्थात सामर्थ्य हूँ और सब भूतों में धर्म के अनुकूल अर्थात शास्त्र के अनुकूल काम हूँ॥11॥

ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्चये ।
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ॥

भावार्थ : और भी जो सत्त्व गुण से उत्पन्न होने वाले भाव हैं और जो रजो गुण से होने वाले भाव हैं, उन सबको तू 'मुझसे ही होने वाले हैं' ऐसा जान, परन्तु वास्तव में (गीता अ. 9 श्लोक 4-5 में देखना चाहिए) उनमें मैं और वे मुझमें नहीं हैं॥12॥

( आसुरी स्वभाव वालों की निंदा और भगवद्भक्तों की प्रशंसा )

त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत्‌ ।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम्‌ ॥

भावार्थ : गुणों के कार्य रूप सात्त्विक, राजस और तामस- इन तीनों प्रकार के भावों से यह सारा संसार- प्राणिसमुदाय मोहित हो रहा है, इसीलिए इन तीनों गुणों से परे मुझ अविनाशी को नहीं जानता॥13॥

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥

भावार्थ : क्योंकि यह अलौकिक अर्थात अति अद्भुत त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है, परन्तु जो पुरुष केवल मुझको ही निरंतर भजते हैं, वे इस माया को उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात्‌ संसार से तर जाते हैं॥14॥

न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः ।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ॥

भावार्थ : माया द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुर-स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते॥15॥

चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥

भावार्थ : हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन! उत्तम कर्म करने वाले अर्थार्थी (सांसारिक पदार्थों के लिए भजने वाला), आर्त (संकटनिवारण के लिए भजने वाला) जिज्ञासु (मेरे को यथार्थ रूप से जानने की इच्छा से भजने वाला) और
ज्ञानी- ऐसे चार प्रकार के भक्तजन मुझको भजते हैं॥16॥

तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥

भावार्थ : उनमें नित्य मुझमें एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेमभक्ति वाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम है क्योंकि मुझको तत्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यन्त प्रिय है॥17॥

उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्‌ ।
आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्‌ ॥

भावार्थ : ये सभी उदार हैं, परन्तु ज्ञानी तो साक्षात्‌ मेरा स्वरूप ही है- ऐसा मेरा मत है क्योंकि वह मद्गत मन-बुद्धिवाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम गतिस्वरूप मुझमें ही अच्छी प्रकार स्थित है॥18॥

बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥

भावार्थ : बहुत जन्मों के अंत के जन्म में तत्व ज्ञान को प्राप्त पुरुष, सब कुछ वासुदेव ही हैं- इस प्रकार मुझको भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है॥19॥

( अन्य देवताओं की उपासना का विषय )

कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः ।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥

भावार्थ : उन-उन भोगों की कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात पूजते हैं॥20॥

यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति ।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्‌ ॥

भावार्थ : जो-जो सकाम भक्त जिस-जिस देवता के स्वरूप को श्रद्धा से पूजना चाहता है, उस-उस भक्त की श्रद्धा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हूँ॥21॥

स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते ।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान्‌ ॥

भावार्थ : वह पुरुष उस श्रद्धा से युक्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किए हुए उन इच्छित भोगों को निःसंदेह प्राप्त करता है॥22॥

अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्‌ ।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥

भावार्थ : परन्तु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं॥23॥

( भगवान के प्रभाव और स्वरूप को न जानने वालों की निंदा और जानने वालों की महिमा )

अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः ।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्‌ ॥

भावार्थ : बुद्धिहीन पुरुष मेरे अनुत्तम अविनाशी परम भाव को न जानते हुए मन-इन्द्रियों से परे मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा को मनुष्य की भाँति जन्मकर व्यक्ति भाव को प्राप्त हुआ मानते हैं॥24॥

नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः ।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्‌ ॥

भावार्थ : अपनी योगमाया से छिपा हुआ मैं सबके प्रत्यक्ष नहीं होता, इसलिए यह अज्ञानी जनसमुदाय मुझ जन्मरहित अविनाशी परमेश्वर को नहीं जानता अर्थात मुझको जन्मने-मरने वाला समझता है॥25॥

वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन ।
भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ॥

भावार्थ : हे अर्जुन! पूर्व में व्यतीत हुए और वर्तमान में स्थित तथा आगे होने वाले सब भूतों को मैं जानता हूँ, परन्तु मुझको कोई भी श्रद्धा-भक्तिरहित पुरुष नहीं जानता॥26॥

इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।
सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥

भावार्थ :  हे भरतवंशी अर्जुन! संसार में इच्छा और द्वेष से उत्पन्न सुख-दुःखादि द्वंद्वरूप मोह से सम्पूर्ण प्राणी अत्यन्त अज्ञता को प्राप्त हो रहे हैं॥27॥

येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्‌ ।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः ॥

भावार्थ : परन्तु निष्काम भाव से श्रेष्ठ कर्मों का आचरण करने वाले जिन पुरुषों का पाप नष्ट हो गया है, वे राग-द्वेषजनित द्वन्द्व रूप मोह से मुक्त दृढ़निश्चयी भक्त मुझको सब प्रकार से भजते हैं॥28॥

जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये ।
ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम्‌ ॥

भावार्थ : जो मेरे शरण होकर जरा और मरण से छूटने के लिए यत्न करते हैं, वे पुरुष उस ब्रह्म को, सम्पूर्ण अध्यात्म को, सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं॥29॥

साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः ।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ॥

भावार्थ :  जो पुरुष अधिभूत और अधिदैव सहित तथा अधियज्ञ सहित (सबका आत्मरूप) मुझे अन्तकाल में भी जानते हैं, वे युक्तचित्तवाले पुरुष मुझे जानते हैं अर्थात प्राप्त हो जाते हैं॥30॥
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