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मेरी क्रिसमस संदेश 2020,Merry Christmas Message 2020

मेरी क्रिसमस संदेश 2020 

क्रिसमस Christmas का दिन प्रतिवर्ष वो दिन होता है जब हम सब मिल कर प्रभु इशुमसिह (Jesus) के जन्म दिन को बहुत धूम धाम से Celebrate करते हैं। यह त्यौहार पुरे विश्व में मनाया जाता है और इस दिन लगभग सभी देशों में Regional Holiday होते हैं।



Christmas वर्ष के आखरी समय में New Year से पहले मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस त्यौहार में सभी लोग अपने परिवार के साथ मिल कर Party मनाते हैं। कुछ लोग अपने दूर बैठे परिवार जानो और लोगों को WhatsApp, Facebook या अन्य तरीकों से Greeting Images Messages भी भेजते हैं।


इसलिए आज हम इस पोस्ट में आपके लिए बेहतरीन Merry Christmas Wishes in Hindi लेकर आये हैं। हमने Internet से सबसे Best Christmas Hindi Quotes, आपके लिए ढूँढा है और कुछ बेहतरीन Christmas Shayari भी।

 Merry Christmas Message 2020| मेरी क्रिसमस संदेश 2020 | Merry Christmas Wishes  in Hindi


# क्रिसमस का उमंग और उत्साह,

हमेशा आपके जीवन को,
खुशियों से सराबोर रखे ! Merry Christmas 2020



# खुदा से क्या मांगू तुम्हारे वास्ते,

सदा खुशियाँ हो तुम्हारे रास्ते,
हंसी तुम्हारे चेहरे पर रहे कुछ इस तरह,
खुशबू फूल का साथ निभाए जिस तरह ! क्रिसमस की बधाईयाँ 2020

#  इस क्रिसमस आपका जीवन क्रिसमस ट्री की तरह,

हरा भरा और भविष्य तारों की तरह चमचमाता रहे! happy christmas 2020


# देवदूत बनके कोई आएगा,

सारी आशाएं तुम्हारी, पूरी करके जायेगे,
क्रिसमस के इस शुभ दिन पर,
तौफे खुशियों के दे जायेगा!

Merry Christmas to All 2020



# क्रिसमस का यह प्यारा त्यौहार जीवन में,

लाये खुशियाँ अपार, Santa Clause आये आपके द्वार,
शुभकामना हमारी करें स्वीकार! ,

मेरी क्रिसमस 2020



# रब ऐसी क्रिसमस बार-बार लाये,

क्रिसमस पार्टी में चार चाँद लग जाये,
सांता क्लॉज़ से हर दिन मिलवायें,
और हर दिन आप नए-नए तौफे पायें!
हैप्पी क्रिसमस 2020

# ना कार्ड भेज रहा हूँ,

ना कोई फूल भेज रहा हूँ,
सिर्फ सच्चे दिल से मैं आपको,
क्रिसमस और नव वर्ष की,
शुभकामनाएं भेज रहा हूँ

Merry Christmas SMS 2020


#8 लो आ गया जिसका था इंतज़ार,

सब मिल कर बोलो मेरे यार,
दिसम्बर में लाया क्रिसमस बहार,
मुबारक हो तुमको क्रिसमस मेरे यार!

Merry Christmas 2020 Message


# बच्चों का दिन तौफों का दिन,

सांता आएगा कुछ तुम्हे दे कर जायेगा,
भूल ना जाना उसे शुक्रिया कहना,
आप सभी को क्रिसमस की शुभकामना !

# चाँद ने अपनी चांदनी बिखेरी है,

और तारों ने आस्मां को सजाया है,
लेकर तौफा अमन और प्यार का,
देखो स्वर्ग से कोई फ़रिश्ता आया है,

Merry X Mas 2020


# दोस्तों से हर लम्हे में क्रिसमस है,

दोस्ती की ये दुनिया दीवानी है,
दोस्तों के बिना जिंदगी बेकार है,
दोस्तों से ही तो जिंदगी में बहार है,
Merry Christmas 2020



# सबके दिलों में हो सके लिए प्यार,

आने वाला हर दिन लाये खुशियों का त्यौहार,
इस उम्मीद के साथ आओ भूल के सारे गम,
क्रिसमस में हम सब करें Welcome

# प्रभु इशु का पवित्र पर्व,

क्रिसमस की आप सभी को बधाई,
परमेश्वर के पवित्र मार्ग का,
अनुशरण करें वो सदैव साथ हैं,
अपने बन्दों के सर पर उसका हमेशा हाथ है,
क्रिसमस की बधाई 2020


# आपकी आँखों में सजे हों जो भी सपने,

दिल में छुपी हो जो भी अभिलाषाएं,
ये क्रिसमस का पर्व उन्हें सच कर जाये,
क्रिसमस पर, आपके लिए है हमारी यही शुभकानाएं!

# क्रिसमस 2020 आये बनके उजाला,

खुल जाए किस्मत का ताला हमेशा,
आप पर रहे मेहरबान ऊपर वाला ,
यही दुआ करते हैं आपका यह चाहने वाला!

# क्रिसमस प्यार है, क्रिसमस ख़ुशी है,

क्रिसमस उत्साह है, क्रिसमस नया उमंग है,
आप सभी को क्रिसमस 2020 की शुभकामनायें 

आधुनिक युग में अब्राहम लिंकन ही एक आर्दश राजनेता, Abraham Lincon, American Civil War, Washington

अब्राहम लिंकन

आधुनिक युग में अब्राहम लिंकन ही एक आर्दश राजनेता के रूप में दिखाई देते है। उन्होने ये गुण का प्रदर्शन अश्वेत अमरीकी लोगो कि मुक्ति के संधर्ष में ही नहीं किया वरन उन्होने अमरीकि गृह युद्व का संचालन और समापन भी उसी महानता से किया।


अब्राहम लिंकन ने अपने को मुक्तिदाता के रूप में नहीं माना। उनका विचार था दासों की मुक्ति कि प्रक्रिया धीरे-धीरे कार्यरूप में आनी चाहिये। उन्होने दासो के स्वामियों के लिये हर्जाना देने का प्रस्ताव रखा और अश्वेतों के पुर्नवास के लिये सहायता के लिये पेशकश कि लेकिन भाग्य को कुछ और ही स्वीकार था जिस तेजी से दक्षिणी भाग से अलग होना चाहता था उससे उन्हें अपने कार्य में बहुत तेजी लानी पडी उन्होने कहा हमें दासों को जल्दी मुक्त करना है अन्यथा हम स्वयं दवा दिये जायेगे दासों कि मुक्ति की घोषणा का मसौदा पढने से पहले लिंकन ने अपने साथियों से कहा था कि दासों को स्वतंत्र करने से हम स्वतंत्र लोगो की स्वतंत्रता को ही सुनिश्चिित कर रहे हैं।
abraaham linkan | aadhunik yug |  aardash raajaneta | आधुनिक युग में अब्राहम लिंकन ही एक | आर्दश राजनेता 

22 सितम्बर 1862 को अब्राहम लिंकन ने मुक्ति घेाषणा पत्र पर दस्तखत किए और कहा कि पहली जनवरी 1863 से सभी दास हमेशा के लिये मुक्त हो जायेगें।

दासता को समाप्त करते समय दासों के स्वामियों के विरूद्व अब्राहम लिंकन में घृणा की भावना नहीं थी उन्होने अनुभव किया कि दासों के स्वामियों के इस अपराध का दण्ड उत्तर -दक्षिण यानी सारे देश को मिलकर वहन करना चाहिये क्योकि इस व्यवस्था के लिये सारा राष्ट्र ही दोषी है। गुलाम रखने वालो ंके खिलाफ अगर कार्यवाही कि जाती तो यह र्दुभाग्य पूर्ण होता।

उन्होने लिखा मेरा किसी के प्रति दुर्भावना से कोई सरोकार नहीं मेरा कार्य दुर्भावना पूर्ण कार्यो कि अपेक्षा बहुत व्यापक है। ग्रह-युद्व कि सफलता पूर्वक समाप्ति के सास पास उत्तरी क्षेत्र के एक व्यक्ति ने लिंकन से पूछा कि युद्व समाप्त हो जाने पर आप दक्षिण के साथ कैसा व्यवहार करेगे लिंकन ने कहा बिल्कुल वैसा जैसा कभी युद्व हुआ ही नहीं।

जैस्ेा ही उत्तरी क्षेत्र कि जीत हुई किसी ने सुझााव दिया कि दक्षिण संघ के प्रशासक जेफसर्न डेविस को फांसी दी जाये- लिंकन का उत्तर था कि हमें न्याय करना है निर्णय नहीं विद्रोहियों पर मुकदमा चलाने कि मांग पर लिंकन ने कहा यदि हम शान्ति और एकता चाहते है तो हमें बदले कि भावना खत्म करनी होगी यही उनका अंतिम वकत्व था। छः दिन बाद ही गुड फ्राइडे को वंाशिगठन के एक सिनेमाघर में लिंकन को जाॅन बूथ ने गोली मार दी। उस दिन लिंकन के मुखमंडल पर असीम शान्ति थी ।

कठिन परिस्थितियो मे अब्राहम लिंकन अकेले थे,महात्मा मिका के शब्दो में उन्होने न्याय किया क्षमा किया और प्रभू के मार्ग पर चले गये। मैं जानता हूं कि ईश्वर है और वह अन्याय तथा दासता से घृणा करता है। मैं कुछ नहीं हू पर सत्य सब कुछ है।

Abraham Lincon

In the modern era, Abraham Lincon appears as an idealized politician. He demonstrated this quality not only in the year of the liberation of the black American people, but he also conducted and ended the American Civil War with the same greatness.

Abraham Lincon did not consider himself a savior. His idea was that the process of emancipation of slaves should gradually come into action. He proposed to pay compensation for the owners of the slaves and offered to help with the rehabilitation of the blacks, but fate had to accept something else that had to speed up their work much faster than they wanted to break away from the southern part. Said we have to free the slaves quickly, otherwise we will be given the medicine ourselves. Before reading the draft declaration of the emancipation Lincoln read his We had told our friends that by liberating the slaves, we are ensuring the freedom of the free people.

abraaham linkan | aadhunik yug | aardash raajaneta | Abraham Lincoln was the only one in the modern era. Ideal politician

On 22 September 1862, Abraham Lincoln signed a letter of emancipation and said that from January 1, 1863, all slaves would be free forever.

At the time of abolishing slavery, Abraham Lincoln did not have a sense of hatred against the owners of slaves. He felt that the punishment of the owners of the slaves should be punished in the north-south ie the whole country because the whole nation is guilty for this system. is. If action was taken against those who kept slaves, then this fate would be complete.

He wrote that I have nothing to do with any ill-will towards anyone, my work is much broader than that of malicious work. Nearing the successful end of the planet war, a person from the northern area asked Lincoln how you would treat the south after the war ended. Lincoln said that the war had never happened.

abraaham linkan | aadhunik yug | aardash raajaneta | Abraham Lincon was the only one in the modern era. Ideal politician

Just as someone who won the northern region suggested that South Union Administrator Jefferson Davis be hanged - Lincoln's answer was that we have to do justice, not to demand prosecution of the rebels. Lincoln said if we want peace and unity So, we have to change the spirit, this was his last statement. Six days later, on Good Friday, Lincoln was shot by John Booth in a theater in Washington. Lincon's face was unbroken that day.
In difficult circumstances Abraham Lincon was alone, he did justice in the words of Mahatma Mika, forgiven him and went on the path of God. I know there is God and he hates injustice and slavery. I am nothing but truth is everything.


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एक शिष्य ने बुद्व से पूछा कि ,उचित कार्य क्या है ? buddhism in india





सहानुभूति दिखाइये, करूणा नहीं

दोेस्तों आज किसी से मदद मांगो उसके बाद वह व्यक्ति उससे ज्यादा उस व्यक्ति से पाने कि अपेक्षा रखता है चाहे वो स्वयं अपने हो या फिर कोई पडोसी किसी में भी सहानुभूति नहीं आज उसी पर ये विचार है। धिक्कार है ऐसे लोगो के जीवन पर

एक शिष्य ने बुद्व से पूछा कि ,उचित कार्य क्या है ? आपकी सहानुभूति या करूणा संवेदनापूर्ण मन में जब कोई भी नया विचार पैदा होता है वही उचित कार्य है।    .................................................................धम्मपद



यह हमारे सामने कि बाते है कि हिटलर ने 60 लाख यहूदियों कि नृपंश हत्या कर दी कम्प्यूचिया के पाल पाट शासन ने हत्याओं द्वारा कम्प्यूचिया कि जनसंख्या 60 लाख से घटा कर 40 लाख कर दी युद्वों पर हुए व्यय स्टालिन द्वारा विरोधियों को हटाने तथा चीनी और ईरानी क्रांतिओ के बाद हुई हत्याओं को देखते हुए हम अपने से पूछ सकते है कि क्या राष्ट्रों के शासन चलाने के लिये संवेदना- सहानुभूति नामक किसी चीज का स्थान नहीं है।
राजनीति सत्ता स्वार्थ कि बजाय जन- सामान्य के कल्याण के कल्याण कि भावना से होती है। राजनीतिज्ञ लोगो कि दिलचस्पी केवल आगामी चुनाब में होती है। जबकि राजनीति युक्त नेता कि रूचि आगामी पीढी के कल्याण में होती हैं

राजनीति के साथ-साथ यदि सहानुभूति भी हो तो यह सोने में सुगंध कि बात होती है किसी के कष्ट को समझने और दूर करने की भावना संवदेना है। संवेदना और रहम दोनों पृथक चीजे ंहै। रहम से भद्रता पैदा होती है इसका मैं स्वयं उदाहरण हूॅ हमारे ताउ के लडके जो कहने को बडे है लेकिन काम दो कौडी का नाम मात्र कि सफलता में चकना चूर प्रोन्निति कि है लेकिन कभी बडे होने का फर्ज नहीं निभाया मदद तो कि लेकिन रहम वाली जैसा कि उपर वर्णन किया है। हमारे अन्दर कोई मोटीवेशन नहीं उनका क्योकि आज हम कोई भी किताब उठाये उसमें हमेशा लिखा होता हैं दूसरों कि मदद करें। इन्होने फालतू का जीवन जिया अभी तक मुझे ग्रन्थ और महापुरूषों कि किताबे पढकर लगता है लेकिन ये तो भाई का रिश्ता था एक बार मदद कि बाद दोबारा हाल-चाल तक नही पूछना क्यों पूछे भाई कहीं मदद न मांगने लगे ये है सत्यता आज के मानव इससे आप मदद तो करेगे परन्तु उसके दिल में हीन भावना का बीज जरूर बो देगें। सहानुभूति से ध्येय के प्रति आत्म गौरव और किसी के कष्ट दूर करने में सहायता कि प्रबल आकांक्षा होती है।

संवेदना दिल और सहानुभूति का गुण है। यह राजनेताओं को डर असुरक्षा प्रतिक्रिया और बदले कि भावना से उपर उठाती है। इससे उनमे निर्णय लेने कि शक्ति आती है। प्राचीन शासको ंमें शाइरस महान,सम्राट अशेाक जब 587 ई0पू0 मे राजा नेबुकंदंजर ने येरूशलम पर कब्जा कर लिया बेबीलोन वासियों ने राजमहल को आग लगा दी तथा नेबुकदंजर ने जूहा के राजा कि आंखे फुडवा दी। आक्रमणकारी ने शहर कि दीवारे तोड डाली तथा गरीब यहूदियों को गुलाम बना लिया वे मंदिर के कोषागार से सोने और चांदी के बर्तन उठा ले गये।
करीब पचास साल बाद फारस राज्य के संस्थापक साडरस को इजराइल के शासक से एक संदेश मिला कि मेरे शहर येरूशलम कोदोवारा बनवाओ तथा मेरे व्यक्तियों को रिहा करो।
जब साइरस ने बेबीलोन पर चढाई कि तो उसने सभी यहूदियों को मुक्त कर दिया और कहा कि वे जाकर येरूशलम का पुननिर्माण करे। जिन लोगो के साथ यहूदी रहते थे उनसे उसने यहूदियों को रास्ते के लिये खर्च के पैसे देने की भी आज्ञा दी उसने नेबुकदंजर द्वारा लूटे गए सोने -चांदी के बर्तन बेबीलोन के राजकोष से निकाल उन्हे दे दिये।

दि ओल्ड टेस्टामेंट, बुक आफ एजरा के अनुसार 5400 बर्तन वापस किए गए जिसमें से 30 सोने के कुछ चांदी के तथा अन्य विभिन्न धातुओं के थे। कु्ररता के स्थान पर उसने महानता का परिचय दिया । यहूदियों ने उसे ईश्वर के दूत कि उपाधि दी।

आज समाज में लोग थोडी सी भी तरक्की हासिल करने पर हर आदमी को तुच्छ समझने लगता है ये अन्धकार का पर्दा है, हिन्दू धर्म में हमारा मानना है कि हम मरने के बाद स्वर्ग- नरक कि कल्पना है दोस्तो तो लोग ये क्यों भूल जोते है कि वहां हिसाब पूछा जायेगा तब क्या दोगे कि छोटो का छीना,बडे थे क्या न्याय किया अगर ये सत्य हुआ तो कल्पना किजिये कैसे तडपेगी आत्मा कि एक मौका और मिल जाये ऐसा कर दूं जब सब ठीक हो जाये। ये नरक है।

जिस तरह साइरस जयथं्रुष्ट से प्रभावित था उसी तरह अशेाक बुद्व से प्रभावित था उन्होनें साराकिन और लुंडन द्वारा पावर एण्ड मारलिटि में इस कथन को सत्य कर दिया कि मानव जाति के पैगम्बरों और महान शिक्षकों का नेतृत्व आक्रमणकारियों और सम्राटों से अधिक प्रभावी होता है।

प्राचीन ईरान के लिये साइरस का जो महत्व है भारत के लिये वही अशेाक का । अशेाक का मौर्य साम्राज्य मध्य एशिया से सुदूर दक्षिण ओर पूर्व तक फैला था। राज्य विस्तार महत्वकाक्षां से उसने 260 ईवी0 में आज के उडीसा के तट पर स्थित कलिंग पर चढाई कि अनेक व्यक्ति और घोडे मौत के घाट उतार दिये गए इससे अशेाक का दिल पश्चाताप से भर उठा इस नरसंहार के पछतावे का वर्णन उसने अपने 13वें शिलालेख में किया है। अशेाक पर अपनी पुस्तक पर रोमिला थापर लिखती है कि उसने जो मारकाट कि और लोगो को वेधर किया इससे उसे भारी पछतावा हुआ उसी वर्ष उसने बौद्व धर्म अपना लिया और कुछ वर्षो बााद बौद्व धर्म का प्रबल प्रचारक बन गया। 

आज बौद्व धर्म को भारत कि अेार से इन देशो  को दिया गया महान उपहार माना जाता है। हिस्ट्री आॅफ द वल्र्ड में एच0जी0वेल्स अषोक के संबंध में लिखता है कि इतिहास के हजारों राजाओ ंकि षान ओ षौकत ,महानता ,शांति  आदि के क्षेत्रों में अषेाक का नाम सबसे उपर है,वह चमकते सितारे के समान है वोल्गा से जापान तक आज भी उसका आदर है। आज लोग उसे कोन्स्टन्टाइन या शार्लमन  से अधिक स्मरण करते है।



   





अंग्रेज साम्राज्य नष्ट- भ्रष्ट हो जाये उसने कहा आज तो शांति पूर्वक प्राण दीजिये ,Shri Awadh Bihari

क्रान्तिकारि स्व0 श्री अवध बिहारी

बी0ए0 पास करने के बाद आपने लाहौर सेन्ट्रल ट्रेनिग कालेज से बी0टी0 पास किया था। आप एक बुद्विमान तथा चतुर युवक थे। जज ने भी फैसले  में कहा था।
AvadhBrhari is only 25 years of age but he is a highly educated and intelligent man.  राजा बाजार कलकत्ते में पता चल जाने पर आप अमीरचन्द्र के मकान पर ही गिरफ़्तार कर लिये गये उस समय यू0 पी0 तथा पंजाब का नेतृत्व आपके हाथ में था आपकी सचीन्द्रवावू ने बन्दी जीवन में मुक्त कंठ से प्रशंसा कि है आप प्रयाः पद्य गाया करते थे।


एहसान नाखुदा का उठाये मेरी बला
किश्ती  खुदा पे छोड दॅू लंगर को तोड दूॅ

अदालत ने आप पर 13 अपराध लगाये कहा गया कि लाहौर लॅारेन्स गार्डन के बम कि टोपी इन्हीं ने बसन्तकुमार के साथ मिलकर लगायी थी। और उसमे इनका पूरा हाथ था।

आपको फंासी की सजा दी गयी जिस दिन फंासी होने को थी उस दिन एक अंग्रेज ने आपसे पूछा आपकी आखरी ख्वाहिष क्या है आपने उत्तर दिया यही कि अंग्रेज साम्राज्य नष्ट- भ्रष्ट हो जाये उसने कहा आज  तो शांति पूर्वक प्राण दीजिये अब बातों में क्या रखा है क्या फायदा ? इन पर आपने जबाब दिया आज 
शांति कैसी मैं तो चाहता हूॅ कि आग और भडके चारों ओर आग भडके तुम भी जलो मेैं भी जलूॅ और हमारी गुलामी भी जले और अन्त में भारत कुन्दन बनकर रह जाये। फांसी के समय आपने स्वयं कूद कर रससी गले में डाल ली और वन्देमातरम के साथ हसते - हसते विदा हो गये।

प्रिय मित्रों ऐसे ऐसे शूरवीर  कहीं नहीं जन्में होगे जिन्होने निस्वार्थ देश  भक्ति के लिये अपने जीवन का बलिदान कर दिया जहां आज भाइयो में परिवारो में आपसी मदभेद बने रहते हैं मृत्यु तक बोलते नहीं क्रान्तिकारियों ने निस्वार्थ हम आपके सुनहरे भविष्य के लिये सब न्योछावर कर गये।
                                                  
 Revolutionary Late Shri Awadh Bihari

After passing B.A., you passed B.T. from Lahore Central Training College. You were an intelligent and clever young man. The judge also said in face.

Avadh Brhari is only 25 years of age but he is a highly educated and intelligent man. When you came to know in Raja Bazar, Calcutta, you were arrested at Amir Chandra's house at that time, the leadership of UP and Punjab was in your hands, your Sachindravavu praised with free speech in the prison life that you used to sing the verse.

Raise my favor with favor
Drop the anchor on the tree

The court imposed 13 offenses against you, saying that they had planted the hats of Lahore Lawrence Gardens along with Basant Kumar. And he had his hands full in it.

You were punished for being trapped. On the day when you were to be trapped, an Englishman asked you, what is your last wish, you answered that the British Empire should be destroyed - he said, "Peace be peaceful, what is kept in things now?" What is the use ? On this you answered, how is peace today, I want you to burn with fire and fire around you, I also burn, and our slavery also burns and in the end, India should become a gold. At the time of hanging, you jumped yourself and put you in the throat and you stopped laughing with Vande Mataram.
Dear friends, such brave heroes will not be born anywhere, who sacrificed their lives for selfless devotion, where there is mutual discrimination among the families today, brothers, do not speak till death.                                                

अपने सारे अस्तित्व का तथा व्यक्तित्व को छिपाकर प्राण देने वाले इस वीर श्री मदनलाल ढीगरा,सावरकर जी

क्रान्तिकारियों, स्व0 श्री मदनलाल ढीगरा





दोस्तों अब तो काफी दिन हो गये अब तो आप मुझे जान ही गये होगे। आप

सभी लोग क्रान्तिकारी स्व0 श्री भगत सिंह ंिसह को जानते ही होगे क्यो नहीं
आज हम आपको उनके मित्रों का संघर्ष से भी अवगत कराउगां दोस्तो
आज हमें थेाडी सी तकलीफ हुई नहीं कि हमने थक कर हथियार डाल दिये
और वस हो गयी लीला तो आज हम बात करेगे ।



श्री मदनलाल ढींगरा जी कि जिन्होने इग्लैण्ड में रहकर वो कर दिखाया

जिसके लिये जिगर चाहिये बहुत ज्यादा

देश कि स्वतंत्रता के लिये संसार के कोने मे बैठकर अपने सारे अस्तित्व का

तथा व्यक्तित्व को छिपाकर प्राण देने वाले इस वीर के बाल्यजीवन कि कहानी
बहुत कुछ ढूढ- तलास करने पर भी न मिल सकी वंश जन्म या निवास स्थान
के सम्बन्ध में केवल इतना ही ज्ञात हुआ कि अमृतसर जिले के किसी पंजाबी
खत्री के यहां उनका जन्म हुआ बी0ए0 पास करने के बाद वे इग्लैण्ड चले गये
थे। इन दिनो इग्लैड में सावरकर का बडा जोर था इंडिया हाउस द्वारा जोरो
 से प्रचार हो रहा था कि कन्हाईलाल और सत्येन्द्र कि फांसी के समाचार ने
वहां और उत्तेजना फैला दी। एक दिन रात के समय सावरकर ने उनसे
जमीन पर हाथ रखने को कहा। मदनलाल के दोनो हाथ पृथ्वी पर रखते ही सावरकर जी ने उपर से सूवा मार दिया सूवा उसे छेदकर पार निकल गया और खून कि धार वह चली किन्तु फिर भी उस वीर के आकृति में अन्तर न आया । सावरकर जी ने सूवा दूर फेक दिया उस समय दोनो हदय प्रेम से गदगद हो उठे उनकी आंखों से आसुओं की धारा बह चली हाथ फैलाये भर कि  देर भी दोनो हदय एक- दूसरे से मिल गये आंखेंा से आंसू पोछते हुए सावरकर जी ने मदन को छाती से लगा लिया।
अगले दिन इंडिया हाउस कि मीटिग में मदनलाल नहीं आये कुछ लोगो ने उन्हें सर करजन वायली कि स्थापित कि हुई भारतीय विद्यार्थियों कि सभा में जाते देखा था वायली साहब भारत मंत्री के ऐडी कांग थे। और भारतीय विद्याार्थियों पर खुफिया पुलिस का प्रबंन्ध कर उनकी स्वाधीनता को कुचलने में लगे रहते थे। मदन के इस आचरण पर इंडिया हाउस के विद्याार्थियों में आलोचना शुरू हो गयी किन्तु सावरकर जी के समझाने पर सब लोग चुप हो गये। सन 1909 कि पहली जुलाई का दिन था सर करजन इम्पीरीयल इन्सटयूट जहांगीर हाॅल कि सभा में किन्ही दो व्यक्तियो से बातचीत कर रहे थे। कि देखते-देखते मदनलाल ने सामने आकर उस पर पिस्तौल का फायर कर दिया। सभा में हाहाकार मच गया और मदनलाल पकडकर जेल मे बन्द कर दिया गया चारों ओर से उनपर गालियों कि बौछारें पडने लगी यहां तक कि स्वयं पिता ने भी सरकार के पास तार भेजा कि मदनलाल मेरा लडका नहीं है। जिस समय इग्लैण्ड विपिन बाबू के सभापतित्व में उनके कार्य के विरोघ में सभा हो रही थी और सावरकर जी उसका विरोध करने खडे हो गये। इतने मे एक अंग्रेज   ने क्रोध मे आकर यह कहते हुए कि Look how straight the english fist goes उनको एक घूसां मार दिया पास ही में एक भारतीय युवक खडा था उसने यह कह कर कि Look how straight the indian club goes उस अंग्रेज के सिर पर लाठी जमा दी।गडबड हो जाने से सभा विसर्जित हो गयी। प्रस्ताव पास न हो सका

 अदालत में मदनलाल में सब बाते मानते हुए कहा

मैं मानता हूॅ कि मैने उस दिन एक अंग्रेज कि हत्या कि किन्तु वह उन अमानुशिक कालापानी के रूप में दिये गये हैं । मैने इस कार्य में अपनी अन्तरातमा के अतिरिक्त और किसी से परामर्श नहीं किया एक हिन्दू होने के नाते मेरा अपना विश्वास है कि मेरे देश के साथ अन्याय करना ईश्वर का अनमान करना है। क्योकि देश की पूजा श्री रामचन्द्र कि पूजा है।औरा देश कि सेवा श्री कृष्ण कि सेवा है। मुझ जैसे निर्धन और मूर्ख युवक के पास माता की भेट के लिये अपने रक्त कि अतिरिक्त और हो ही क्या सकता हे। और इसी से मैं अपने रक्त कि श्रद्वाजलि माता के चरणेां पर चढा रहा हूुॅ।

भारत में इस समय केवल एक ही शिक्षा कि आवश्यकता हैऔर वह है मरना सीखना और उसके सिखाने का एकमात्र ढंग स्वयं मरना है ईश्वर से मेरी सही प्रार्थना है कि मै बार- बार भारत कि गोद में जन्म लूॅ उसी के कार्य में प्राण देता रहूॅ - वन्दे मातरम्

अन्तः को आप वीरतापूर्वक फांसी के तख्ते पर खडे होकर वन्दे मातरम कि
ध्वनि के साथ 16 अगस्त 1909 को अपनी इहलीला समाप्त कर गये। दोस्तो ऐसे ऐसे शूरवीरो कि ये धरती भारत इनकी कहानी और जजबा दिल दहला देने वाली है। हम इन सब क्रान्तिकारियों को धन्यवाद देते है कि इन लोंगो कि बजह से आज हम आजाद और खुले आसमान के नीचे धूम रहे है।

Friends, it has been many days now, you must have known me. you
Why would everyone know the revolutionary late Shri Bhagat Singh ?
Today we will also inform you about the struggle of their friends
Today we did not have any trouble that we tired and gave up arms
And Leela has recovered, so today we will talk.
Mr. Madanlal Dhingra ji, who lived in England and did it
For which liver is very much needed
For the freedom of the country, sitting in the corner of the world,
And the story of the childhood of this hero who killed his life by hiding his personality
Searching a lot - could not find a dynasty birth or place of residence even after searching
With regard to this, it is known only that a Punjabi in Amritsar district
After passing his B.A. at Khatri, he went to England
Were. Savarkar had a big push in these days of England in India house.
 It was being publicized that news of the hanging of Kanhai Lal and Satyendra
Spreaded more excitement there. One day at night, Savarkar asked him
Asked to lay hands on the ground. As soon as Madanlal put both his hands on the earth, the rider killed him from the top and the hole broke through the hole and the edge of blood went on but still there was no difference in the shape of that hero. Savarkar threw away the swine, at that time both the hearts were overwhelmed with love, their eyes were filled with tears flowing down their hands, for a long time both the bodies met each other, while wiping tears from the eyes Savarkar felt Madan from the chest. took.

The next day, some people who did not come to India House meeting Madanlal saw him going to the meeting of Indian students who had established Sir Karjan Vayali. And by managing the intelligence police on Indian students, they were engaged in crushing their independence. Criticism of Madan's conduct started among the students of India House, but everyone got silent on Savarkar's explanation. The first July of 1909 was the day Sir Karjan was talking to any two persons in the Imperial Institute Jahangir Hall. Seeing that Madanlal came in front and fired a pistol at him. There was an outcry in the meeting and Madanlal was caught and imprisoned in prison and he was hit by abuses from all around, even his father sent a telegram to the government that Madanlal was not my son. At the time, there was a meeting in opposition to his work under the presidency of England Vipin Babu and Savarkar stood up to oppose him. So an Englishman got angry in saying that Look how straight the english fist goes to bribe him. There was an Indian youth standing nearby, saying that Look how straight the Indian club goes on that Englishman's head. The gathering was immersed due to disturbance. Proposal could not pass

 Admitting everything in Madanlal in the court said

I believe that I murdered an Englishman that day, but he has been given as those inhuman black water. I have not consulted anyone other than my conscience in this work. Being a Hindu, I believe that to do injustice to my country is to disrespect God. Because the worship of the country is the worship of Shri Ram Chandra and the service of the country is the service of Shri Krishna. What can a poor and foolish young man like me have in addition to his blood for his mother's offering. And this is why I have been climbing on the feet of my mother Shradwajali.

The only education that is required in India at this time and that is to learn to die and the only way to teach it is to die by myself. My true prayer to God is that I am born again and again in India, and will die in that work - Vande Mataram

You stood bravely on the gallows hanging on the inner end

On 16 August 1909 with the sound ended his illusion. Friends, such brave warriors that this land of India is going to shock their story and spirit. We thank all these revolutionaries that today with the sound of these people, we are freeing under the fr
हिन्दू,श्री रामचन्द्र,श्री कृष्ण ,Shri Bhagat Singh,Madanlal Dhingra ji,Savarkar ji,Sir Karjan Vayali,Shri Ram Chandra,Shri Krishna,Vande Mataram



 





जमीदार की झोपडी ,english, Hindi short stories | Moral Stories in Hindi , english


 एक टोकरी भर मिटटी



विचार लो कि मत्र्य हो, न मुत्यु से डरो कभी
मरो, परन्तु यों मरों कि याद जो करें सभी
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे वृथा जिये
मरा नहीं वही कि जो ,जिया न आपके लिये
यही पषु पृव्रत्ति है कि ,आप आप ही चरे
वही मनुष्य है कि ,जो मनुष्य के लिये मरे।


एक झोपडी के बाहर एक जमीदार की झोपडी थी। जमीदार साहब को अपने महल का हाता बनाने मे वह झोपडी को हटाना चाहता था जमीदार साहब  ने बूढिया से बहुत कहा  कि अपनी झोपडी हटा ले परन्तु बुडिया ने अपनी झोपडी नहीं हटाई उस बुढिया की यादें उस झोपडी से जुडी थी वहीं पर मर मिटना चाहती थी। वहां पर उसका पति मरा था, उसका इकलौता बेटा मरा था, और उसकी पतोहू ने भी अपना जीवन समाप्त किया था। अव उसके पास उसका एकमात्र सहारा उसकी पांच वर्ष की कन्या थी जो उसके लडके कि एकमात्र निशानी थी। वह वहां इन्हीं यादों को लेकर जी रहीं थी जबसे जमीदार ने उससे झोपडी खाली करने केा कहा तब से वह परेशान  थी।
ज्ब बुढिया ने झोपडी खाली नहीं की तो जमीदार ने चाल चली और वकीलों कि जेब गर्म करके झोपडी खाली करवा ली । बुढिया एक दिन जमीदार के पास आयी और बोली अब तो यह जमीन आपकी हो गयी आप से एक विनती करती हूं। अगर आप इजाजत दे तो कहूॅ। जमीदार ने कहा कहो क्या कहना चाहती हो बुढिया बोली कि जबसे झोपडी छोढी है तब से मेरी पोती रोती रहती है खाना नहीं खाती है और कहती हैं वहीं चलकर खाना खांउगी मैने यह सोचा है कि मैं झोपडी से एक टोकरी मिटटी ले जाकर उसका चूल्हा बनाकर उस पर रोटी सेंक कर पोती को दूगी तो वह खा लेगी। इसलिये आपसे निवेदन है कि एक टोकरी मिटटी ले लेने दे जमीदार साहब ने आज्ञा दे दी।
विधवा झोपडी के भीतर गई और वहां पुरानी बातो को याद करके खूब रोई। फिर आंसू पोछकर एक टोकरी मिटटी भर ली और जमीदार साहब से बोली साहब- इसमें सहारा लगा दें ताकि मै इसे अपने सिर पर रख लूं पहले तो जमीदार साहब बहुत नाराज हुए परन्तु फिर जब विधवा ने हाथ- पैर जोडे तो दया आ गई और स्वयं ही वह टोकरी को उठाने लगे ज्योंही हाथ बढाकर टोकरी उठाने लगे त्योहीं उन्होने देखा कि यह काम उनकी शक्ति के बाहर था।अतः वह कुछ लज्जित होकर कहने लगे मुझसे यह काम नहीं होगा। यह टोकरी हमसे नहीं उठायी जायेगी।
यह सुनकर विधवा ने कहा महाराज नाराज न हो ना एक टोकरी भर मिटटी नहीं उठती है तो इस झोपडी में हजारो टोकरी मिटटी पडी है उसका भार जन्म भर  कैसे उठाओगे इस बात पर विचार किजियेगा
जमींदार साहब धन-मन से गर्वित हम अपना कर्तव्य भूल गये थे पर विधवा के उर्पयुक्त वचन सुनकर उनकी आंखे खुल गयीं। अतः अपने कृतकर्म पर पश्चाताप कर उन्होने उस विधवा से क्षमा मांगी और उसकी झोपडी वापस दे दी।


One basket full of soil

Consider that you are a friend, never be afraid of death
Die, but remember all who die
Live like this
He is not dead, who does not live for you
This is the fact that you feed yourself
He is the man who died for man.

There was a landlord's hut outside a slum. He wanted to remove the slum in making the landlord the palace of his palace, the landlord told the old lady to take away his hut but Budiya did not remove his hut, the memories of that old lady was associated with that hut where she wanted to die. There her husband was dead, her only son was dead, and her daughter-in-law also ended her life. Ava's only support for him was his five-year-old daughter, who was the only son of his son. She was living there with these memories, when the landlord asked her to clear the hut then she was the trouble.

When the old man did not vacate the hut, the zamindar did the trick and got the hut emptied by heating the pockets of the lawyers. Budhiya came to the zamindar one day and said, now this land has become yours and I request you one. If you allow, then say The landlord said, what do you want to say? The old lady said that since the time she left the hut, my granddaughter keeps crying and does not eat food and says that she will eat food while walking there. I have thought that by taking a basket from the hut and making her stove, If she bakes bread and gives it to her granddaughter , she will eat it. That is why you are requested to let a basket take the soil, the landlord has given permission.
inside 
The widow went the hut and cried a lot after remembering the old things there. Then after wiping the tears, filled a basket and said to the landlord, "Sir, I should support it so that I can put it on my head. At first the landlord was very angry but then when the widow added her hands and feet, she felt pity and herself." As soon as he started lifting the basket, he started to raise the basket and he saw that this work was outside his power. This basket will not be picked up from us.

Hearing this, the widow said, "Maharaj, don't get angry or if one basket does not lift, then thousands of baskets are lying in this slum, consider how you will bear the burden of life."


Zamidar Sahib, proud of his wealth, forgot his duty, but opened his eyes after hearing the widow's favorable words. So, repenting at his creed, he apologized to the widow and gave her slum back.



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एक स्त्री का प्रेम वर्णित है और देश प्रेम love of woman,true love

प्रसाद 

दोस्तो ये कहानी जयशंकर प्रसाद जी द्वारा लिखी एक ऐसी कहानी है जिसमें एक स्त्री का प्रेम वर्णित है और देश प्रेम वर्णित हैं किस तरह वह अपने प्रेम और देश प्रेम दोनेा को जीत हासिल कराती है उसी का ये वर्णन है।

कोशल  राज्य में प्रतिवर्ष एक राजकीय कृषि उत्सव मनाया जाता था। एक कृषक कि भूमि का चयन करके राजा स्वयं उस पर स्वर्ण निर्मित हल चलाकर बीज-वपन किया करते थे । भूमि के स्वामी को भूमि  का कई गुना मूल्य प्रदान किया जाता था और उस भूमि पर राज्य का स्वामित्य हो जाता था। पुरस्कार कहानी इसी उत्सव के साथ प्रारम्भ होती है। कोषल के महान सेनापति सिंहमित्र कि कन्या मधूलिका का खेत उस वर्ष चुना गया था। राजा स्वर्ण हल चला रहे थे और मधूलिका बीज दे रही थी।

उत्सव के पूर्ण होने पर रीति के अनुसार मधूलिका को उसकी भूमि का चार गुना मूल्य स्वर्ण मुद्रायें कोषल नरेश  के उपर न्योछावर करके भूमि पर बिखेर दीं। मंत्री ने इसे राजकीय अनुग्रह का अपमान मानते हुए मधूलिका को झिकडा और राजा कि भी भौहे चढ गयी किन्तु मधूलिका ने कहा कि वह अपने पित् पितामहों कि भूमि को बेचना अपराध मानती है। अतः वह उसका मुल्य स्वीकार नहीं कर सकती उत्सव कि समाप्ति पर मधूलिका अपनी भूमि कि चले जाने पर दुखी होकर एक वृक्ष कि छाया में जा बैठी।
मगध राज्य का एक राज कुमार इस उत्सव को देख रहा था वह मधूलिका कि सरल स्वाभिमानी मूर्ति पर मुग्ध हो गया उत्सव के दूसरे दिन उसने मधूलिका के समीप जाकर के उससे सहानुभूति प्रदर्षित कि और उसके सम्मुख पे्रम प्रस्ताव रखा किन्तु मधूलिका ने उसे निराष कर दिया।
मधूलिका दूसरो के खेतों में काम करके जीवन यापन कर रहीं थीं वर्षा की एक एकाकी में उसे अरूण के प्रथम मिलन और प्रस्ताव का ध्यान आ गया। उसे अरूण के प्रस्ताव को ठुकराने पर पष्चाताप हो रहा था। उन बीते हुए दिनों को लौटा लाने के लिये उसका मल व्याकुल हो उठा तभी उसकी झोपडी के बाहर किसी के आने कि आहट हुई और कौन कहने पर उसका तिरस्कार प्रेमी  अरूण उसके सामने उपस्थित था। अरूण ने बताया कि उसे मगध से निष्कासित कि दिया गया था और वह अजीविका कि खेाज में कोषल आया हुआ था। इस वार मधूलिका उसे अस्वीकार नहीं कर सकी।
अरूण बहुत महत्वकांक्षी युवक था। उसने मधूलिका को राजरानी बनाने का सपना दिखाया वह कोषल राज्य पर अधिकार करने कि योजना बनाने लगा मधूलिका के प्रेम को उसने अनपी लक्ष्य प्राप्ति का साधन बनाया सिहकमत्र कि कन्या होन के नाते राजा का मधूलिका के प्रति विषेष स्नेहभाव था। अरूण ने मधूलिका को प्रेरित किया कि वह कोषल के श्रावस्ती दुर्ग के समीप नाले के पास की भूमि राजा से मांग ले। राजा कुछ हिचकिचाहट के पष्चात वह भ्ूामि उसे दे दी और अरूण वहां अपने भावी षडयन्त्र कि योजना बनाने लगा।
अरूण के प्रेम में विभेार मधूलिका ने भूमि तो अरूण को दिलवा दी किन्तु अपनी मातृभूमि को पराधीन कराने के षडयन्त्र में सम्मिलित होना उसे धिक्कारने लगा। वह घेार आत्म गिलानि में भर उठी। अपने पिता सिंहमित्र के सुयष को कलंकित करने कि कल्पना से ही वह कांप उठी अन्र्तद्वन्द में डूबी मधूलिका रात्री में राजपथ पर पगली कि भांति बढी जा रही थी। दूसरी ओर से सैनिक कि टुकडी के साथ आते सेनापति को उसने  अरूण कि सारी योजना बता दी।
मधूलिका कि सूचना पर षीध््रा ही अरूण को बंदी बना लिया गया सिहंमित्र कि कन्या ने फिर एक वार कोषल की स्वाधीनता कि रक्षा कि थी राजा उसे पुरस्कृत करना चाहते थे। देष-प्रेम कि परीक्षा में मधूलिका उत्तीर्ण हो गयी और बन्दी और मृत्युदण्ड पाए अरूण के रूप मे उसका प्रेम उसकी परीक्षा चाहता था। मधूलिका ने प्रेम का भी मूल्य चुकाया उसने पुसरकार मांगा तेा मुझे भी मृत्युदण्ड मिले । और वह अपने प्रेमी अरूण के बगल में खडी हुई।  

एक चरित्रनिष्ठ व्यक्ति कि झांकि प्रस्तुत namak ka daroga,short story hindi, english,

नमक का दरोगा


 


प्रित्र मित्रों आज हम आपको विश्व विख्यात लेखक मुंशी प्रेम चंन्द्रजी द्वारा लिखी गयी काहानी सुनाने जा रहा जिससे आपको अपने जीवन को सरलता और र्निभियता से जीने में मदद करेगा इसमे बताया गया है। कि किस तरह समस्या के सामने बिना समझौता के अपने आप को दृढ संकल्पित रखा जाये।

नमक का दरोगा, प्रेमचन्द्र जी कि श्रेष्ठ कहानियों में गिनी जाती है।इसमें कहानीकार ने एक चरित्रनिष्ठ व्यक्ति कि झांकि प्रस्तुत कि है तथा समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और पाखण्ड पर प्रहार करते हुए असत्य पर सत्य कि विजय का दिग्दर्षन कराया है।

ब्रिटिश शासन  का समय था मुंशी प्रेम चंन्द्रजी वंशी धर शिक्षा समाप्त करके नौकरी कि खेाज में घर से चले उनके वृद्व पिता ने उनको कुछ बडी व्यवहारिक सीखें प्रदान कि उनको उनको कहा गया  िकवह औहदे पर ध्यान न देकर उपर से होने वाली कमाइ पर ध्यान दे। वेतन आदमी देता है उपरी कमाई भगवान देता है। मनुष्य कि आवश्यकता  और परिस्थ्तियों के अनुसार उससे व्यवहार करने पर ही धन प्राप्त होता हैं इन व्यवहारिक शिक्षाओं  को गांठ में बाधंकर वंशी धर जीवन में उतरने को चल दिये

वंषीधर अच्छी मुहूर्त में निकले थे अतः उनकी नियुक्ति तत्कालीन नमक- विभाग के दरोगा के पद पर हो गयी परिवारीजन यह समाचार सुन बडे प्रसन्न हुए नमक विभाग रिश्वत के लिये कुख्ययात था।वंषीधर ने अपने आपको बंदाग रखते हुए नौकरी कि । अपनी चरित्र-निष्ठा और परिश्रम से उन्होने सभी अधिकारियो का विष्वास और प्रषंसा अर्जित कि।
एक रात दरोगा वंषीधर अपने कार्यालय में मीठी नीद सो रहे थे कि उनके समीपवर्ती नावों के पुल पर गडगडाहट सुनाई दी। उनको संदेह हुआ और वे एक सिपाही को साथ लेकर घेाडे पर सवार होकर पुल के समीप जा पहुचे वहां पता करने पर पता चला कि उन गाडियो में नमक भरा था।और वे उस इलाके के प्रसिद्व जमीदार पं0 अलोपीदीन की गाडियां थी कर-चोरी के उददेष्य से माल रात में ले जाया जा रहा था दारोगा साहब ने पं0 आलोपीदीन को बुलवाया तो वह बडी निष्चिंतता से पान चवाते हुए उपस्थित हुए उन्होने अपनी वाचालता और प्रभ्ुाता से वंषीधर को प्रभावित करना चाहा उन्होने चालीस हजार तक रिष्वत देनी चाही किन्तु ईमानदारी के नए-नए जोष में डूबे वंषीधर ने तनिक भी विचलित न होते हुए अलोपीदीन को बंदी बनाने की आज्ञा दी।
अलोपीदीन केा गिरफतार करके न्यायालय ले जाया गया । सारा नगर इस अविश्वसनीय दृष्य को देखने उमड पडा प्रायः सभी लोग अलोपीदीन कि निन्दा कर रहे थे। किन्तु न्यायालय में पहुचते ही दृष्य बदल गया। अलोपीदीन के चापलूस वकील और कर्मचारी उनका सेवा के लिये दौड पडे जो धन- वैभव एकांत यमुना तट पर विजयी न हो सका वह न्याय के आलय में विजयी हो गया मजिस्ट्रेट ने उस ईमानदार अधिकारी को फटकारा और उस पर अधिकार मद का आरोप लगाते हुए अपराधी अलोपीदीन को दोष मुक्त कर दिया।
न्यायालय के व्यवहार और पाखण्ड का देखकर वंषीधर को जीवन का एक आघातदायी अनुभव हुआ।उन्होने जान लिया कि बडी-बडी उपाधियांें से विभूषित लम्बी- लम्बी दाडियो और चोगो को धारण करने वाले कितने वडे पाखण्डी और भ्रष्ट हैं।थेाडे ही दिनो बाद वंषीधर को नौकरी से भी हाथ धोना पडा। निराष और हताष वंषीधर घर पहुचे तो बाप ने सिर पीट लिया और पत्नी भी सीधे मुह न बोली

व्ंाषीधर दुखी होकर घर पर बैठे हुए परिवारजनों के ताने सुन रहे थ्ेा कि एक दिन एक सजीला रथ उनके द्वार आकर रूका उसमें से उतरे पं0 अलोपीदीन वंषीधर के पिता अगवानी करने दौड पडे और अपने पुत्र कि ईमानदारी को कोसने लगे पं0 अलोपीदीन ने उनको रोका और वंषीधर जैसा पुत्ररत्न पाने पर बधाई दी । वंषीधर समझ रहे थे कि अलोपीदीन जले पर नमक छिडकने आये हैं। किन्तु जब उन्होने वंषीधर को अपनी समस्त जायजाद का स्थाई मैनेजर बनाने का प्रस्ताव पत्र पर हस्ताक्षर के लिये सामने रख दिया और हसताक्षर कराए बिना बहां से न जाने का संकल्प भी सुनाया तो वंषीधर की आंखों में आंसू भर आये। नई नौकरी में बढिया वेतन ,बंगला,सवारी और नौकर चाकरो कि भी व्यवस्था थी।

मुंशी वंशीधर,अलोपीदीन के आग्रह को नहीं टाल सके अन्ततः बेईमानी से प्राप्त धन कि सुरक्षा के लिये अलोपीदीन को को एक ईमानदार व्यक्ति कि ही शरण में जाना पडा । सत्य ,असत्य पर विजयी हुआ। 
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अपना- अपना भाग्य भारतीय मानसिकता के अनेक रूपों का मनोवैज्ञाानिक प्रस्तुतिकरण है,motivational story

अपना - अपना भाग्य



प्रिय मित्रों आज हम आपको एक भारतीय लेखक द्वारा लिखी गयी कहानी से परिचित कराउगा जिसको पडने के बाद आपको बहुत सी चीजे जिसको आपको याद रखना है और अपने जीवन पथ पर ऐसा द्वारा नहीं होने देना है।
आज हम बात करेगे लेखक जैनेन्द्र कुमार जी कि बचपन में हीं पिता का साया उठ जाने के कारण माता द्वारा पालन पोषण मूल नाम आन्नदीलाल

विचार लो कि मत्र्य हो, न मुत्यु से डरो कभी
मरो, परन्तु यों मरों कि याद जो करें सभी
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे वृथा जिये
मरा नहीं वही कि जो ,जिया न आपके लिये
यही पषु पृव्रत्ति है कि ,आप आप ही चरे
वही मनुष्य है कि ,जो मनुष्य के लिये मरे।


अपना- अपना भाग्य भारतीय मानसिकता के अनेक रूपों का मनोवैज्ञाानिक प्रस्तुतिकरण है। आत्महीनता,सास्कृतिक अपराध बोध और भाग्य की आड लेकर समाज के दुर्दषाग्रस्त वर्ग को उसके भाग्य पर छोड देने कि विडम्बनाओं पर लेखक ने मार्मिकता से उजागर किया है।
लेखक अपने मित्र के साथ नैनीताल घूमने गया। अंग्रजी षासन के दिन थे अतः रमणीक पर्वतीय स्थलों पर अंग्रेजो कि उपस्थिति स्वाभिक थी लेखक ने वहां आने वाले देषी तथा विदेषी पर्यटकों का बारीकी से निरीक्षड किया एक ओर झाील में अंग्रेज स्त्री औार पुरूष नौकाचालन का आन्नद ले रहे थे। तो दूसरी ओर भ्रमणार्थ पर निकले भारतीय और अंग्रेज लोगो के व्यवहार और स्वभाव का अन्तर स्पष्ट दिखाई दे रहा था। अंग्रेज वालक उत्फुल्ल, चंचल,और तरोताजा दिखाई पडते थे जबकि भारतीय बच्चे सहमे व सत्वहीन से दिखाई पडते थे। कुछ भारतीय अपने काले रंग को छिपाकर अंग्रेज दिखने कि हास्यपद चेष्टा में लीन थे।
लौटते समय मित्र कि आग्रह पर लेखक भी ताल के किनारे बैंच पर बैठ गया । घना कुहरा छा रहा था। रात्रि के ग्यारह बजे थे। लेखक षीघ्र होटल पहुचना चाहता था किन्तु मित्र कि सनक के सामने उसकी एक ना चली थेाडे समय बााद कुहरे के बीच में एक धुधली काली छाया उनको आती दिखाई दी निकट आने पर पता चला कि वह लगभग 10 बर्ष का  पहाडी बालक था। भयंकर ठंड में भी उसके षरीर पर एक फटी कमीज के अतिरिक्त कुछ न था। मित्र ने उससे उसका पूरा परिचय पूछा तो बह गरीवी के अभिषाप से ग्रस्त घर से भागा हुआ था और वह पहाडी बालक काम से हटा दिया गया था और भूखा था। लेखक का मित्र उसे एक परिचित के होटल पर ले गये और उसे नौकर रख लेने का आग्रह किया किन्तु उन्होने इन्कार कर दिया स्वयं उसकी मदद सहायता करना चााहता है किन्तु जेब में दस-दस के ही नोट होने के कारण बजट बिगड जाने कि आषंका से उसे कुछ नहीं दे पाता । अगले दिन आने को कहकर दोनो मित्र उसे उसके भाग्य पर छोडकर अपने होटल में चले जाते हैं अगले दिन नैनीताल से विदा होते समय उनको ज्ञात होता है किव ह बालक रात में ठंड से मर गया। लेखक अपना- अपना भाग्य कहकर संतोष कर लेता है।
मित्रो आज भी हम अकसर यही करते है, दोस्तो सर्दी का मौसम है आपके पास क्या, हर किसी न किसी के पास पुराने कपडे,खाना पीना जो बचे उसे बचा कर रखे और आप जहां भी है उस षहर में देखिये एक दिन घूमकर जहां इस तरीके के लोग जिनकेा पता नहीं भगवान ने क्यों बनाया इनकी मदद करें। कपडे और भूख कि बजह से कोई न मरे ये हर मनुष्य का कर्तव्य है। लेखक ने भी ये र्वतांत इस लिये बताया क्योकि दोवारा ये गलती न हो। आपका थेाडा सहयोग किसी की जान बचा सकती है।

नमस्कार इसी तरह प्यार बनाये रखें।

 


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एक दिन इन सबको छोडकर जाना पड़ेगा ,power of mind

विवेक क्या है 


विचार लो कि मत्र्य हो, न मुत्यु से डरो कभी

मरो, परन्तु यों मरों कि याद जो करें सभी
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे वृथा जिये
मरा नहीं वही कि जो ,जिया न आपके लिये
यही पषु पृव्रत्ति है कि ,आप आप ही चरे
वही मनुष्य है कि ,जो मनुष्य के लिये मरे।




प्रिय मित्रों क्या आप बता सकते है कि विवेक क्या है,विवेक का अर्थ है सत्य क्या है,शाष्वत क्या है,नश्वर क्या है,यह बात ठीक से समझा कर अपने जीवन में ढाल लें। एकमात्र परमात्मा सत्य है। शेष सब जो भी है सो पुत्र,परिवार,भवन,दुकान,मित्र,सम्बन्धी अपने पराये आदि सब अनित्य है।एक दिन इन सबको छोडकर जाना पड़ेगा । इस शरीर  के साथ ही समस्त सम्बन्ध निन्दा ,प्रतिष्ठा ,अमीरी गरीबी ,तन्दुरूष्ती यह सब जलकर राख हो जायेगी। तब मित्र,पति-पत्नी,बालक,व्यापार-धन्धे , लोगों कि खुशामद  आादि कोई भी मृत्यु से नहीं बचा पायेगी।

आपको एक प्रसंग कि याद दिलाना चाहॅूगा कि भगवान राम के गुरू महर्षि वशिष्ठ कहते है हेे रामजी चांडाल के घर कि भिक्षा खाकर भी यदि सत्संग मिलता हो और उसमे शाष्वत -नशवर का विवेक जागता हो तो यह सत्संग नहीं छोडना चाहिये।


वशिष्ठ  जी का कथन कितना मार्मिक है क्योकि ऐसा सत्संग हमें अपने शाष्वत  स्वरूप कि ओर ले जायेगा जबकि संसार के अन्य व्यवहार चाहे जैसी भी उपलब्धि कराये अंत में मृत्यु के मुख में ले जायेगे।
दोस्तों मैं ये नहीं कहता कि उपलब्धि हासिल करना बुरी बात है किन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि हम इंसान,,अमर नहीं हैं हमंे हमेशा यह पता होना चाहिये कि हमें एक दिन मरना भी है और उस परमेश्वर  को हिसाब भी देना है अपने द्वारा किये गये कामों का अगर ये वात याद रखखी जाये तो बहुत सारी समस्या ऐसे ही सुलझ जायेगी।


आज हर आदमी दुखी है। आप दुखी क्यो है ?

तनिक जागरूकता से विचारिये कि आप दुखी क्यो हैं आपके पास धन नहीं हैं। आपकी बुद्वि तीक्ष्ण नहीं है। आपक पास व्यवहारकुशलता नहीं है।आप रोगी है।आपमें बल नहीं है।या सांसारिक ज्ञान नहीं है।
बहुतो के पास यह सब है, धनवाान है,बलवान है, व्यवहारकुशल है,बुद्विमान हैं,जगत का ज्ञान भी जीभ के सिरे पर है। तथापि वे दुखी है। दुखी इसलिये नहीं है कि उनके पास इस सब वस्तुओ अथवा वस्तुओ के ज्ञान का अभाव है। परन्तु दुखी इसलिये है कि संसार का सब कुछ जानते हुए भी अपने आप को नहीं जानतें।  

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मन करता है, नंगा होकर कुछ घण्टों तक सागर -तट,कवि श्री नागार्जुन जी hindi poetry about life ,hindi poetry about nature

नंगा होकर


दोस्तो आज हम आपको भारतीय कवि श्री नागार्जुन जी कि एक कविता सुनाउगा जिसमे किस तरह से उन्होने अपने मन कि सुन्दर इच्छाओं को व्यक्त किया है। दोस्तो जब हम परेशान होते हैं, ऐसा कहे ज्यादा परेशान  होते है, और कोई रास्ता न दिखे तो हम फिर उस सर्वशक्तिमान  कि ओर देखते हैं और मन ही मन अपनी व्यथा कह डालते हैं। इस कविता में कवि ने भी यही किया है।nanga


मन करता है,  नंगा होकर कुछ घण्टों तक सागर -तट,कवि श्री नागार्जुन जी hindi poetry about life ,hindi poetry about nature


मन करता है,
नंगा होकर कुछ घण्टों तक सागर -तट पर मै खडा रहूॅ
यों भी क्या कपडा मिलता है।
धनपतियों कि ऐसी लीला

मन करता है,
न्ंागा होकर दूं आग लगा, जो पहन रखा है उसमें भी
फिर बनू दिगम्बर बमभेाला
नंगा होकर विष पान करूं सागर तट पर
ओ आलकूट तू कहां गया ?
ओ हालाहल तू कहां गया ?

अृमत कि बात नहंी पूछो
विष तक का बंूद नहीं मिलता
देवता हुए निर्जज्ज , सभी को छिपा दिया
कहते जाओ उनसे मांगो

जो क्षीर उदधि में शेषनाग की शैय्या  पर कर रहे शयन 
भण्डार हमारा खाली है।shree naagaarjun
भगवान सभी के मालिक है
लचारी है, कुछ भी हो हम तुझको कुछ दे न सके
मन करता है नंगा होकर चिल्लाउ
यदि मरा न होगा तो सुन लेगा भगवान विष्णु सागर षायी
मन करता है मैं उस अगस्त्य सा पी डालू
सारे समुद्र को अंजलि से
इस अतल-वितल में तब मुझको मुर्दा भगवान दिखाई दे।
उस महामृतक को ले जाउ फिर इस तट पर
अंतेष्टि करूं, लकडी , तो बेहद महगी है।
इस बालू मे ही ,दफना दूं ,नंगा करके
निर्लज्ज देवता ले लेना तुम उसका
वह भी पिताम्बर
छिप-छिप उसको पहने सुरेष
छिप-छिप उसको पहने कुबेर
छिप-छिप पहनो फिर तुम सब एक-एक बार
मन करता है नंगा होकर मै खडा रहूॅ सागर तट पर
कुछ घंटो तक क्या जीवन भर
यो भी क्या कपडा मिलता है।


भीड

मकान खाली है
दुकान खाली हैshree naagaarjun
स्कूल नहीं खाली-खाली नहीं काॅलेज
खाली नहीं टेबुल,खाली नहीं मेज
खाली अस्पताल नहीं,खाली है हाॅल नहीं
खाली नहीं चेयर,खाली नहीं स्ट्रीट
खाली नहीं ट्राम ,खाली नहीं ट्रेन
खाली नहीं माइण्ड, खाली नहीं ब्रेन
खाली है हाथ,खाली है पेट
खाली है थाली,खाली है पेट


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