बहुत से लोगों ने योग को अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया है। लोग कहते हैं :
"अगर आप खुद से परे चले जाते हैं तो ये योग है।"
"अगर आप भौतिकता के नियमों से प्रभावित नहीं हैं तो ये योग है।"
ये सब बातें ठीक हैं, अदभुत परिभाषायें हैं, इनमें कुछ भी गलत नहीं है, मगर अपने अनुभव की दृष्टि से आप इनसे संबंध नहीं बना पाते। किसी ने कहा, "अगर आप ईश्वर के साथ एक हो जाते हैं तो आप योग में हैं।" आप नहीं जानते कि आप कहाँ हैं, आप नहीं जानते कि ईश्वर कहाँ है, तो आप एक कैसे हो सकते हैं?
पर पतंजलि ने ऐसा कहा - "मन के सभी बदलावों से ऊपर उठना, जब आप मन को समाप्त कर देते हैं, जब आप अपने मन का एक भाग बनना बंद कर देते हैं, तो ये योग है।" इस दुनिया के सभी प्रभाव आप में सिर्फ मन के माध्यम से ही आ रहे हैं। अगर आप, अपनी पूर्ण जागरूकता में, अपने मन के प्रभावों से ऊपर उठते हैं, तो आप स्वाभाविक रूप से हर चीज़ के साथ एक हो जाते हैं। आपका और मेरा अलग-अलग होना , और समय और स्थान की सारी भिन्नताएं भी, सिर्फ मन के कारण होती हैं। ये मन का बंधन है। अगर आप मन से परे हो जाते हैं तो आप समय और स्थान से भी परे हो जाएँगे। यह और वह जैसा कुछ नहीं है,यहाँ और वहाँ जैसा भी कुछ नहीं है, अब और तब जैसा भी कुछ नहीं है। सब कुछ यहीं है और अभी है।
अगर आप मन के सभी बदलावों और अभिव्यक्तियों से ऊपर उठते हैं, तो आप जैसे चाहें, वैसे मन के साथ खेल सकते हैं। आप अपने जीवन में, अपने मन का उपयोग जबरदस्त तरीके से कर सकते हैं। पर अगर आप मन के अंदर हैं, तो आप कभी भी मन की प्रकृति को नहीं समझ पायेंगे।