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सफलता की ओर, Hindi short stories,life success stories in hindi,failure towards success

                                                                 सफलता की ओर





सभी के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब सभी चीज़ें आपके विरोध में हो रहीं हों और हर तरफ से निराशा मिल रही हो| चाहें आप एक प्रोग्रामर हैं या कुछ और, आप जीवन के उस मोड़ पर खड़े होता हैं जहाँ सब कुछ ग़लत हो रहा होता है| अब चाहे ये कोई सॉफ्टवेर हो सकता है जिसे सभी ने रिजेक्ट कर दिया हो, या आपका कोई फ़ैसला हो सकता है जो बहुत ही भयानक साबित हुआ हो |


लेकिन सही मायने में, विफलता सफलता से ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है | हमारे इतिहास में जितने भी बिजनिसमेन, साइंटिस्ट और महापुरुष हुए हैं वो जीवन में सफल बनने से पहले लगातार कई बार फेल हुए हैं | जब हम बहुत सारे काम  कर रहे हों तो ये ज़रूरी नहीं कि सब कुछ सही ही होगा| लेकिन अगर आप इस वजह से प्रयास करना छोड़ देंगे तो कभी सफल नहीं हो सकते |

हेनरी फ़ोर्ड, जो बिलियनेर और विश्वप्रसिद्ध फ़ोर्ड मोटर कंपनी के मलिक हैं | सफल बनने से पहले फ़ोर्ड पाँच अन्य बिज़निस मे फेल हुए थे | कोई और होता तो पाँच बार अलग अलग बिज़निस में फेल होने और कर्ज़ मे डूबने के कारण टूट जाता| लेकिन फ़ोर्ड ने ऐसा नहीं किया और आज एक बिलिनेअर कंपनी के मलिक हैं |

अगर विफलता की बात करें तो थॉमस अल्वा एडिसन का नाम सबसे पहले आता है| लाइट बल्व बनाने से पहले उसने लगभग 1000 विफल प्रयोग किए थे |

अल्बेर्ट आइनस्टाइन जो 4 साल की उम्र तक कुछ बोल नहीं पता था और 7 साल की उम्र तक निरक्षर था | लोग उसको दिमागी रूप से कमजोर मानते थे लेकिन अपनी थ्ओरी और सिद्धांतों के बल पर वो दुनिया का सबसे बड़ा साइंटिस्ट बना |

अब ज़रा सोचो कि अगर हेनरी फ़ोर्ड पाँच बिज़नेस में फेल होने के बाद निराश होकर बैठ जाता, या एडिसन 999 असफल प्रयोग के बाद उम्मीद छोड़ देता और आईन्टाइन भी खुद को दिमागी कमजोर मान के बैठ जाता तो क्या होता?

हम बहुत सारी महान प्रतिभाओं और अविष्कारों से अंजान रह जाते |

तो मित्रों, असफलता सफलता से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है…..

असफलता ही इंसान को सफलता का मार्ग दिखाती है। किसी महापुरुष ने बात कही है कि –

“Winners never quit and quitters never win”
जीतने वाले कभी हार नहीं मानते और हार मानने वाले कभी जीत नहीं सकते


आज सभी लोग अपने भाग्य और परिस्थियों को कोसते हैं। अब जरा सोचिये अगर एडिसन भी खुद को अनलकी समझ कर प्रयास करना छोड़ देता तो दुनिया एक बहुत बड़े आविष्कार से वंचित रह जाती। आइंस्टीन भी अपने भाग्य और परिस्थियों को कोस सकता था लेकिन उसके ऐसा नहीं किया तो आप क्यों करते हैं।

अगर किसी काम में असफल हो भी गए हो तो क्या हुआ ये अंत तो नहीं है ना, फिर से कोशिश करो, क्योंकि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

मित्रों असफलता तो सफलता की एक शुरुआत है, इससे घबराना नहीं चाहिये बल्कि पूरे जोश के साथ फिर से प्रयास करना चाहिये..
 
Towards success

There comes a time in everyone's life when all things are happening against you and there is disappointment from all sides. Whether you are a programmer or something, you stand at that point of life where everything is going wrong. Now, whether it can be a software that has been rejected by everyone, or you can have a decision that has proved to be very terrible.
But in reality, failure is more important than success. All the businessmen, scientists and great men in our history have failed many times before becoming successful in life. When we are doing a lot of work, it is not necessary that everything will be perfect. But if you stop trying because of this, you can never succeed.

Henry Ford, a billiard and owner of the world famous Ford Motor Company. Ford failed in five other businesses before becoming successful. If someone else had broken five times due to failure in different business and drowning in debt. But Ford did not do this and today is owner of a bilinear company.

If you talk of failure, Thomas Alva Edison's name comes first. He made about 1000 failed experiments before making light bulbs.

Albert Einstein, who did not know anything until the age of 4, and was illiterate until the age of 7. People considered him as mentally weak but on the basis of his theory and principles, he became the greatest scientist in the world.
Now imagine what would have happened if Henry Ford had sat down disappointed after failing in five business, or Edison would have given up hope after 999 unsuccessful experiments and Iintin would have thought of himself as a weak brain?
We would have been unaware of many great talents and inventions.

So friends, failure is more important than success… ..

Failure shows the path of success to a human being. Some great man has said that -

"Winners never quit and quitters never win"

Winners never give up and losers never win

Today all people curse their fate and circumstances. Now think if Edison too had stopped trying to think himself alone then the world would have been deprived of a very big invention. Einstein could also curse his fate and circumstances, but he did not do so, why do you.

If you have failed in any work, then what is the end? Is it not, try again, because those who try will never give up.


Friends, failure is the beginning of success, it should not be nervous, but try again with full enthusiasm ..


जिंदगी | को देखने का नजरिया , hindi stories motivational, hindi stories with morals,

                                                     जिंदगी को देखने का नजरिया



सचिन और गौरव बचपन के जिगरी दोस्त थे| लेकिन काम में व्यस्त होने के कारण दोनों ज्यादा नहीं मिल पाते थे| गौरव पढ़ लिखकर एक बैंक में अच्छे पद पर नौकरी कर रहा था लेकिन फिर भी वह अपने काम से खुश नहीं था| दूसरी और सचिन एक फोटोग्राफर बन गया था|

क्योंकि उसे बचपन से ही फोटोग्राफी का शौक था| और वह अपनी जिंदगी से बहुत खुश था| एक दिन गौरव, सचिन के घर खाने पर गया| गौरव ने सचिन से कहा यार, मैंने नौकरी करके गलती कर दी| मुझे भी तेरी तरह फोटोग्राफर ही बनना चाहिए था|


कम से कम मैं तेरी तरह जिंदगी में खुश तो रह पाता| आज मेरे पास सब कुछ है लेकिन खुशी नहीं है|

यह सुनकर सचिन बोला, देखो भाई, अगर तुम्हें फोटोग्राफी इतनी ही पसंद है तो फोटोग्राफर बन जाओ इसमें कौन सी बड़ी बात है|

गौरव बोला, यार फोटोग्राफी तो मुझे हमेशा से ही पसंद थी लेकिन अब ज्यादा पसंद आती है क्योंकि मेरे काम में वह मजा नहीं है जो तुम्हारे काम में है|

अगर मैं फोटोग्राफी शुरु कर दूंगा तो मैं भी तुम्हारी तरह खुश रहूंगा| तब तो तुम एक काम और करना| मुझे करेले भी बहुत पसंद है और मैं दिन में दो बार करेले खाता हूं| इसीलिए मैं इतना खुश नजर आता हूं| गौरव हंसने लगा|

सचिन बोला:-  खुशी किसी काम से नहीं बल्कि अपने अंदर से आती है| सब कुछ मिलने के बाद भी हम दुखी रह सकते हैं या फिर कुछ नहीं मिलने पर भी खुश रह सकते हैं| यह सब हमारी जिंदगी को देखने का नजरिया है|







आग की भीख ,रामधारी सिंह "दिनकर ,ramdhari singh dinkar poems urvashi

   आग की भीख


धुँधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासा
कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँसा
कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है
मुंह को छिपा तिमिर में क्यों तेज सो रहा है
दाता पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे
बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे
प्यारे स्वदेश के हित अँगार माँगता हूँ
चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ
बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है
कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है
मँझदार है, भँवर है या पास है किनारा?
यह नाश आ रहा है या सौभाग्य का सितारा?




आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा
भगवान, इस तरी को भरमा न दे अँधेरा
तमवेधिनी किरण का संधान माँगता हूँ
ध्रुव की कठिन घड़ी में, पहचान माँगता हूँ
आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुई है
बलपुंज केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है
अग्निस्फुलिंग रज का, बुझ डेर हो रहा है
है रो रही जवानी, अँधेर हो रहा है
निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुई है
निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुई है
पंचास्यनाद भीषण, विकराल माँगता हूँ
जड़ताविनाश को फिर भूचाल माँगता हूँ
मन की बंधी उमंगें असहाय जल रही है
अरमान आरजू की लाशें निकल रही हैं
भीगी खुशी पलों में रातें गुज़ारते हैं
सोती वसुन्धरा जब तुझको पुकारते हैं
इनके लिये कहीं से निर्भीक तेज ला दे
पिघले हुए अनल का इनको अमृत पिला दे
उन्माद, बेकली का उत्थान माँगता हूँ
विस्फोट माँगता हूँ, तूफान माँगता हूँ
आँसू भरे दृगों में चिनगारियाँ सजा दे
मेरे शमशान में आ श्रंगी जरा बजा दे
फिर एक तीर सीनों के आरपार कर दे
हिमशीत प्राण में फिर अंगार स्वच्छ भर दे
आमर्ष को जगाने वाली शिखा नई दे
अनुभूतियाँ हृदय में दाता, अनलमयी दे
विष का सदा लहू में संचार माँगता हूँ
बेचैन जिन्दगी का मैं प्यार माँगता हूँ
ठहरी हुई तरी को ठोकर लगा चला दे
जो राह हो हमारी उसपर दिया जला दे
गति में प्रभंजनों का आवेग फिर सबल दे
इस जाँच की घड़ी में निष्ठा कड़ी, अचल दे
हम दे चुके लहु हैं, तू देवता विभा दे
अपने अनलविशिख से आकाश जगमगा दे
प्यारे स्वदेश के हित वरदान माँगता हूँ
तेरी दया विपद् में भगवान माँगता हूँ




माँ ---- बाप father and mother,love parents,love parents quotes in hindi

                                                                     माँ ---- बाप



जीवन में कुछ समय ऐसा भी आता है हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते आज हम आपको एक सुपर हिट कहानी सुनाते है
एक लड़का पढ़ने में बहुत ही अच्छा था। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह एक कंपनी में नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गया।

उसका इंटरव्यू बहुत ही अच्छा गया। इंटरव्यू के बाद उससे पूछा गया। क्या तुम्हे पढाई के दौरान scholarship मिली थी।

उस लड़के ने कहा नहीं। उन्होंने फिर से पूछा – अगर तुम्हे scholarship नहीं मिली तो तुम्हारी फीस कौन देता था।

लड़के ने कहा मेरी फीस मेरे पिताजी देते थे। उन्होंने फिर से पूछा – तुम्हारे पिताजी क्या काम करते है। लड़के ने कहा – वो एक किसान है।
यह सुनने के बाद उनमे से एक बोला – क्या तुम मुझे अपना हाथ दिखा सकते हो। लड़के के हाथ रेशम की तरह मुलायम थे।

उससे पूछा गया। क्या तुमने कभी काम में अपने पिताजी की मदत की है। लड़के ने कहा – नहीं।
उन सभी ने उस लड़के को कहा – तुम आज अपने घर जाकर अपने पिता के हाथो को पानी से धोना और कल वापस कंपनी में आना। वह लड़का खुश हो गया की उसकी नौकरी लगभग पक्की हो गयी।

घर पहुँचने के बाद उसने साडी  बात अपने माता पिता को बताई और अपने पिता से अपने हाथ दिखाने को कहा।

पिता को पता था की उनके हाथ किस तरह के है इसलिए वे बहाने बनाकर इस बात की टालने लगे। जब लड़का बहुत ही जिद्द करने लगा तो उन्होंने अपने हाथ दिखा दिये।
जैसे ही लड़के ने पिता के हाथ देखे और उन्हें धोना शुरु किया तो उसकी आँखों में आँशु आ गये। पिता के हाथ सकखत थे।

जगह – जगह से फटे हुए थे और हाथो पर छाले भी पड़े हुए थे। उस लड़के को पहली बार अहसास हुआ की ये वो ही हाथ है।

जो खेतो में दिन – रात काम करके उसके लिए अच्छे कपड़े, खाना और फीस का इंतज़ाम करते थे। वह लड़का पूरी तरह से टूट चुका था।

उसके पिता ने उसे सभाला और साथ ही साथ उसे ऐसी बहुत सी बाते बताई जो वह नहीं जानता था। उसे उस दिन ही पता चला की उसे यहाँ तक पहुँचाने के लिए उसके माँ – बाप ने किन – किन चीजों की कुर्बानी दी है।

अगले दिन वह कंपनी में गया। उससे कहा गया। कल तुमने घर पर जो भी अनुभव किया। मेरे साथ शेयर करो। उस लड़के ने बताया।

मैंने पहली बात सीखी की सरहाना क्या होती है। अगर मेरे पिता न होते तो मैं कभी भी पढाई में इतने आगे नहीं आता।
दूसरी बात मैंने सीखी। किसी भी मुश्किल काम को करने के लिए हिम्मत होना बहुत ही जरुरी है। तीसरी बात ने मुझे रिस्तो की अहमियत को सिखाया। उन्होंने उस लड़के से कहा – अब तुम पूरी तरह से इस नौकरी के लिए तैयार हो।

दोस्तों इस life changing  में आपको यह समझाना चाहता हूँ की आपको पता होना चाहिए की आपके ऊपर लगने वाला पैसा कहाँ से और कैसे आ रहा है। ताकि आप उस पैसे का सही इस्तेमाल कर सके। आपके माँ – बाप आपको कभी भी नहीं बतायेंगे की वे कितनी मेहनत कर रहे है।

मैं आपसे ये नहीं कह रहा की आप लोग खर्चा ही मत करो। पढ़ो, घूमो – फिरो मस्ती करो क्योकि यह समय दोबारा नहीं आयेगा लेकिन आपको पता होना चाहिए की यह पैसा कितने संघर्ष से आ रहा है और इसे कैसे खर्च करना सही है।

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Raksha Bandhan ,रक्षाबंधन रक्षा का मतलब सुरक्षा ,raksha bandhan 2021,the raksha bandhan ki kahani

                                                                      रक्षाबंधन

   
 रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है, रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है।रक्षाबंधन के दिन बहन - भाई भगवान से एक दूसरे  की तररकी  के किये प्रार्थना करते है


दोस्तों यह बता दू आपको की यह त्यौहार सिर्फ रक्षा बंधन के नाम से ही प्रसिद्द नहीं ये हर राज्यों में अलग अलग नामो से  भी जाना जाता है जैसे

 उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहते हैं।
महाराष्ट्र राज्य में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से विख्यात है।
राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बाँधने का रिवाज़ है।
तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं।
उत्तर प्रदेश :श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है।

राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है
इतिहास मे कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमे युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की उंगली घायल हो गई थी, श्री कृष्ण की घायल उंगली को द्रौपदी ने अपनी साड़ी मे से एक टुकड़ा बाँध दिया था, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट मे द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था। स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है कहते हैं एक बार बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया  


येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥



इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)"


और अपने पति भगवान बलि को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
                     

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सामाजिक गलत अवधारणाओं के शिकार नेहरू ,jawaharlal nehru death,jawaharlal nehru achievement

                               वन है सुन्दर और सघन पर मुझको वचन निभाना है 
                               नींद सताए इसके  पहले कोसो जाना है
                                       मुझको कोसो जाना है 
   


                                            सामाजिक गलत अवधारणाओं के शिकार   नेहरू   

      प्रिय
            पाठको 



आज हम लोगो द्वारा बनाई गयी गलत अवधारणाओं के शिकार पंडित नेहरू जी के जीवन के बारे मे बताउगा दोस्तों कोई अपना बास्तविक जीवन कैसे जीता है उससे हमको कोई समस्या नहीं होनी चाहिए हमे ध्यान ये देना चाहिए की हमने उससे जो जिम्मेदारी दी है उसने उसे की महत्वपूर्णता से निभावा है

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू इंग्लैंड गए बहा उनकी मुलाकात ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री चर्चिल से हुई  पिछली बातो को याद कर चर्चिल ने पूछा आपने अंग्रेजो के शाशन में कितने वर्ष जेल में बिताये है लगभग १० वर्ष  नेहरू ने कहा तब अपने प्रति किये गए व्यवहार के प्रति आपको हमसे घृणा करनी चाहिए चर्चिल ने मजाकिया अंदाज में पूछा नेहरू जी ने उत्तर दिया बात ऐसी नहीं है हमने ऐसे नेता के अधीन काम किया है जिसने हमें दो बाटे सिखाई है एक तो यह की किसी से डरो मत और दूसरी किसी से घृणा मत मत करो हम उस समय आपसे डरते नहीं थे इसलिए अब घृणा भी नहीं करते





पंडित नेहरू एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ साथ उच्च कोटि के विचारक थे उनकी राजनीती स्वच्छ और सौहार्दपूर्ण थी स्वंत्रता संग्राम के दिनों में उन्होंने कारावास में रहकर अनेक पुस्तकों की रचना की मेरी कहानी, विश्व इतिहास की झलक भारत की खोज उनकी प्रसिद्द रचनाये है  राजनीती अवं प्रशासन की समस्याओ से घिरे रहने के बाबजूद वे खेल ,संगीत कला, आदि के लिए समय निकाल लेते थे बच्चो को तो बो अति प्रिय थे आज भी बो चाचा नेहरू के नाम से प्रसिद्धि है उनके जन्मदिन 14   नवंबर को हमारा देश बाल दिवाद के रूप में मनाता है 
पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म प्रयागराज में 14 नवंबर सन 1889 को हुआ इनके पिता मोती लाल नेहरू प्रसिद्द वकील थे माता स्वरूपरानी उदार विचारो वाली महिला थी अपने शिक्षकों में एक एफ.टी.ब्रूम्स. के सानिध्य में रहकर जहाँ इन्होने अंग्रेजी साहित्य और विज्ञानं का ज्ञान प्राप्त किया वही मुंशी मुबारक अली ने इनके मन में इतिहास और स्वंत्रता के प्रति जिज्ञासा पैदा क्र दी यही कारन है की बचपन से ही इनके मन में दासता के प्रति विद्रोह की भवन भर उठी 
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए नेहरू जी को बिलायत इंग्लैंड भेजा गया वहां रहकर उन्होंने अनेक पुस्तकों का अध्ययन किया वकालत की शिक्षा पूरी करने के बाद वे भारत लौट आये और भारत के इलाहाबाद उच्च न्यायलय में वकालत करने लगे आज कल लोग ये सब होने के बाद लौटते ही नहीं अपने देश वकालत में उनका मन न लगा उनके मन में देश को स्वतंत्र कराने की इच्छा बलबती हो रही थी इसी समय इनकी भेट महात्मा गाँधी से हुई इस मुलाकात ने उनके जीवन धारा ही बदल दी
उस समय देश में जगह जगह अंग्रेजो का विरोध लोग अपने अपने तरीको से कर रहे थे सन १९१९ में जलिया बाला बाग में अंग्रेज अफसर दायर द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों की नृपश हत्या की गई इससे पूरे देश में क्रोध की ज्वाला धहक उठी सन 1920  मे गाँधी जी द्वारा ासयोग आंदोलन चलाया गया जवाहरलाल नेहरू पूर्ण मनोयोग से स्वंत्रता संगम में कूद पड़े सन 1921 में इंग्लैंड के राजकुमार प्रिंस ॉफ बेल्स के भारत आने पर अंग्रेज शासको द्वारा राजकुमार के स्वागत का व्यापक स्तर पर विरोध किया गया इलहाबाद में विरोध का नेतृत्व नेहरू को सौपा गया इनके साथ इनके पिता दोनों को गिरफ़्तार कर लिया गया नेहरू की जेल की प्रथम यात्रा थी इसके बाद ये नौ बार और गए थे लेकिन ये भयभीत नहीं हुए 
लम्बे संघर्ष के  बाद देश 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ नेहरू स्वतंत्र प्रधानमंत्री बने देश की आर्थिक स्थिति बहुत जर्जर थी दूरदर्शिता और कर्मठता से नेहरू ी ने कृषि और उधोग के विकास हेतु पंचवर्षीय योजनाए की आधारशिला राखी आज देश में बड़े बड़े कारखाने, प्रोग्शालाये, विशाल बांध आदि दिखाई पड़ते है ये सब इन्ही की दें है भाखड़ा नांगल बांध को देखकर नेहरू जी  ने कहा 
मनुष्य का सबसे बड़ा तीर्थ ,मंदिर ,मस्जिद, और गुरुद्वारा वही है जहाँ इंसान की भलाई के लिए काम होता है 
वे जानते थे की बिना अणुशक्ति  के देश शक्ति संपन्न नहीं हो शक्ति उन्होंने ही परमाणु आयोग की स्थापना की  
जवाहर लाल नेहरू बिना थके प्रतिदिन अठारह से बीस घंटे  कार्य करते थे   
नेहरू जी ने प्रत्येक क्षण देश सेवा में लगाया देश के लिए लड़े  विज्ञानं और तकनीक के क्षेत्र को समर्थ बनाया 75  वर्ष की आयु में 27 मई 1964   को अस्वस्थ होने के कारन उनका निधन हो गया 
ऐसी अवस्था में कोई भी राजनीतिज्ञ आज का इतनी दूरदर्शिता भरा काम नहीं कर सकता कुछ गलतिया सबसे होती है कौन सा देश है जिसके बॉर्डर में तनाव नहीं छोटे छोटे घरो  को ही देख लो आज  जाने कितनी दीवारे है इसको क्या कहोगे बताइये 
                                                                                                                धन्यवाद 


योग कोई व्यायाम नहीं है, इसके कई और आयाम हैं ,what is yoga,what is yog, baba ramdev yoga,

                                                                           योग 


आप अगर सिक्स ऐब्स या कुछ भी ऐसा चाहते हैं तो मैं कहूंगा कि आप जा कर टेनिस खेलिये या पहाड़ों पर चढ़िये। योग कोई व्यायाम नहीं है, इसके कई और आयाम हैं। शरीर को चुस्त, दुरुस्त रखने का एक अलग आयाम अवश्य है, आप इससे स्वास्थ्य भी प्राप्त कर सकते हैं पर ये सिक्स ऐब्स के लिये नहीं है।



पश्चिम में प्रवेश लेने के 20 साल बाद,अब, योग लोकप्रिय होता जा रहा है, तब मेडिकल वैज्ञानिक अब आगे आ रहे हैं, अध्ययन कर रहे हैं और कह रहे हैं, "योग से फायदे हैं"। यद्यपि योग बहुत सी जगह पर गलत, व्यर्थ तरीकों से सिखाया जाता है, फिर भी सारे संसार में इसके स्वास्थ्य संबंधी फायदों को कोई नकार नहीं सकता। लेकिन यदि योग को गलत ढंग से, विकृत रुप में पढ़ाने का क्रम चलता रहा, बढ़ता रहा तो 10 से 15 वर्षों के समय में वैज्ञानिक अध्ययन स्पष्ट रूप से आप को बतायेंगे कि कितने ही तरीकों से ये मनुष्यों के लिये नुकसानदेह है, और ये योग का पतन होगा।


ह आवश्यक है कि योग का अभ्यास सूक्ष्म,सरल, नर्म ढंग से, बिना बल प्रयोग के,किया जाये, जबरदस्ती मांसपेशियां बनाने, बढ़ाने के लिये नहीं, क्योंकि ये व्यायाम नहीं है।भौतिक शरीर के पास एक पूर्ण यादों, स्मृतियों की संरचना है। अगर आप इस भौतिक शरीर को पढ़ने, समझने के लिये तैयार हैं तो सब कुछ - कैसे इस ब्रह्मांड का शून्य से अब तक विकास हुआ - ये सब इस शरीर में लिखा हुआ है। योग एक तरीका है जिससे इस याददाश्त को, इन स्मृतियों को खोला जाये और इस जीवन की, अंतिम संभावना की ओर बढ़ने के लिये, पुनर्रचना की जाये। ये एक बहुत सूक्ष्म और वैज्ञानिक प्रक्रिया है।

                                                                                                                                                                               अपना प्यार बनाये रखे 
                                             शेयर , सब्सक्राइब , लाइक करते रहे
                                                                                                                                                                                            धन्यवाद

कश्मीर पर ट्रंप के बयान से पड़ सकता है भारत अमेरिका के रिश्तों पर असर, modi&trump friendship relation





कश्मीर पर ट्रंप के बयान से पड़ सकता है भारत अमेरिका के रिश्तों पर असर 

अमेरिकी प्रधानमंत्री डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे को लेकर मध्यस्ता की बात कही थी। ट्रंप के इस बयान पर पूर्व राजनायिकों ने कहा कि उनके ऐसा करने से अमेरिका और भारत के संबंधों को नुकसान होगा।

भारत ने पहले ही ट्रंप के दावे को खारिज कर दिया है, जो उन्होंने पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान से मुलाकात के दौरान कहा था कि भारत की लगातार स्थिति यह रही है कि पाकिस्तान के साथ सभी बकाया मुद्दों पर द्विपक्षीय रूप से चर्चा करके ही खत्म किए जाएं। भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत रिचर्ड वर्मा ने मीडिया से कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने आज बहुत नुकसान किया है। कश्मीर और अफगानिस्तान पर कई गई उनकी टिप्पणी के बारे में किसी ने नहीं सोचा था।

अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी के अनुसार, राष्ट्रपति जल्द ही दक्षिण एशियाई मुद्दों की जटिलता सीखेंगे। उन्होंने कहा, 'राष्ट्रपति ट्रम्प अफगानिस्तान पर एक समझौते के साथ पाकिस्तान की मदद चाहते हैं और पाकिस्तान जो चाहता है, उसके साथ मदद की संभावना को खतरे में डाल दिया है।' उन्होंने कहा कि उन्होंने इमरान खान की प्रशंसा की जैसे उन्होंने उत्तर कोरिया के किम जोंग-उन की प्रशंसा की। यह सौदा पाने की कोशिश में उनकी मानक प्रक्रिया है

ट्रंप ने कहा यह (लंबे समय से) चल रहा है, "उन्होंने कहा, खान ने जवाब देते हुए कहा कि 70 साल से। मुझे लगता है कि वे (भारतीय) इसे हल होते हुए देखना चाहेंगे। मुझे लगता है कि आप भी इसे हल होते हुए देखना चाहेंगे। और अगर मैं मदद कर सकता हूं, तो मैं एक मध्यस्थ बनना पसंद करूंगा। यह होना चाहिए .... हमारे पास दो बेहद स्मार्ट नेतृत्व के साथ बहुत स्मार्ट देश हैं, और वे इस तरह की समस्या का समाधान नहीं कर सकते। लेकिन अगर आप चाहते हैं कि मैं मध्यस्थत या मध्यस्थता करूं, तो मैं ऐसा करने के लिए तैयार हूं। ट्रंप ने दावा किया कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मुझसे यहीं कहा था।  तो हम उससे बात कर सकते हैं। मैं उनसे बात करुंगा और देखेंगे की हम इस मुद्दे पर क्या कर सकते है।

कर्नाटक चौथी बार येदियुरप्पा ने संभाली सीएम की कुर्सी, government karnatka, order yedurappa coronavirus,



कर्नाटक: चौथी बार येदियुरप्पा ने संभाली सीएम की कुर्सी, 29 को विश्वासमत करेंगे हासिल



कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष बी एस येदियुरप्पा ने आज चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। राजभवन में राज्यपाल वजुभाई वाला ने उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। शपथ लेने से पहले वह मंदिर पहुंचे और फिर भाजपा दफ्तर। इसके बाद वह राजभवन पहुंचे जहां उन्हें राज्यपाल ने सीएम पद की शपथ दिलाई।
शपथ ग्रहण करने के बाद येदियुरप्पा ने कहा कि हम 29 जुलाई को विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव रखेंगे। येदियुरप्पा ने कहा कि उन्हें विश्वास मत जीतने का भरोसा है और उम्मीद है कि कांग्रेस और जद (एस) के 16 बागी विधायक विश्वास मत के दौरान भी अनुपस्थित रहेंगे जैसे वे मंगलवार को अनुपस्थित रहे थे, जिससे उन्हें बढ़त हासिल होगी।

वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य में येदियुरप्पा के नेतृत्व में स्थिर सरकार बनने का विश्वास जताया।

तुगलक दरबार की दी संज्ञा 

पद और गोपनीयता की शपथ लेने के लिए राजभवन जाने से पहले भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए येदियुरप्पा ने कहा कि हमें प्रशासन में अंतर दिखाना होगा। प्रतशोध की राजनीति नहीं होगी और मैं विपक्ष को साथ लेकर चलूंगा । प्रदेश की पूर्ववर्ती कांग्रेस जदएस गठबंधन सरकार पर बरसते हुए येदियुरप्पा ने कहा कि वह तुगलक दरबार था और उसमें विकास अवरूद्ध हो गया था।

ईमानदार प्रशासन देने का वादा करते हुए उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं की भूमिका को भी रेखांकित किया। येदियुरप्पा ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं की भूमिका महती है। किसान, मछुआरे, कुम्हार, बुनकर, आदिवासी और वंचित समुदाय को नई सरकार से बहुत अधिक उम्मीद है। आपके (पार्टी कार्यकर्ताओं) समर्थन के बिना मैं उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर सकता हूं। 

हरियाली अमावस पर उदयपुर में लगता है एक ऐसा महिलाओं का मेला जहां पुरुषों की है नो एंट्री beautiful festival




हरियाली अमावस पर उदयपुर में लगता है एक ऐसा महिलाओं का मेला जहां पुरुषों की है नो एंट्री

राजस्थान के उदयपुर में हरियाली अमावस्या के अगले दिन एक ऐसा अनूठा मेला लगता है, जिसमें केवल महिलाओं को ही प्रवेश मिलता है। महिलाओं के हक और सम्मान के लिए अनूठी पहल करते हुए मेवाड़ के महाराणा फतहसिंह ने वर्ष 1898 में इस मेले की शुरुआत की थी। मेले के पहले दिन किसी के प्रवेश पर रोक नहीं होती।

इस साल एक अगस्त को इस मेले में सभी आ सकेंगे, लेकिन दो अगस्त को केवल महिलाओं को ही प्रवेश मिलेगा। हालांकि, मेले की व्यवस्था में लगे नगर निगम के पुरुष कर्मचारियों, पुलिसकर्मियों और दुकानदारों को विशेष अनुमति के जरिये प्रवेश मिलता है।

स्थानीय नगर निगम ने मेले को लेकर तैयारी पूरी कर ली है। इसमें लगने वाली दुकानों के आवंटन का काम भी लगभग पूरा हो चुका है। मेला यहां की प्रसिद्ध फतहसागर झील और सहेली मार्ग पर लगता है। इसमें हर साल करीब 50 हजार लोग आते हैं।

चावड़ी रानी के सवाल पर महाराणा ने दिया था हक

हरियाली अमावस्या मेला मेवाड़ ही नहीं, संभवत: देशभर का एकमात्र ऐसा मेला है, जिसमें एक दिन सिर्फ महिलाओं को ही प्रवेश मिलता है। इतिहासकारों के मुताबिक 1898 में हरियाली अमावस्या के दिन महाराणा फतहसिंह महारानी चावड़ी के साथ फतहसागर झील (इसे तब देवाली तालाब कहा जाता था) पहुंचे तथा छलकते फतहसागर को देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए।

उन्होंने पूरे नगर में मुनादी कराते हुए मेले के रूप में यहां पहली बार जश्न मनाया। इसी दौरान चावड़ी रानी ने महाराणा से सिर्फ महिलाओं के मेले को लेकर सवाल किया।

इसके बाद महाराणा ने मेले का दूसरा दिन केवल महिलाओं के लिए आरक्षित करवाने की घोषणा करवा दी। तब से यह परंपरा चली आ रही है। देश की आजादी के बाद से इसका आयोजन स्थानीय प्रशासन करवाता रहा है। इस बार मेले का आयोजन उदयपुर नगर निगम करवा रहा है।

शिव पूजा के उल्लास का प्रतीक है हरियाली अमावस्या

श्रावण मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहा जाता है। श्रावण में शिव आराधना के 15 दिन हो जाने पर मेले के रूप में उल्लास मनाया जाता है।

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बॉलीवुड के खिलाड़ी कुमार अक्षय कुमार (Akshay Kumar) इन दिनों अपनी आगामी फ‍िल्‍म मिशन मंगल को लेकर खबरों में बने हुए हैं। इस बीच उनकी एक और फिल्म का फर्स्ट लुक जारी कर दिया गया है जिसमें उनका लुक बिल्कुल अलग है।


दरअसल फिल्म बच्चन पांडे का फर्स्ट लुक सामने आ गया है जिसमें अक्षय कुमार अहम भूमिका निभाते नजर आएंगे। अक्षय कुमार ने खुद इस बारे में सोशल मीडिया पर जानकारी देते हुए इस फिल्म से अपना लुक आउट किया है।







अक्षय कुमार की फिल्म बच्चन पांडे क्रिसमस के मौके पर अगले साल रिलीज होगी। फिल्म के डायरेक्टर फरहद समजी हैं जिसे साजिद नाडियाडवाला प्रोड्यूस करेंगे। फिल्म को लेकर एक और खास बात यह है कि अक्षय कुमार की बच्चन पांडे की टक्कर आमिर खान (Aamir Khan) की फिल्म लाल सिंह चड्ढा (Laal singh chaddha) से होगी। 



आपको बता दें कि इस साल 15 अगस्‍त को अक्षय कुमार की मंगल पर जाने की कहानी के साथ आने वाले हैं। सच्‍ची घटना पर आधारित इस फ‍िल्‍म में सोनाक्षी सिन्‍हा, विद्या बालन, तापसी पन्‍नू भी नजर आएंगी। मिशन मंगल को जगन शक्ति ने डायरेक्ट किया है। फिल्म की कहानी अंतरिक्ष में भारत के पहले मंगल यान को भेजने के मिशन पर आधारित है। इस मिशन की सफलता को पूरे देश ने सेलिब्रेट किया था, मगर इस मिशन को अंजाम देने वालों ने किन परिस्थितियों में इसे अंजाम दिया, उसकी कहानी पहली बार मिशन मंगल के ज़रिए सबके सामने आएगी।

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                                  बूढ़ा दिखाने वाला ऐप, देखें वायरल




फिल्म अभिनेता अनिल कपूर (Anil Kapoor) को भी नहीं हरा पाया द फेस ऐप (The Face App)l दरअसल सोशल मीडिया पर एक मीम वायरल हो रहा हैंl इसमें चार फिल्म अभिनेता नजर आ रहे हैंl इनमें सलमान खान (Salman Khan), ऋतिक रोशन (Hrithik Roshan), रनबीर कपूर (Ranbeer Kapoor) और अनिल कपूर (Anil Kapoor) नजर आ रहे हैंl 

वायरल हुए इस मीम को सोशल मीडिया पर खूब शेयर और लाइक किया जा रहा हैंl इस फोटो के माध्यम से लोग अनिल कपूर का लोहा भी मान रहे है कि बॉलीवुड में एक दिन हर कोई बूढ़ा हो जाएगा लेकिन अनिल कपूर ऐसे ही जवान बने रहेंगेl

गौरतलब है कि पिछले सप्ताह फेस ऐप बहुत लोकप्रिय रहा और यह बड़ी तेजी से पूरे विश्व में लोकप्रिय हुआl कई कलाकारों ने अपने सोशल मीडिया से अपनी बुढ़ापे की तस्वीरें शेयर कीl उनके फैन्स ने भी इसे हाथों-हाथ लियाl हालांकि अनिल कपूर पर बना मीम सभी को भा गया और वह बहुत पसंद भी किया गयाl
बॉलीवुड के फिट कलाकारों में से एक है अनिल कपूरl अनिल कपूर खुद को फिट रखने के लिए कड़ी मेहनत भी करते हैl वह आज भी उनके उम्र के कलाकारों के मुकाबले बहुत जवान और तंदुरुस्त नजर आते हैंl अनिल कपूर के 3 बच्चे हैंl इनमें रिया कपूर, सोनम कपूर और हर्षवर्धन कपूर का नाम शामिल हैंl हाल ही में सोनम कपूर की शादी उद्योगपति आनंद आहूजा से हुई हैंl


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हमारे देश की सबसे बड़ी उपलब्धि



हमारे देश ने बहुत सी उल्लेखनीय वैज्ञानिक सफलतायें हासिल की हैं और साथ ही कई बड़े उद्यम लगाने में भी हम सफल रहे हैं जो हम सब के लिये गर्व का विषय है। हमारे वैज्ञानिकों ने भारत के मंगलयान को मंगल ग्रह की कक्षा में भेजा है। उद्योग व्यापार में बहुत से बड़े उद्यम हमने देश में स्थापित किये हैं। लेकिन इस सब के बीच हमारी सबसे महान उपलब्धि ये है कि बिना किसी विशेष तकनीक और बुनियादी ढाँचे के, हमारे किसान आज भी 130 करोड़ लोगों को बस अपने पारंपरिक ज्ञान के सहारे खाना खिला रहे हैं। दुर्भाग्यवश हमें हमारा भोजन प्राप्त कराने वाले किसान के बच्चे भूखे हैं और वो खुद अपनी जान ले लेना चाहता है। पिछले 10 वर्षों में 3 लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। इतने लोग तो उन चार युद्धों में भी नहीं मरे जो भारत ने लड़े हैं। यह सोच कर मेरा सिर शर्म से झुक जाता है।

किसानों को डुबाने वाले दो मुख्य कारण



हमारे देश को प्रकृति का ऐसा वरदान प्राप्त है कि वो सारी दुनिया का अन्नदाता बन सकता है क्योंकि हमारे देश में लैटीट्यूड से जुड़ा या अक्षांश-संबंधी फैलाव मौजूद है जिसमें ऋतुओं की विविधता, अच्छी मिट्टी, जलवायु की उचित स्थिति शामिल है। सबसे बढ़कर, हमें ऐसे लोगों की विशाल संख्या प्राप्त है जो मिट्टी को भोजन में बदलने का जादू जानते हैं। हम अकेले देश हैं, जिसे ऐसे वरदान प्राप्त हैं। लेकिन अगर हम इस व्यावसायिक क्षेत्र को बहुत बड़ी आमदनी देने वाला क्षेत्र नहीं बनाते हैं, तो अगली पीढ़ी के कृषि को अपनाने की उम्मीदें बहुत कम हैं। सिर्फ इसी से आबादी ग्रामीण भारत में रुकी रहेगी। अगर खेती से होने वाली आमदनी को हम कुछ गुना नहीं बढ़ाते, तो ग्रामीण भारत का आधुनिकरण एक सपना ही रह जाएगा।

लेकिन कृषि को बड़े रूप में फायदा देने वाले एक उद्यम की तरह बनाने में हम सफल नहीं हो रहे क्योंकि सबसे बड़ी बाधा उनकी ज़मीनों का बहुत छोटा होना है -- लोगों की जमीनें बहुत छोटी हैं। हज़ारों सालों से इन ज़मीनों पर खेती हो रही है और ज़मीनों का बंटवारा होता गया है। भारत के किसानों के पास औसतन प्रति किसान बस 1 हेक्टेयर से कुछ ही ज्यादा ज़मीन है। तो इतनी छोटी ज़मीन में किसान जो भी धन लगाता है वो डूब ही जाता है। हमारे किसानों को नुकसान पहुंचाने वाले दो मुख्य कारण, जो उन्हें गरीबी और मौत की ओर धकेल रहे हैं - वे हैं सिंचाई साधनों में होने वाला बड़ा खर्च और बाज़ार में मोलभाव करने की ताकत न होना। ज़मीनों का स्तर छोटा होने के कारण ये दो बातें हमारे किसानों की पहुँच के बाहर हैं।

भारत पूरी दुनिया के लिए अन्न पैदा कर सकता है



तो हमारा प्रयत्न यह है कि किसी तरह से हम ये बदलाव लायें और उसके लिये उन सब को 'किसान उत्पादक संघ' (फार्मर-प्रोड्यूसर आर्गेनाईजेशन, एफपीओ) में ला कर कम से कम 10,000 एकड़ जमीन को इकठ्ठा करें। हम इस तरह के कानूनी ढाँचे बनाने का काम कर हैं कि किसानों की ज़मीन उनके ही नियंत्रण में रहे तथा उनका मालिकाना हक बना रहे, और उनके लिये सभी कुछ 100 % सुरक्षित रहे। किसान अपनी ज़मीनों पर व्यक्तिगत रूप से खेती करेंगे लेकिन सूक्ष्म स्तर पर सिंचाई व्यवस्था तथा फसलों को बाजार में बेचने की प्रक्रिया – ये दोनों ही उन कंपनियों के माध्यम से हो जिनके पास ज़रूरी योग्यता है।

वरना, अभी जिस तरह से ये काम हो रहा है, आप देख सकते हैं कि हर किसान के पास उसका स्वयं का पंप सेट है, बोरवेल है और बिजली व्यवस्था है। इस पर इतना ज्यादा खर्च होता है कि उन्हें ऋण लेना ही पड़ता है और आखिर में किसान को या तो अपनी ज़मीन बेचनी पड़ती है या गाँव से भाग जाना पड़ता है या फिर किसी पेड़ से फंदा लगा कर लटकना पड़ता है। और इस सब के बाद जब उसे अपनी फसल बेचनी होती है तो उसके पास वाहन नहीं है, भंडारण व्यवस्था नहीं है और एक अच्छा बाज़ार भी नहीं है। फसल उगाना एक बात है लेकिन जब उसे ले कर बाजार जाना पड़ता है, तो एक सर्कस जैसी बड़ी कसरत हो जाती है।

तो अगर निजी क्षेत्र की कम्पनियाँ, किसानों के समूहों के लिये सामुदायिक सूक्ष्म सिंचाई व्यवास्था बनायें तथा किराये पर किसानों को पानी दें तो किसानों को बड़ी रकम के पूंजीगत खर्च से मुक्ति मिल सकती है। हाँ, सरकार को एक समुचित क़ानूनी प्रक्रिया बनानी होगी जिससे इन कंपनियों में निवेश करने वाले भी सुरक्षित रहें और एक सही ढंग से काम करने वाली भुगतान प्रक्रिया द्वारा उन्हें अपनी आय प्राप्त होती रहे। और ये कम्पनियाँ अगर 10,000 किसानों की फसलों को इकट्ठी कर के एफपीओ में लायें तो वे मोलभाव कर के किसानों को अच्छी आय दिला सकते हैं। लाभ किसानों और कंपनियों, दोनों को ही होगा। अगर हम अपने किसानों के लिये ऐसी सहायक व्यवस्था बना सकें जिससे उन्हें अन्न उगाने के अतिरिक्त और किसी बात की चिंता न करनी पड़े तो भारत सारी दुनिया को अन्न खिला सकता है।

मिट्टी को पुनर्जीवित करने के लिए जैविक खाद जरुरी है


हमारे किसानों के पास अन्न पैदा करने के बारे में बहुत ज्ञान है। क्योंकि वे निरक्षर दिखते हैं, हमें लगता है कि इसमें (खेती में) कुछ नहीं है लेकिन यह सब काफी जटिल है और एकदम सही ढंग से करना पड़ता है। हमारे किसानों के पास ये योग्यता है क्योंकि यह ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दिया जाता रहा है।

दुर्भाग्यवश, यद्यपि दक्षिण भारत में 12000 वर्षों से संगठित खेतीबाड़ी का इतिहास है, आज एक ही पीढ़ी में, बहुत सारी ज़मीन खेती के अयोग्य होती जा रही है। इसका कारण है वे रसायन जो हम ज़मीनों में दाल रहे हैं। अगर हमारे किसानों को अच्छी फसलें उगानी हैं और कृषि में से अच्छी आय प्राप्त करनी है तो मिट्टी में रासायनिक खाद डालने की ज़रूरत नहीं है, उसमें जैविक वस्तुएं जानी चाहिएं। मिट्टी तभी स्वस्थ्य होगी, अच्छी होगी जब उस पर पेड़ और पशु हों जिससे पेड़ों की पत्तियां और पशुओं का मल मिट्टी में जाये।

हमने भारत में छोटे स्तर पर जैविक, पेड़ों पर आधारित खेती का प्रदर्शन किया है। इससे किसानों की आय में तीन से आठ गुना वृद्धि देखी गयी है क्योंकि उनके खेती संबंधी खर्चे बहुत ही कम हो जाते हैं तथा सारे जगत में इस समय जैविक उत्पादों -- फल, सब्जी आदि की बहुत मांग है। वियतनाम जैसे देशों ने ये रूपांतरण बहुत बड़े स्तर पर किया है और हमने जिन वियतनामी विशेषज्ञों से बातचीत की, उन्होंने बताया कि किसानों की आय 20 गुना तक बढ़ी है।

अगर इसमें मूल्य को बढ़ाने वाले उत्पादों जैसे दूध, मछली तथा हस्त कला उत्पादों से होने वाली आय भी जुड़ जाए, तो इससे ग्रामीण भारत को जबरदस्त सफलता मिल सकती है। कंपनियों को इस लाभ के अवसर को उपयोग में लेना चाहिये तथा इसमें अपना सहयोग दे कर लाभ कमाना चाहिये। कई तरीकों से देश की संपूर्ण अर्थ व्यवस्था पेड़ों पर आधारित उत्पादों के बल पर कार्य कर सकती है। उदाहरण के लिये सिर्फ लकड़ी, फल तथा टूरिज़्म आजकल वैश्विक बाजार में करोड़ों डॉलर का कारोबार करते हैं।

कॉर्पोरेट क्षेत्र की जिम्मेदारी और विशेषाधिकार

एक और बड़ा काम जो कम्पनियाँ कर सकती हैं, वह है कचरे का संपत्ति में रूपांतरण। आजकल हमारे शहरों और महानगरों का अधिकतर मैला पानी समुद्रों और नदियों में जा रहा है। यह न केवल बहुत बड़ा प्रदूषण खतरा है पर एक बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान भी है क्योंकि आजकल ऐसी कई तकनीकें उपलब्ध हैं जो मैले, कचरे को धन संपत्ति में बदल सकती है। सिंगापुर ने यह कर के दिखाया है। उन्होंने मैले पानी को पीने योग्य पानी में बदल दिया है। हम अगर भारत के शहरों और महानगरों का 360 करोड़ लीटर मैला पानी खेती की ज़मीन की सिंचाई के लिये प्रयोग कर सकें तो 60 से 90 लाख हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई हो सकती है।

इन सब बातों में सरकार प्रभावी ढंग से धन नहीं लगा सकती। सरकारी वित्त की प्रक्रियायें ऐसी होती हैं कि सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि हर बार ठीक समय पर ये मिल ही जायेगा। विशेष रूप से जब वृक्ष आधारित कृषि की बात होती है, जहां पर एकदम सही समय पर वृक्षारोपण ज़रूरी है, वहां कॉर्पोरेट क्षेत्र यह काम बेहतर कर सकता है और किसानों को समय पर सहायता देने में तेज़ी दिखा सकता है। अगर कॉर्पोरेट्स बड़े स्तर के प्रदर्शन में निवेश करें, जैसे 25,000 किसान और 1 लाख हेक्टेयर ज़मीन जिन्हें संगठित सूक्ष्म सिंचाई तथा मार्केटिंग प्रकल्पों में लगाया जाये तो लोग देख सकेंगे कि कैसे ये एक बड़ी आर्थिक सफलता बन जाती है, तो फिर इसे रोकने का कोई तरीका नहीं होगा। सारे देश में ये व्यवस्था फ़ैल जायेगी। जब हम अर्थ व्यवस्था की बात करते हैं तो सिर्फ शेयर बाजार तथा कुछ अन्य चीज़ें ही देखते हैं। पर हमारी 65% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में है। अगर हम उनकी आय सिर्फ दो गुनी भी कर सकें तो हमारी अर्थ व्यवस्था छप्पर फाड़ कर ऊपर जायेगी।

आज भारत समृद्धि के कगार पर है। अगर हम अगले 10 वर्षों तक सही काम करें तो अपने देश के लोगों के इतने बड़े समुदाय को जीवन जीने के एक स्तर से दूसरे बड़े स्तर पर ले जा सकते हैं। कॉर्पोरेट क्षेत्र के पास यह जिम्मेदारी भी है और विशेषाधिकार भी कि वे अपने विशेष ज्ञान और योग्यता का सही उपयोग कर के इस पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को शुरू करें और गति दें। ये कोई दानधर्म नहीं है, ये एक निवेश है जिसमें आर्थिक लाभी तो होगा ही, साथ ही करोड़ों लोगों को एक स्वाभिमानी तथा समृद्ध जीवन जीने का अवसर देने के सुखद अनुभव का भी बहुत अच्छा लाभ होगा


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                                                                क्या खाये 


एक समय था, जब सारी दुनिया में, जब लोगों के पास कोई काम नहीं होता था तब वे मौसम की चर्चा किया करते थे। लेकिन आजकल कोई मौसम की चर्चा नहीं करता। आप चाहे जहाँ जायें, आप की दादी, नानी से ले कर आप के नाती-पोतों तक, हर कोई केवल अर्थव्यवस्था के बारे में बात करता है। सभी की बातचीत में, अर्थव्यवस्था ही मुख्य मुद्दा बन गया है।

अर्थव्यवस्था हमारे जीवन जीने की प्रक्रिया का एक अधिक पेचीदा रूप है। साधारण रूप से जीवन जीने का मतलब है बस खाना, सोना, बच्चे पैदा करना और एक दिन मर जाना। इसे अब बहुत ज़्यादा जटिल बना दिया गया है। मैं इसके खिलाफ नहीं हूँ पर लोग सोचते हैं कि अर्थव्यवस्था आज की चिंता है और पर्यावरण भविष्य का मुद्दा है। ये विचार बदलना ज़रूरी है।

पर्यावरण आज की समस्या है और आज की ही चिंता का विषय भी। अगर आज हमारा जीवन अद्भुत है, तो इसलिये नहीं कि शेयर बाजार में उथल-पुथल हो रही है या फिर किसी विशेष देश या समाज में विकास दर का प्रतिशत अच्छा है। हमारा जीवन अच्छा इसलिये है कि हम पोषक खाना खा रहे हैं, स्वच्छ जल पी रहे हैं, और शुद्ध हवा में सांस ले रहे हैं। ये पूरी तरह से भुला दिया गया है।

हर जगह ज़हर है

आज जो भोजन हम खा रहे हैं वह रसायनों से भरा हुआ है। जो पानी हम पी रहे हैं वह ज़हर से भरा है, और ज़रूर, हवा तो ज़हरीली है ही। मुझे लगता है कि तकनीक की सहायता से हम अगले 10 से 15 वर्षों में हवा का शुद्धिकरण कर लेंगे। इस दिशा में एक बड़ा आंदोलन चल रहा है। लेकिन मिट्टी और पानी, ये बड़ी समस्याएँ हैं।

मिट्टी में ही जीवन पनपता है। मैं और आप, कुछ और नहीं, बस थोड़ी सी मिट्टी हैं। जो मिट्टी थी वह भोजन बन गया, जो भोजन था वह माँस और रक्त बन गया। अगर ये बात हमें आज समझ नहीं आती तो उस दिन समझ में आ ही जायेगी जब हम दफना दिए जायेंगे। अधिकतर लोगों को ये बहुत देर से समझ आता है, लेकिन हर किसी को कभी न कभी तो आ ही जाता है।

दुर्भाग्यवश, मिट्टी एक ऐसी चीज़ है जिसे अधिकतर लोग पर्यावरण की दृष्टि से नज़रअंदाज़ कर देते हैं। हमने अपनी धरती की उपजाऊ मिट्टी को ज़बरदस्त नुकसान पहुंचाया है। बर्फ का पिघलना, शायद जल्दी नज़र आ जाता हो, पर हमने मिट्टी को जो नुकसान पहुंचाया है वह ज़्यादा खतरनाक है।

पोषक तत्वों में गिरावट

जो सब्जियाँ और फसलें हम अपने देश में उगा रहे हैं, उनके पोषक तत्वों में, पिछले 25 वर्षों में, लगभग 30% गिरावट आयी है। यही कारण है कि लोग चाहे जो खायें, वो पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो रहे हैं।

डॉक्टर कह रहे हैं कि अगर आप माँस न खायें तो आप को पर्याप्त पोषण नहीं मिलेगा। एक ढंग से देखें तो वे पूरी तरह से गलत नहीं हैं। शाकाहारी भोज्य पदार्थ जिस ढंग से उगाये जा रहे हैं, उससे उनके पोषक तत्वों का नाश हो गया है। वे पौधों में कुछ ऐसा डाल रहे हैं जो सिर्फ भोजन जैसा दिखता है, पर वह भोजन नहीं है। वे आप को बस कचरा बेच रहे हैं। ऐसा इसलिये हो रहा है क्योंकि मिट्टी की गुणवत्ता नाटकीय ढंग से बहुत नीचे आ गयी है।
आप अपनी मिट्टी को बस रासायनिक खादों और ट्रैक्टर से समृद्ध नहीं रख सकते। आप को ज़मीन पर पशुओं की आवश्यकता होती है। प्राचीन समय से, जब से हम फसलें उगा रहे हैं, हम सिर्फ फसल ही काटते थे। बाकी का, वनस्पति और पशुओं का कचरा ज़मीन में जाता था।

आज हम सब कुछ बाहर खींच रहे हैं और ज़मीन में कुछ भी जाने नहीं दे रहे। हमें लगता है कि थोड़ी बहुत रासायनिक खाद डालने से काम हो जायेगा। यही कारण है कि भोजन और उनके पोषक तत्वों की गुणवत्ता ज़बरदस्त रूप से नीचे आ रही है।

हमारी भोजन उगाने की योग्यता ही समाप्त हो रही है, क्योंकि हम अपनी उपजाऊ ज़मीन को रेगिस्तान बनाये जा रहे हैं। हम अपनी उपजाऊ मिट्टी को रेत बना रहे हैं क्योंकि उसमें कोई जैविक पदार्थ जा ही नहीं रहे हैं - कहीं कोई पेड़ों की पत्तियां या पशुओं का मल-मूत्र नहीं है।
रासायनिक खादों का वास्तविक खतरा
मध्यम, संतुलित जलवायु में आप जो रासायनिक खाद मिट्टी में डालेंगे वह वहाँ 9 से 12 साल तक रहेगी। पर हमारे जैसी ऊष्ण कटिबंधीय ( ज्यादा गर्म या ट्रॉपिकल) जलवायु में ये तीन से चार महीनों से ज्यादा नहीं रहती। हमारे लोगों में कहीं से ये विचार आ गया कि हम बिना जैविक पदार्थों का उपयोग किये अन्न उगा सकते हैं। यह अविश्वसनीय है।

क्या जैविक पद्धति के अलावा किसी और पद्धति से भोजन उगाने का कोई और तरीका है ? नहीं, कोई और तरीका नहीं है ! आप अपनी उपजाऊ मिट्टी को तभी बचा सकते हैं, जब पेड़ों की पत्तियाँ, वनस्पति कचरा और पशुओं का मल-मूत्र उसमें जायेगा। आप केवल इसी एक तरीके से अपनी जमीन को लंबे समय तक बचा कर रख पायेंगे।

मिट्टी को ठीक करें - सब कुछ ठीक होगा

अगर हम अगले 5 से 10 साल तक सही कदम उठायें, तो फिर अगले 25 से 30 सालों में हम ज़मीन को ठीक-ठाक ढंग से बदल कर उपजाऊ बना पायेंगे। लेकिन अगर हम अभी कुछ नहीं करते और 50 साल बाद ये काम शुरू करेंगे तो हमें इस मिट्टी को उपजाऊ बनाने में 150 साल लगेंगे। इसका अर्थ ये हुआ कि मिट्टी खराब होने के कारण, चार से पांच पीढियां बहुत ही खराब तरह का जीवन बितायेंगी।
यदि हम मिट्टी ठीक कर लें तो पानी अच्छा हो जायेगा, हवा भी शुद्ध हो जाएगी, सब कुछ ठीक हो जाएगा। मिट्टी समृद्ध और उपयोगी होनी चाहिये क्योंकि हमारा शरीर इसी मिट्टी से बना है। अपने बच्चों के लिये हम जो सबसे अच्छी धरोहर छोड़ कर जा सकते हैं वह है - समृद्ध मिट्टी और अच्छे पानी का पर्यावरण। सिर्फ मिट्टी की गुणवत्ता बचा कर रखने से इस धरती की और हमारे जीवन की गुणवत्ता बनी रहेगी।

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