22 मार्च को मोदी प्रधानमंत्री मोदी के एक भाषण से पूरा देश थम सा गया अब श्री मोदी ने 21 दिन का लाॅकडाउन का अवाहन किया है।
मेरे प्रिय दोस्तों देश वासियों जिस तरह कोरोना वाइरस ने सबको परेशान कर रख्खा और प्रत्येक देशवासियों ने इसे हराने का संकल्प भी ले लिया है आप अपने घरों में अपनी हिफाजत स्वयं कर रहें इससे प्रत्येक को सीख मिल रही और जो लोग अभी इसे मजाक समझ रहे हैं वो भी धीरे-धीरे इससे सबक ले रहें है हमने ऐसे हालात में आपके लिये श्री मदभागवत गीता के ऐसे पावरफुल बातों को आपके सामने लेकर आया हूॅ आप इसका अध्ययन कर खुद इतना पावरफुल महसूस करेगे कि आप 21 दिन क्या आप 63 दिन तक लॉकडाउन का पालन कर सकते हैं। आपकी प्रतिक्रिया का हमें इन्तजार रहेगा।
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते ।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥
भावार्थ : इसलिए हे अर्जुन! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए खड़ा हो जा॥3॥
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले, हे अर्जुन! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक करता है और पण्डितों के से वचनों को कहता है, परन्तु जिनके प्राण चले गए हैं, उनके लिए और जिनके प्राण नहीं गए हैं उनके लिए भी पण्डितजन शोक नहीं करते॥11॥
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः ।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ॥
भावार्थ : न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था, तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे॥12॥
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥
भावार्थ : जैसे जीवात्मा की इस देह में बालकपन, जवानी और वृद्धावस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है, उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता।13॥
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः ।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ॥
भावार्थ : हे कुंतीपुत्र! सर्दी-गर्मी और सुख-दुःख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति-विनाशशील और अनित्य हैं, इसलिए हे भारत! उनको तू सहन कर॥14॥
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥
भावार्थ : नाशरहित तो तू उसको जान, जिससे यह सम्पूर्ण जगत्- दृश्यवर्ग व्याप्त है। इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है॥17॥
न जायते म्रियते वा कदाचि-
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो-
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
भावार्थ : यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता॥
20॥
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥
भावार्थ : जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है॥22॥
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥
भावार्थ : इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता॥23॥
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥
भावार्थ : क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और निःसंदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है॥24॥
जातस्त हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च ।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥
भावार्थ : क्योंकि इस मान्यता के अनुसार जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे हुए का जन्म निश्चित है। इससे भी इस बिना उपाय वाले विषय में तू शोक करने योग्य नहीं है॥27॥
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं सङ्ग्रामं न करिष्यसि ।
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥
भावार्थ : किन्तु यदि तू इस धर्मयुक्त युद्ध को नहीं करेगा तो स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होगा ॥33॥
भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः ।
येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ॥
भावार्थ : इऔर जिनकी दृष्टि में तू पहले बहुत सम्मानित होकर अब लघुता को प्राप्त होगा, वे महारथी लोग तुझे भय के कारण युद्ध से हटा हुआ मानेंगे॥35॥
अवाच्यवादांश्च बहून् वदिष्यन्ति तवाहिताः ।
निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम् ॥
भावार्थ : तेरे वैरी लोग तेरे सामर्थ्य की निंदा करते हुए तुझे बहुत से न कहने योग्य वचन भी कहेंगे, उससे अधिक दुःख और क्या होगा?॥36॥
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् ।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥
भावार्थ : या तो तू युद्ध में मारा जाकर स्वर्ग को प्राप्त होगा अथवा संग्राम में जीतकर पृथ्वी का राज्य भोगेगा। इस कारण हे अर्जुन! तू युद्ध के लिए निश्चय करके खड़ा हो जा॥37॥
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥
भावार्थ : जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुख को समान समझकर, उसके बाद युद्ध के लिए तैयार हो जा, इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को नहीं प्राप्त होगा॥38॥
Klebya ma smam: Partha naitatvayyupadyate.
Small heart
Bhaarthar: Therefore, O Arjuna! Do not get impotence, you do not find it appropriate. Hey hey Abandon the insignificant weakness of the heart and stand up for war ॥3॥
From the Ashokayananvashochsattva Pragyavadasvanta language.
Gataasunagatasanush Nanushochanti Pandita:॥
Sense: Shri Bhagavan said, O Arjuna! Thou mourn not for mournful men, and say the words of the wise ones, but for those whose souls have departed, and for those whose souls have not gone, mourners do not mourn. ॥11॥
Neither the skin nor the twilight,
Neither Chave nor Bhavishyam: Survey routinely
Sense: It is neither that I was not there in a period, you were not there or that these kings were not people, nor is it that we will not live beyond this.
Dehinoऽsminyatha dehe kaumaran puberty.
And you will not get any relief.
Spirituality: Just as the body of a person has childhood, youth and old age, so is the attainment of another body, in that matter the patient is not fascinated. 13॥
Quantity Contemporary Kontaye Temperate
India
Bhaarthar: O Kuntiputra! The coincidence of the senses and subjects giving winter-heat and pleasure-sorrow is origin-destroying and perishing, so O India! You bear them ॥14॥
Imperishable ye tadviddhi yen sarvamidant tatam.
Destruction
Senseless: You know him, so that this entire world is visible. No one is able to destroy this imperishable ॥17॥
Na jayate mriete wa kadachi-
Nannayam Bhootwa Bhavata or Bhuyah.
Ajo Nitya: Shashtoऽayam Purano-
Na hanyate hanyamane sharee॥
Spirituality: This soul is neither born nor dies in any period, nor is it going to be born again and again because it is unborn, eternal, eternal and archaic, it is not killed even when the body is killed.
20॥
Vasansi jirnani as vijay
Navani griharanati Naroparani.
And Shariani Vihaya Jirna-
Nyanayan sanyati nawani dehi
Spirituality: Just as a person renounces old clothes and accepts other new clothes, similarly the person renounces the old body and gets other new bodies. ॥22॥
Nain chindanti shastraani nain dahti pavakah.
Neither chain kledayantyapo nor shosayati marutah
Meaning: This soul cannot cut weapons, it cannot burn fire, it cannot burn water and cannot dry air ॥23॥
Goodyodayyamdahyayyamakledyoshya and f.
Nitya: omnipotent
Connotation: Because this soul is good, this soul is inedible, unintelligent and undoubtedly imperishable and this soul is eternal, omnipresent, immovable, stable and eternal. ॥24॥
Jastasti Dhruvo obituary
Tasmad parivarhearthe na thar shochitumarashi
Connotation: Because according to this belief, the death of the born is certain and the birth of the dead is certain. Also, you are not able to grieve in this subject without remedy ॥27॥
Atha Chettvamin Dharmyana Sangraman Karishyasi.
Thus Swadharma Kirtincha Hittva Papamavapsyasi
Spiritualism: But if you do not do this religious war, you will gain sin by losing self-righteousness and fame.
Bhayadranaduparatam mansyante tva maharatha.
Yeshwantha majority majority Bhutva Yasyasi Laghavam
Spiritualism: And in whose eyes you will be very honored and now you will get the smallness, those great people will consider you removed from the war due to fear
Unrealism, Bahu Vदिdishyanti Tāvahitaः.
Blasphemy
Sense: Your enemies will condemn your power and tell you many unacceptable words, what will be more sad than that? ॥36॥
Hato wa prapsyasi heaven from Jitva or Bhokshya.
Tasmadutishta Kaunteya warfare determination:॥
Meaning: Either you will get to heaven by being killed in battle or you will enjoy the kingdom of earth by winning in battle. For this reason, O Arjun! Thou shalt stand for battle ॥37॥
Sukandhukahe Samay Kritwa Labalabhaibha Jayajayou.
Tato Yudhya Yujyasva Nain Papamavapsyasi 4
Spiritualism: Treating Jai-defeat, profit-loss and happiness-sorrow as equal, then be ready for war, thus war will not bring you to sin. ॥38॥
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